थर-थर कांप रहे हैं अशोक गहलोत, उन्हें डर है कि कहीं BJP तख़्तापलट न कर दे

ये डर अच्छा है जी!

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ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा मध्य प्रदेश काँग्रेस छोड़े हुए तीन महीने हो चुके है, पर उसका असर अभी भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर बहुत तगड़ा है। पिछले कुछ दिनों से जनाब की घबराहट सातवें आसमान पर पहुँच गई है।

अभी अशोक गहलोत को भय है कि कहीं कर्नाटक और मध्य प्रदेश की भांति उनके राज्य में भी ‘तख्तापलट’ न हो जाये। इसलिए जनाब अभी से भाजपा के ऊपर विधायकों के खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुए अपने विधायकों को रिसॉर्ट्स में ठहराने में लगे हुए हैं। ऐसा वे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके अनुसार यदि राजस्थान में विधायकों के संख्याबल में कमी पड़ गई, तो गुजरात की भांति राजस्थान से भी राज्यसभा में काँग्रेस के लिए आगे का मार्ग बहुत कठिन होगा।

एएनआई से वार्तालाप के अनुसार अशोक गहलोत कहते हैं, “राज्य सभा के चुनाव नजदीक हैं। इसे दो महीने पहले भी किया जा सकता था, परंतु चूंकि गुजरात और राजस्थान में विधायकों का क्रय विक्रय [खरीद फरोख्त] पूरा नहीं हुआ था, तो इसीलिए उन्होंने रुकवा दिया। चुनाव अब होगा, और [भाजपा के लिए] स्थिति भी अनुकूल है”।

इस बयान के जरिये अशोक गहलोत अपनी ही पार्टी की सच्चाई को सामने रख रहे हैं जो खुद राज्य में बहुजन समाज पार्टी के विधायकों को अपने पाले में करने के लिए दिन-रात एक किये हुए हैं। अब इसे और क्या कहें कि एक राष्ट्रीय स्तर के पार्टी के वरिष्ठ राजनेता इस तरह से अपनी सुध-बुध खोकर दुनिया के सामने अपने मानसिक दिवालियापन और अपनी पार्टी की सच्चाई को खुलेआम प्रदर्शित कर रहे हैं। 18 राज्यसभा सीटों पर प्रस्तावित चुनाव इसलिए स्थगित हुए थे क्योंकि वुहान वायरस के कारण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन घोषित हुआ था, परंतु अभी चुनाव आयोग ने बताया कि 19 जून से चुनाव प्रारम्भ होंगे, और इसीलिए अशोक गहलोत की हवा टाइट हुई पड़ी है।

विघटन का भय?

वैसे भी, वर्तमान घटनाक्रम का अगर विश्लेषण किया जाये तो इससे काँग्रेस के नेतृत्व के अकाल पर भी प्रकाश डाला जा सकता है। पार्टी के सदस्यों में इस बात का संशय है कि उनका भविष्य कैसा होगा, क्योंकि उन्हें दिशा देने वाला कोई भी कुशल नेता अभी पार्टी में मौजूद नहीं है। अक्सर काँग्रेस पार्टी के अंदर की गुटबाजी की खबर यदा कदा सामने आती रही है

ऐसे में विधायकों को रिसोर्ट भेजने का एक ही अर्थ है – इस बढ़ती खाई को कैसे भी करके पाटना। गुजरात में एक के बाद एक 7 से 8 विधायकों के इस्तीफे से अब राज्यसभा में दो सीटें मिलना गुजरात काँग्रेस के लिए लगभग असंभव है। लेकिन अशोक गहलोत तो भाजपा पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। परंतु भाजपा भी कहाँ चुप रहने वाली थी। आईएएनएस से बातचीत में भाजपा के राज्य अध्यक्ष सतीश पूनिया बताते हैं, “ये काँग्रेस द्वारा बनाया एक और हवाई किला है। मैं इन्हे खुलेआम चुनौती देता हूँ कि अपने दावों के लिए सबूत सहित सामने लायें”।

सतीश पूनिया गलत भी नहीं है, क्योंकि ये वही काँग्रेस है, जिसे बसपा के विधायक खरीदने में कोई ग्लानि, कोई पश्चात्ताप नहीं होता। पिछले वर्ष काँग्रेस ने छह बीएसपी विधायकों को अपने पाले में लिया था, जिसके पीछे मायावती ने पार्टी को खूब खरी-खोटी भी सुनाई थी।

निस्संदेह राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की तनातनी की खबरें सामने आई है, परंतु यदि अशोक गहलोत चाहते हैं कि कर्नाटक और मध्य प्रदेश की कहानी राजस्थान में न दोहराई जाये, तो उन्हें बौखलाहट छोड़कर संयम से काम लेना होगा और अपने विधायकों को एक नई दिशा में आगे ले जाना होगा।

काँग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या यही रही है कि गांधी परिवार की खुशामद में ये न तो अपने क्षेत्रीय नेताओं की क्षमताओं को पहचान पाते हैं, और न ही अपने कैडरों को संतुष्ट रख पाते हैं। जिस तरह अशोक गहलोत इस समस्या से निपट रहे हैं, तो उससे तो लगता है कि वे अपनी ही घबराहट और बौखलाहट से अपनी सरकार गिराने में सक्षम है, और किसी और को कुछ करने की कोई आवश्यकता ही नहीं।

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