ओवैसी बिहार के सियासी मैदान में उतर चुके हैं, RJD की वाट लगेगी, BJP को होगा बड़ा फायदा

अब आएगा मजा!

ओवैसी AIMIM

PC: Punjabkesari

बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर हलचल तेज़ हो चुकी है। सभी पार्टियां चुनावी मोड में आ चुकी है। इसी बीच अब यह खबर आ रही है कि हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बिहार विधानसभा चुनाव में 32 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। यही नहीं AIMIM ने गठबंधन की ओर इशारा करते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह समान विचारधारा वाली किसी भी पार्टी से गठबंधन कर सकती है। प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमाम ने बिहार विधानसभा की 243 में से 32 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है।

यह पहली बार है जब ओवैसी  की पार्टी भारत के उत्तरी क्षेत्र में इस स्तर पर चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसा लगता है कि 2019 में बिहार विधानसभा के उपचुनाव में मिली जीत ने ओवैसी को प्रेरित किया है। ओवैसी की पार्टी AIMIM के बिहार आने से चुनावी समीकरण ही बदल जाएंगे और मुस्लिम तुष्टीकरण कर अभी तक मुस्लिम बहुल सीट जीतने वाली RJD और कांग्रेस को अन्य विकल्प तलाशने होंगे। ओवैसी के आने से अगर सबसे अधिक फायदा किसी को होगा तो वह BJP है।

ओवैसी वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव से ही बिहार की राजनीति में आने की कोशिश में लगे हैं। ओवैसी की पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, उस दौरान उनकी पार्टी को सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।

परंतु अक्टूबर 2019 में हुए बिहार के किशनगंज सीट पर उपचुनाव में जीत ने AIMIM के लिए बिहार में दरवाजे खोल दिए। बिहार के सीमांचल क्षेत्र का किशनगंज विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। इस सीट पर वर्ष 2009 से अब तक हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भारी मतों से चुनाव जीतती आई थी। उससे पहले यह सीट RJD के पाले में जाती थी।

ओवैसी की पार्टी की यह जीत सीमांचल की राजनीति में बड़े उलटफेर के संकेत हैं। अब AIMIM ने इस क्षेत्र में अपनी पूरी ताकत झोंकने का फैसला कर लिया है।

इसे निस्संदेह लालू यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव तथा कांग्रेस दोनों को एक खतरे के तौर पर देखना चाहिए क्योंकि AIMIM बिहार के 22 जिले के 32 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने की पहली सूची जारी की है। इन जिलों में अधिकतर मुस्लिम बहुल इलाके हैं। कटिहार के तीन विधानसभा बलरामपुर, बरारी और कदव, पूर्णिया के दो विधानसभा अमौर और बायसी, अररिया में एक विधानसभा जोकीहाट , दरभंगा विधानसभा में एक केवटी जैसे क्षेत्र प्रमुख हैं।

जिस तरह से ओवैसी की AIMIM ने वर्ष 2014 में महाराष्ट्र की 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई थी, इससे कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ था। यही नहीं उनकी पार्टी 2 सीटें जीतने में भी कामयाब रही थी।

ऐसा ही कुछ कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले बिहार के किशनगंज में भी देखने को मिला, जहां ओवेसी ने पार्टी का उम्मीदवार उतार कर कांग्रेस को भारी क्षति पहुंचाई थी। 70 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले किशनगंज में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने उपचुनाव में इस सीट पर जीत दर्ज की। स्पष्ट है ओवैसी की अल्पसंख्यकों के बीच जो छवि है, उससे नुकसान कांग्रेस और RJD को ही होगा क्योंकि ये दोनों पार्टी ही अभी तक बिहार के मुस्लिम वोट बैंक को लुभाती आई हैं।

बिहार की राजनीति में जाति भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। कुछ जातियों को छोड़ दें तो हिन्दुओं का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा है, परंतु ओवैसी के आगमन का अर्थ है कि न केवल RJD और कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगेगी, अपितु बिहार के सीमांचल क्षेत्र से इन दोनों ही पार्टियों का पत्ता साफ भी हो सकता है। अगर AIMIM 3-4 सीट भी जीत लेती है तो बिहार के त्रिकोणिय मुक़ाबले में बहुमत के लिए ओवैसी की पार्टी बेहद महत्वपूर्ण हो जाएगी।

स्पष्ट है ऐसे में सबसे ज़्यादा फ़ायदा BJP को ही होगा। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश के बाद अब AIMIM बिहार और पश्चिम बंगाल में अपनी पैठ बनाने में जुट चुकी है।

बिहार के विधानसभा में तो AIMIM की एंट्री भी हो चुकी है। अब यह देखना है बिहार के विधानसभा के चुनाव में ये पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है। साथ ही सीमांचल की राजनीति पर किस स्तर का प्रभाव डालती है और मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश करने वाली RJD और कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचाती है।

 

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