लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा के बाद अब नेपाल चाहता है बिहार के पूर्वी चंपारण का हिस्सा

नेपाल

नेपाल की कम्यूनिस्ट सरकार ने इस बार अपनी सीमाएं लांघते हुए भारत को खुलेआम चुनौती दी है। लिंपियाधुरा, कालापानी और लीपुलेख के क्षेत्रों पर दावा करने के बाद अब नेपाली सरकार ने बिहार के पूर्वी चंपारण क्षेत्र पर दावा ही नहीं किया है, अपितु बिहार के जलकल विभाग को बाढ़ से बचने के लिए embankments (बांध) बनाने से रोका है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर वर्ष बिहार बाढ़ से पीड़ित रहता है, और इसलिए इस बार अपनी व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बिहार सरकार ने राज्य के जलकल विभाग को पूर्वी चंपारण में लाल बांके नदी पर बांध बनाने की स्वीकृति दे दी है। ये नदी 729 किलोमीटर लंबी है जो नेपाल से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास स्थित है, और आगामी मॉनसून को देखते हुए बिहार के WRD अफसर जब बांध बनाने के लिए उक्त क्षेत्र पहुंचे, तो नेपालियों ने उन्हें बांध बनाने देने से ही मना कर दिया। न तो ये किसी सीमा का उल्लंघन था, और न ही भारतीय इसे नेपाल में बना रहे थे, फिर भी उन्हें अपने ही क्षेत्र में काम करने से नेपाली प्रशासन ने रोक दिया। इतने वर्षों में कभी भी नेपाली अफसरों ने ऐसा नहीं किया था, परंतु इस बार नेपाली प्रशासन केपी शर्मा ओली के हाथों में है। बता दें कि लाल बांके नदी नेपाल के हिमालय पर्वतों से निकलती है और फिर बिहार में बहती हैं।

सूत्रों की माने, तो न केवल नेपाल ने इस बांध को बनने देने से रोका है, अपितु ये भी दावा किया है कि पूर्वी चंपारण नेपाल का क्षेत्र है। बिहारी प्रशासन ने इसे स्थानीय स्तर पर निपटाने का प्रयास किया, परंतु बात बिगड़ते देख उन्हें इस बारे में गृह मंत्रालय, बिहार सरकार और नेपाल में स्थित भारतीय दूतावास को भी सूचित करना पड़ा।

मीडिया से बातचीत के दौरान पूर्वी चंपारण के डीएम शीर्षत कपिल अशोक ने बताया, “नेपाल ने भारतीय क्षेत्र में सीमा के पास हो रहे बांध संबंधी काम में अड़ंगा लगाया है। हमने इस विषय पर बिहार सरकार और केंद्र सरकार दोनों को सूचित किया है”। इसके अलावा डीएम ने बताया, “ढाई किलोमीटर लंबे स्ट्रेच के 400 मीटर के fortification का काम बचा हुआ था। WRD ने बांध को बॉर्डर के अंतिम छोर तक बनवाने में सफलता पाई है, पर अब नेपाली प्रशासन इसपर सवाल उठा रही है”।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन की खुशामद करने में केपी शर्मा ओली और उनके चाटुकार सिर के बल खड़े होकर काम कर रहे हैं। ज्ञात हो कि ओली की सरकार को गिरने से चीन ने ही बचाया था और चीन ने इस क्षेत्र में करोड़ों डॉलर का निवेश भी किया। परंतु वर्तमान गतिविधियां नेपाल और भारत के सम्बन्धों को उस स्तर तक बिगाड़ने का माद्दा रखती हैं, जहां से वापिस लौट के ना आया जा सके। इस पूरे प्रकरण में यदि किसी को सबसे अधिक नुकसान होगा, तो वह नेपाल ही होगा। इस समय पूरी दुनिया न केवल चीन के विरुद्ध वुहान वायरस फैलाने हेतु मोर्चा संभाले हुई हैं, अपितु उसे महामारी खत्म होने पर एक एक पाई का हिसाब भी चुकता करना चाहेगी। यदि नेपाल को किसी का उदाहरण समझना है तो पाकिस्तान से ही सीख ले, जो इतने वर्षों तक चीन की खुशामद करने के बाद आज दुनियाभर में मज़ाक का विषय बन चुका है।

Exit mobile version