समय सबसे बलवान होता है, अगर वह किसी के लिए एक रास्ते बंद करता है तो दूसरे रास्ते जरूर खोलता है। यही अभी ऑस्ट्रेलिया के साथ हो रहा है। एक तरफ जहां चीन और उसके बीच की खाई बढ़ती जा रही है तो वहीं भारत के साथ नज़दीकियां बढ़ रही है।
कोरोना के मामले में चीन के खिलाफ स्वतंत्र जांच की मांग करने में सबसे आगे रहने वाले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक्शन लेते हुए चीन ने वहाँ से आने वाली जौ पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी थी जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया के ने किसानो को परेशानी का सामना करना पड़ सकता था। परंतु ऐसे समय में भारत Australia के किसानों के लिए मददगार के रूप में सामने आया है। एक रिपोर्ट के अनुसार यह द्वीप देश भारत को जल्द ही 5 लाख टन जौ एक्सपोर्ट कर सकता है।
बता दें कि पहले भारत Australia में पैदा होने वाले जौ का एक्सपोर्ट नहीं करता था। इसका कारण था ऑस्ट्रेलिया में प्रयोग होने वाला phosphine नाम का पेस्टिसाइड। भारत ने फरवरी तक methyle bromide नाम के पेस्टिसाइड वाले जौ ही एक्सपोर्ट करता जिससे इस द्वीप देश से किसी भी प्रकार का बार्ले का एक्सपोर्ट नहीं हो पता था।
परंतु फरवरी महीने में ही methyle bromide से होने वाले नुकसान को देखते हुए इस अवरोध को हटा लिया गया था। जिसके बाद यह खबर आई थी कि जल्द ही ऑस्ट्रेलिया भारत को जौ एक्सपोर्ट कर सकता है लेकिन उसके बाद कोई भी नई खबर नहीं आई। परंतु उसके बाद चीन और Australia के संबंध खराब होते चले गए। कोरोना के मामले में ऑस्ट्रेलिया खुल कर चीन के खिलाफ खड़ा हो गया और वुहान वायरस की उत्पत्ति के बारे में स्वतंत्र जांच की मांग करता रहा। इससे चीन गुस्से से लाल हो कर ऑस्ट्रेलिया को आर्थिक बहिष्कार की धमकी देने लगा। इसके बाद चीन ने ऑस्ट्रेलियाई बार्ली पर 80 प्रतिशत आयात शुल्क बढ़ा दिया। जिससे ऑस्ट्रेलिया के किसानों की मुश्किलें बढ़ गयी थी और साथ ही ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष 500 मिलियन डॉलर का खतरा हो गया था। बता दें कि ऑस्ट्रेलियाई जौ के लिए चीन सबसे बड़ा एक्स्पोर्टर था, जहां इसका उपयोग बीयर बनाने और पशुओं को खिलाने के लिए किया जाता।
चीन ने पिछले वित्तीय वर्ष में ऑस्ट्रेलिया से 2.5 मिलियन टन जौ आयात किया, वहीं 2016-17 में यह आंकड़ा 5.9 मिलियन था। आंकड़ों से पता चलता है कि चीन ने 2018-19 में भी कुल ऑस्ट्रेलियाई जौ के आधे से अधिक का एक्सपोर्ट किया था।
इसलिए चीन का 80 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने से ऑस्ट्रेलिया के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी थी।
इसके बाद Australia के पास कोई विकल्प नहीं बचा था। ऐसे समय में भारत का फरवरी महीने में लिया गया कदम ऑस्ट्रेलिया के लिए अभी वरदान साबित हो रहा है। बता दें कि भारत इससे पहले कनाडा और अर्जेंटीना जैसे देशों से माल्ट जौ खरीदता था। कनाडा में ऑस्ट्रेलिया जैसे अनाज भंडारण के समय कीटों समस्या नहीं है क्योंकि वहाँ अनाज कोल्ड स्टोरेज में स्टोर किया जाता है, जिसका मतलब है कि कनाडा के किसानों को किसी भी पेस्टिसाइड की आवश्यकता नहीं होती।
इस तरह से मुश्किल वक्त में ऑस्ट्रेलिया का साथ देने से अब इन दोनों देशों के बीच संबंध और प्रगाढ़ हो चुके हैं। चीन का मुक़ाबला करने के लिए भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों का एक दूसरे को साथ की आवश्यकता है। ऑस्ट्रेलिया को ट्रेड में भारत के मदद की आवश्यकता पड़ेगी तो वहीं, भारत को हिन्द महासागर में अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ की जरूरत है।
कोरोना के समय में जिस तरह से चीन ने सभी देशों के खिलाफ कदम उठा रहा है उससे कई देश उससे नाराज है और यही समय है कि भारत उन सभी देशों को अपने पाले में कर ले।