आज विश्व के किसी भी क्षेत्र या संगठन की भारत की गैर-मौजूदगी में कल्पना नहीं की जा सकती है। यह महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ते कदम की पहचान है। कोई भी देश चाहे वो बड़ा और शक्तिशाली हो या छोटा, सभी भारत से अपने संबंध बढ़ाना चाहते हैं। एक तरफ अमेरिका G7 में भारत की एंट्री की बात कर रहा है तो वहीं मालदीव भारत को अपना कहने में गर्व का अनुभव करता है। कोरोना के समय में भारत ने लगातार अपनी डिप्लोमेसी को मजबूत किया है। इसी दौरान भारत ने अपनी कूटनीतिक पहुंच को यूरोप के नोर्डिक-बाल्टिक देशों यानि डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, आइसलैंड, एस्टोनिया, लिथुआनिया और लातविया तक पहुंचाया है और इन देशों के साथ अपने रिश्तों को नया आयाम देने की योजना बनाई है। खास बात यह है कि इन देशों ने भी भारत के साथ द्विपक्षीय संबद्धों को बढ़ाने में उत्साह दिखाया है। इससे किसी देश को सबसे ज़्यादा पीड़ा पहुंचेगी, तो वह है चीन, क्योंकि भारत इन देशों के साथ नजदीकी बढ़ाकर आसानी से क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम कर सकेगा।
विश्व के मानचित्र पर इन देशों की स्थिति देख कर इनके रणनीतिक महत्व का आंकलन किया जा सकता है। यह क्षेत्र भारत के लिए कई मोर्चों पर बेहद अहम साबित हो सकता है और इसी तरह इन आठ देशों के लिए भारत एक अहम साझेदार साबित हो सकता है। एक तरफ भारत को इन क्षेत्रों से कई प्रकार की मिनरल्स की आपूर्ति हो सकती है तो वहीं अटलांटिक क्षेत्र में चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव को काउंटर कर अपनी मौजूदगी बढ़ाने का मौका मिल सकता है। दूसरी तरफ इन देशों को भी चीन और तथा रूस के प्रभाव को कम करने के लिए भारत जैसी किसी उभरती महाशक्ति की आवश्यकता है जिससे नोर्डिक-बाल्टिक क्षेत्र में Balance Of Power बना रहे।
एक दूसरे की जरूरतों को देखते हुए मार्च महीने से ही नोर्डिक-बाल्टिक के देशों के राजदूतों द्वारा कम से कम 15 राजदूत स्तर की बैठकें आयोजित की गई हैं। ये बैठक हर शुक्रवार आयोजित होती है जिसमें कई स्तरों पर bilateral engagements के अवसर तलाशे जाते हैं जिससे ये सभी देश भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंध बढ़ा सके।
अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कोरोना ने नोर्डिक-बाल्टिक क्षेत्र को भारत के और करीब ला दिया है । इन देशों के साथ कई मुद्दों पर लगातार बातचीत जारी है जैसे,भारत की जेनेरिक दवा,green energy और पर्यावरण में व्यापार के मौके,आईटी, साइबर सुरक्षा, ई-गवर्नेंस। इसके अलावा निवेश और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए भी भारत के खाद्य और कृषि क्षेत्रों में अवसर तलाशे जा रहे हैं।
कुछ ही दिनों पहले भारत ने Denmark के साथ ऊर्जा क्षेत्र में एक MoU साइन किया था। इस MOU में दीर्घकालिक ऊर्जा प्लानिंग, पूर्वानुमान, ग्रिड में लचीलापन, ग्रिड कोडों का सुदृढ़ीकरण जैसे मुद्दों पर सहयोग की बात की गयी थी, ताकि बिजली उत्पादन के विभिन्न प्रभावी विकल्पों को जोड़कर उनका परिचालन किया जा सके, इसके अलावा MOU में बिजली खरीद समझौतों में लचीलापन, बिजली संयंत्र के लचीलेपन को प्रोत्साहित करने, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में विविधता आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग की व्यवस्था जैसे मुद्दे भी शामिल किए गए थे।
वहीं डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे कई स्तर पर भारत से अपने संबंध को बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान में उच्च-स्तरीय शोध को साझा करने से लेकर कोरोना महामारी के इलाज से लेकर इस क्षेत्र में अपने जेनेरिक वर्चस्व को स्थापित करने तक, इन सभी क्षेत्रों में ये देश भारत से सहायता चाहते हैं।
170 से ज्यादा स्वीडिश कंपनियां भारत में काम कर रही हैं। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी Nordic देशों की यात्रा की थी।
भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है और अगर उस क्षेत्र में भारत अपना वर्चस्व बढ़ाता है, तो यह हेल्थकेयर क्षेत्र में यूरेशिया में चीन के प्रभुत्व के लिए एक रणनीतिक चुनौती सिद्ध होगा। इससे चीन का इन देशों में प्रभुत्व कम होगा और भारत का प्रभाव बढ़ेगा।
एस्टोनिया technology and artificial intelligence के मामले में विश्व में प्रमुख देशों में माना जाता है। भारत ने पहले से ही एस्टोनिया के साथ ई-गवर्नेंस और साइबर सुरक्षा पर समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। वहीं 7,200-km लंबे International North–South Transport Corridor (INSC) के बनने के बाद लाटविया इस corridor में ट्रांसशिपमेंट पोर्ट के रूप में काम कर सकता है जिससे भारत को अपने उत्पादों को ट्रांसपोर्ट करने में आसानी होगी। International Solar Alliance (ISA) में भी ये सभी देश भारत से जुड़ सकते हैं।
यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से बेहद अहम है और चीन, रूस के साथ मिल कर अपने प्रभुत्व को बढ़ा चुका था। लेकिन अब कोरोना ने भारत को मौका दिया है जिससे वह Eurasia क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है और चीन को एक कड़ी टक्कर दे सकता है। चीन के BRI की वजह से अब शायद उन देशों अब यह समझ में आ गया होगा कि चीन BRI का इस्तेमाल दूसरे देशों को कर्ज के जाल में फँसाने के लिए करता है। शायद इसी कारण से अब इन देशों ने उस क्षेत्र में भारत जैसी उभरती महाशक्ति के साथ संबंध बढ़ाना शुरू किया है, जिससे Nordic-Baltic सहित पूरे Eurasia में Power of Balance बना रहे।