‘हम आपके ट्रेन के टिकट का खर्च देंगे’, कांग्रेस झूठ की आड़ में मजदूरों की हितैषी बनने का नाटक कर रही है

कांग्रेस

कुछ दिनों पहले लॉकडाउन में ढील दी गयी और प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य भेजने का ऐलान हुआ है। इन श्रमिकों को उनके राज्य पहुंचाने के लिए स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था की गई। लेकिन कुछ लोगों के जीवन का एक ही ध्येय है – प्राण जाए पर एजेंडा ना जाए। कांग्रेस पार्टी सहित विपक्षी दल केंद्र सरकार के बारे में यह झूठ फैलाने लगे कि सरकार श्रमिकों से पैसे वसूल रही है पर जब हम इसकी गहराई में गये तो लेकिन सच्चाई कुछ और ही सामने आई। पर पहले फैलाए झुठ को जान लीजिए।

महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री नितिन राउत ने तो यह तक कह दिया कि प्रवासी मजदूरों से घर जाने के लिए ट्रेन लेने पर उन्हें पैसे चुकाने पड़ रहे हैं।

नितिन राउत ने अपने बयान में कहा, प्रवासी मजदूरों को इस पूरी यात्रा के लिए 505 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं, जोकि सरासर ग़लत है। इनके यात्रा के लिए केंद्र सरकार को पीएम केयर्स फंड से भुगतान करना चाहिए था। मैंने स्वयं 5 लाख रुपए का भुगतान किया

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने तो रेल विभाग की ओर से पीएम मोदी केयर को दिए गए करोड़ों के दान पर सवाल उठा दिया।

इससे पहले द हिन्दू के साथ साथ कई चर्चित समाचार पत्रों ने भी इस सफेद झूठ को फैलाने का प्रयास किया। हालांकि, जल्द ही संबित पात्रा ने कांग्रेस के इस झुठ का पर्दाफाश कर दिया।

अब आपको बताते हैं श्रमिक ट्रेन से जुड़ी हुई सभी सच्चाई

केंद्र सरकार ने श्रमिकों के बीच सामाजिक दूरी मानदंडों को ध्यान में रखते हुए स्पेशल ट्रेन केवल 60% यात्री क्षमता के साथ चलाने का निर्णय लिया था जिससे दूसरे राज्यों में फंसे मजदूर अपने घर सुरक्षित पहुंच सके। इन श्रमिक Special ट्रेनों को रास्ते का भोजन और पानी, सुरक्षा आदि की व्यवस्था के साथ चलाया जा रहा है।

अब बात ट्रेन के टिकट और भाड़े की

जो झूठ फैलाया जा रहा है कि मजदूरों से अतिरिक्त रुपया वसूला जा रहा है। इससे तो यही लगेगा कि केंद्र सरकार इन गरीब मजदूरों के बारे में जरा सा भी नहीं सोच रही है। लेकिन यह एक सफ़ेद झूठ है। गाइडलाइन के अनुसार श्रमिकों का भाड़ा केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों मिल कर वहन करेंगी।

यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है कि देश अभी भी लॉकडाउन की स्थिति में है और सरकार ने सभी से आग्रह किया था कि जो जहां है वो वहीं रहे लेकिन फिर भी कई लोग हैं जिन्हें वापस जाना आवश्यक है।  अब यहाँ सवाल यह उठता है कि आखिर यह निर्णय कौन लेता है कि कौन कौन इन विशेष रूप से चलाये गए ट्रेनों में सफर करेगा?

यह निर्णय राज्य सरकार लेती है, केंद्र सरकार नहीं। राज्य सरकार प्रत्येक श्रमिक का नाम के साथ उसके गंतव्य स्थान केंद्र सरकार के साथ साझा करती है जिसके बाद विशेष ट्रेन चलाया जाता है।

बता दें कि भारतीय रेलवे कुल लागत का 85% का भुगतान करता है, जो कुल मिलाकर यानि सोशल डिस्टेन्सिंग, वापसी का किराया आदि का होता है। राज्यों को शेष 15% का भुगतान करना पड़ता है, जो इस मामले में एक बड़ी राशि नहीं है, लेकिन इससे जवाबदेही सुनिश्चित होती है। यह श्रमिक स्पेशल social distancing का पालन करते हुए यानि लगभग 60% यात्री भोजन तथा पानी की व्यवस्था, सुरक्षा आदि के साथ विशेष ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं तथा वापसी में खाली ट्रेने लाई जा रही है। सामान्य दिनों में भी भारतीय रेल यात्रियों को यात्रा करने पर लगभग 50% सब्सिडी देती है।

इन सबको ध्यान में रखकर मात्र 15-20% खर्च रेलवे भेजने वाले राज्य सरकारों से ले रही है और टिकट राज्य सरकारों को दिया जा रहा है।

यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय रेल किसी भी प्रवासी को न तो टिकट बेच रहा है और न ही उनसे किसी प्रकार का संपर्क कर रहा है। यह इसलिये भी ज़रूरी है कि पूरी प्रक्रिया पर नियंत्रण रहे, और राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि सिर्फ ज़रूरतमंद लोग ही इन स्पेशल ट्रेनों में यात्रा करें। ऐसा न किया जाये तो बेकाबू भीड़ इकट्ठी हो सकती है। नियंत्रण व सुरक्षा रखना असंभव होगा।

 सुविधा निःशुल्क होती तो कोरोना के संक्रमण से बचना भी मुश्किल हो जाएगा

अगर ये सुविधा निःशुल्क होती तो नियंत्रण के बिना सभी लोग रेलवे स्टेशन पहुँच जाते, ट्रेनों में बड़ी संख्या में घुसकर लोग बिना social distancing maintain किये और असावधानीपूर्वक यात्रा करते। किसी भी राज्य के लिए स्टेशनों पर भगदड़ को नियंत्रित करना असंभव हो जाता। इस स्थिति में राज्य सरकारों के लिए ये सुनिश्चित करना भी मुश्किल हो जाता कि वास्तव में इन ट्रेनों में प्रवासी मजदूर ही यात्रा कर रहे हैं।

परंतु, टाइम्स नाउ के अनुसार, केरल, राजस्थान और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों ने प्रवासियों को टिकट भुगतान के लिए मजबुर किया है। अब आप समझ गये होंगे कांग्रेस किस स्तर तक जा सकती है।

सोनिया गांधी ने जरूर सभी यात्रियों का किराया देने का ऐलान किया होगा लेकिन उससे जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदलने वाला है। इससे अच्छा यह होता कि वे अपनी राज्य सरकरो को केंद्र सरकार की मदद करने का निर्देश देती। रेलवे ने बिना किसी समस्या के 34 ट्रेनों को सफलतापूर्वक चलाया है, लेकिन सोनिया गांधी का झुठ अराजकता पैदा करने की क्षमता रखता है। वैसे झूठ पर राजनीति करने की कांग्रेस की पुरानी आदत है। कांग्रेस चाहती है कि देश में अराजकता फैले जिससे मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके। श्रमिकों को भाड़े के नाम पर भड़काने की कोशिश की जा रही है। सच पूछा जाए तो यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस और सोनिया गांधी कोरोना के खिलाफ भारत की सफलता से चिढ़े हुए हैं। जब से देश इतनी बड़ी महामारी से जूझ रहा है तब इन विपक्षी पार्टियों को यह समझना चाहिए कि इससे देश को कितना नुकसान हो सकता है।

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