केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने अभी हाल ही में एक अहम निर्णय की जानकारी देते हुए ट्वीट किया, “मुझे बताते हुए बेहद प्रसन्नता हो रही है कि भारत ने हाल ही में #GPAI अथवा ग्लोबल पार्टनर्शिप ऑन आर्टिफ़िश्यल इंटेलिजेंस को बतौर संस्थापक सदस्य जॉइन किया है। इस बहुपक्षीय साझेदारी से एआई की मानवीय और जिम्मेदार संचालन को बढ़ावा दिया जाएगा। #ResponsibleAI”.
इस साझेदारी का प्रमुख उद्देश्य है AI का responsible development, जिसमें मानवाधिकार, संप्रभुता, इनोवेशन, और आर्थिक विकास पर ध्यान केन्द्रित होगा। परंतु इसका एक उद्देश्य और भी है, और वो है चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालना, जिसने आर्टिफ़िश्यल इंटेलिजेंस के मामले में दुनिया के कई देशों को मीलों पीछे छोड़ दिया है।
दुनिया के कई लोकतान्त्रिक देशों को चीन के इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव पर चिंता हो रही है, और हो भी क्यों न, चीन इस तकनीक का इस्तेमाल दूसरे देशों पर जासूसी करने, विशाल सर्वेलांस प्रोग्राम बनाने और मानवअधिकारों का उल्लंघन करने में जो करता है।। एक आसान गूगल सर्च से आपको पता चल जाएगा कि चीन इस क्षेत्र में कितना आगे चल रहा है। हर वर्ष 10 बिलियन डॉलर्स से ज़्यादा का निवेश AI में होता है, जिसमें से आधे से अधिक पैसा चीनी स्टार्ट अप्स को जाता है।
इसीलिए, अब कई देशों को चीन से निपटने के लिए एकजुट होना पड़ा है। भारत के अलावा #GPAI साझेदारी का हिस्सा बनने वालों देशों में जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, मेक्सिको एवं न्यूज़ीलैंड शामिल है। भारत सरकार की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है, “GPAI के संस्थापक सदस्य के तौर पर जुड़कर भारत आर्टिफ़िश्यल इंटेलिजेंस के वैश्विक विकास में सक्रिय रूप से भाग लेगी। डिजिटल तकनीक से inclusive growth हेतु भारत अपना विशाल अनुभव संसार के साथ साझा करेगी।”
इस ग्रुप द्वारा जारी बयान के अनुसार, GPAI को पेरिस में स्थित ऑर्गनाइज़ेशन फॉर ईकोनॉमिक डेव्लपमेंट द्वारा स्थापित सचिवालय संचालित करेगी। आधिकारिक बयान के अनुसार, “अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी के अंतर्गत GPAI उद्योग, सिविल समाज, सरकारें और शैक्षणिक क्षेत्रों से कई विशेषज्ञों को एक मंच पर लाएगी, जहां वे AI के responsible evolution के लिए एक दूसरे का साथ देंगे, और ये भी सिद्ध करेंगे कि कैसे AI COVID 19 से उत्पन्न वैश्विक संकट से निपटने में लोगों की सहायता करेगी।” इससे GPAI ने एक स्पष्ट संदेश दिया है – अब AI के क्षेत्र में चीन का वर्चस्व ज़्यादा दिन टिकने वाला नहीं है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन AI की रेस में काफी आगे चल रहा है, क्योंकि कम्युनिस्ट शासन ने इस क्षेत्र में 2017 से ही युद्धस्तर पर काम करना शुरू किया है। चीन की सरकार के अनुसार 2030 तक चीन को AI का बादशाह बनाना अवश्यंभावी है। चीन का प्रमुख उद्देश्य AI को सैन्य गतिविधियों और स्मार्ट सिटी के विकास के लिए उपयोग में लाना है, जिसमें अलीबाबा और बाइडु पूरा पूरा साथ दे रही हैं, और इसी कारण से अमेरिका काफी चिंतित है, क्योंकि यदि चीन को इस तकनीक में महारत प्राप्त हुई, तो चीन के तकनीकी बादशाहत को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा।
ऐसे में दुनिया भारत की ओर बड़े आशा से देख रही है, क्योंकि भारतीय रिसर्चर इस क्षेत्र में सबसे अधिक सक्रिय हैं। अमेरिका में AI के आधे से अधिक शोधकर्ता भारत से आते हैं। भारत के पास मानव संसाधन की कोई कमी नहीं है, और यदि वे ठान लें, तो AI में चीन के वर्चस्व को उखाड़ फेंकना उतना कठिन नहीं होगा, और ऐसे समय में भारत का GPAI के साथ जुड़ना सोने पर सुहागा साबित होगा!