अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ होने के बाद अब ऐसा लगता है कि काशी-मथुरा के भी अच्छे दिन आने वाले हैं। काशी-मथुरा मंदिर विवाद पर अब सुप्रीम कोर्ट में PIL डाली गयी है। इस PIL में Places of worship Act, 1991 को चुनौती दी गई है। इस PIL को दायर करने वाले हिंदु पुजारियों के संगठन का नाम है “विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ”।
यह अधिनियम काशी और मथुरा के मामले में इसलिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि उन दोनों जगहों पर भी दो विवादित मस्जिदें हैं और यह कानून किसी भी मंदिर को मस्जिद में बदलने या किसी मस्जिद को मंदिर में बदलने पर प्रतिबंध लगाता है।
अब यह PIL अयोध्या में राम जन्मभूमि के अलावा अन्य स्थानों पर स्थित विवादित धार्मिक स्थलों या हिन्दू मंदिरों के लिए कानूनी लड़ाई जीतने के लिए दायर की गयी है। PIL में कहा गया है कि हिंदुओं को अपने धार्मिक स्थल वापस लेने के अधिकारों से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए, और देश की संसद को इस विषय में ठोस कदम उठाने चाहिए। याचिका में कहा गया है कि इस एक्ट को कभी चुनौती नहीं दी गई और ना ही किसी कोर्ट ने न्यायिक तरीके से इस पर विचार किया। हाल ही में आए अयोध्या के रामजन्मभूमि फैसले में भी संविधान पीठ ने इस पर सिर्फ टिप्पणी की थी।
आखिर क्यों यह कानून मथुरा और काशी में अयोध्या जैसी जीत के रास्ते में बाधक है और क्यों इसे हटाना या निरस्त करना या फिर संशोधित करना अति-आवश्यक है?
सबसे पहले जान लेते हैं कि क्या कहता है यह अधिनियम?
- Places of worship Act, 1991 या उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत की संसद का एक अधिनियम है।यह केंद्रीय कानून18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था।
- यह 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आये हुए किसी भी धर्म के पूजास्थल को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है।यानि यदि 15 अगस्त, 1947 को एक जगह पर मस्ज़िद थी तो वहां पर आज भी मस्ज़िद की ही दावेदारी मानी जाएगी। चाहे उससे एक महीने पहले या एक साल पहले या 100 वर्ष पहले उस स्थान पर मन्दिर क्यों न रहा हो। इससे मध्यकालीन युग में तोड़े गए किसी भी मंदिर पर जहां आज मस्जिद है, उस स्थान पर हिंदू दावा नहीं कर सकते। यानि इसके आते ही मथुरा और काशी जैसे कृष्ण और महादेव के प्रमुख स्थानों से हिंदुओं को अपना दावा छोड़ना होगा।
- अगर कोर्ट में इस तरह का कोई भी मामला चल रहा है तो इसके लागू होने के साथ ही निरस्त या समाप्त हो जाएगा।
- यह कानून मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर लागू नहीं होता।
- सभी प्रावधान 11 जुलाई 1991 को लागू माने गए हैं, साथ ही इस कानून के विरुद्ध जाना अपराध कि श्रेणी में आता है। इसलिए इस अधिनियम के विरुद्ध कार्रवाई करना दंडनीय है, जिसके चलते जुर्माना और तीन साल तक की सज़ा या दोनों हो सकती है।
इसी कारण से विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ द्वारा दायर जनहित याचिका में शीर्ष अदालत से 1991 के अधिनियम की धारा 4 को““ultra vires”, अर्थात् कानूनी शक्ति या अधिकार से परे और असंवैधानिक घोषित करने के लिए निर्देश मांगे गए हैं।
अगर इस PIL पर सुनवाई होती है और याचिका में की गई मांगों को मान लिया जाता है तभी काशी और मथुरा जैसे अनेकों हिन्दू धार्मिक स्थलों को कानून रूप से दोबारा हासिल करने का रास्ता खुलेगा। भारत पर मध्य-कालीन युग में इस्लामिक आक्रमण और फिर उनके शासन के दौरान न जाने कितने हजार मंदिर तोड़ कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिये गए थे। आज उन स्थलों पर हिंदुओं के दावे को अगर कोई कानूनी रूप से चोट पहुंचाता है , तो वो यही Places of worship Act, 1991 है। इस लिए काशी और मथुरा के मंदिरों के लिए इस अधिनियम में संशोधन आवश्यक है।