“सभी labour laws को कूड़े में फेंक दो”, आखिर योगी ने देश को उसका पहला पूंजीवादी राज्य दे ही दिया

अब यूपी में नई कंपनियों की बाढ़ आना तय!

योगी सरकार यूपी

वुहान वायरस के कारण जहां कई अन्य राज्य मुसीबत में फंसे हुए है और वे समझ नहीं पा रहे कि आगे क्या करें, तो वहीं कई राज्य ऐसे समय में भी एक सुनहरा अवसर देख रहे हैं। इसी में अग्रणी है उत्तर प्रदेश (यूपी), जहां की सरकार ने एक ऐसा निर्णय लिया है, जो ना सिर्फ राज्य की तस्वीर बदल सकती है, अपितु हमारे देश में पूंजीवादी व्यवस्था का सुगम आगमन भी सुनिश्चित कर सकती है।

हाल ही में एक विशेष अध्यादेश पारित कराकर उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ अहम अधिनियम छोड़कर बाकी सारे श्रम कानूनों को 3 साल तक निष्क्रिय करने का निर्णय लिया है। इससे ना सिर्फ ज़्यादा से ज़्यादा निवेश संभव होगा, बल्कि किसी उद्योग को स्थापित होने वाले में लगाई जाने वाली अड़चनों का भी सफाया होगा।

यूपी के मुख्य सचिव आरके तिवारी के अनुसार, “यहां पर उद्देश्य ये है कि हमें उन कामगारों को काम दिलाना है, हो सब कुछ छोड़ छाड़कर यूपी वापस आए है, और ऐसे में उद्योग को थोड़ी फ्लेक्सिबिलिटी देनी ही पड़ेगी।”

इस बृहस्पतिवार को राज्य में अधिकांश श्रम कानूनों को निलंबित करने के लिए एक अध्यादेश पारित किया गया, ताकि मौजूदा कोरोना वायरस संकट के बीच राज्य में निवेश करने के लिए नई कंपनियों को आकर्षित किया जा सके।

कुल 38 श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया गया है और केवल 4 कानून लागू होंगे जो कि भुगतान अधिनियम, 1936 के भुगतान की धारा 5, वर्कमैन मुआवजा अधिनियम, 1932, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 और भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996 हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि व्यवसायों को लगभग सभी श्रम कानूनों के दायरे से छूट देने का निर्णय लिया गया क्योंकि राज्य में आर्थिक और व्यावसायिक गतिविधियाँ कोरोना वायरस संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।

कभी जिस राज्य के उद्योगों को वामपंथी दलों और समाजवादी सरकारों की भेंट चढ़ा दिया गया था, आज उसी राज्य के उद्योग को राज्य सरकार ने एक नया जीवनदान दिया है।

ये निर्णय रणनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि भारत के आर्थिक इतिहास के लिहाज से भी बहुत क्रांतिकारी है। यह निर्णय अर्थव्यवस्था और व्यापार के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नए लेबर रिफॉर्म में संबंधित अधिकारी को कंपनियों, दुकानों, ठेकेदारों और बड़े निर्माताओं के लिए पंजीकरण या लाइसेंस की प्रक्रिया को केवल 1 दिन में पूरा करना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो सम्बन्धित अधिकारी पर जुर्माना लगेगा और यह ट्रेडर को मुआवजे के तौर पर दे दिया जाएगा। बता दें कि अभी यह प्रक्रिया 30 दिन में पूरी होती है।

अब किसी सरकार ने देश की आर्थिक नीति में व्यापक बदलाव हेतु एक क्रांतिकारी कदम उठाया हो और विपक्ष मौन रहे, ऐसा भला हो सकता है क्या? श्रम कानूनों को निष्क्रिय करने के लिए यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की आलोचना करते हुए कांग्रेस पार्टी के राज्य इकाई प्रमुख अजय कुमार लल्लू ने कहा कि सरकार केवल बड़े व्यवसायों की परवाह करती है न कि मजदूरों के अधिकारों के बारे में।

कांग्रेस ने इस फैसले को काला कानून बताते हुए कहा – “यूपी सरकार राज्य में मजदूरों के लिए एक काला कानून लाई है और उन्होंने अब तीन साल के लिए मौजूदा श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया है। ये कानून श्रमिक अधिकारों के रक्षक थे, लेकिन अब सरकार ने अगले तीन वर्षों के लिए श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया है, वास्तव में मजदूरों के अधिकारों को छीन लिया गया है।”

पर शायद कांग्रेस भूल रही है, कि ये वही श्रमिक कानून, जिसका दुरुपयोग कर अनेकों ट्रेड यूनियन ने अराजकता फैला कर यूपी में उद्योगों का रहना दुश्वार कर दिया था। उदाहरण के लिए एशिया का मैनचेस्टर माना जाने वाला कानपुर इन्हीं समाजवादी नीतियों और वामपंथियों की गुंडई के कारण बर्बाद ही गया।

पर अब और नहीं। अब राज्य सरकार ने इस निर्णय से स्पष्ट कर दिया है – देश को आर्थिक प्रगति के पथ पर ले जाना है, तो अपनी आर्थिक नीति में बदलाव करना होगा, और समाजवाद की बेड़ियों को उखाड़ फेंकना होगा। कभी बीमारू राज्य में भी निम्नतम स्थान रखने वाला उत्तर प्रदेश आज भारत को आर्थिक पुनरुत्थान के लिए एक नई राह दिखा रहा है।

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