अमित शाह ने नीतीश कुमार का समर्थन किया है, अब बिहार में BJP की विश्वसनीयता को बड़ा झटका लगने वाला है

Looser नीतीश कुमार के साथ जाना BJP की सबसे बड़ी गलती

नीतीश कुमार, अमित शाह

(PC: zeenews.com)

देश में चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी है, और सभी पार्टियां अपने अपने चुनाव प्रचार में लग चुकी है। बस फर्क इतना है कि इस बार चुनाव रैलियां वर्चुअल हो रही हैं यानि स्क्रीन के जरिए।

बिहार में होने वाले विधान सभा चुनावों के लिए एक बार फिर से गृह मंत्री अमित शाह ने नितीश कुमार के नेतृत्व पर मुहर लगाई है और एक वर्चुअल रैली में ऐलान किया कि अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2 तिहाई बहुमत से एनडीए को जीत मिलेगी।

यह कदम बीजेपी के लिए कितना घातक साबित होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन नीतीश कुमार के घटिया प्रशासन को देखें तो, बीजेपी ने उन पर भरोसा कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। इससे न सिर्फ बीजेपी की जनता के बीच लोकप्रियता गिरेगी, बल्कि कोरोना के समय में बिहार के प्रवासी मजदूरों का नीतीश कुमार के खिलाफ गुस्से का भी सामना करना पड़ेगा जिसकी कीमत वोट होगी।

आज के समय में नीतीश कुमार सबसे घटिया मुख्यमंत्री है और यह आज सभी बिहार के लोग समझते हैं। भले ही राज्य में एक मजबूत विपक्ष नहीं है, लेकिन जिस तरह से नीतीश कुमार ने कोरोना और प्रवासी कामगारों के मामले को और जटिल बनाया है, उससे उनकी लोकप्रियता खत्म हो चुकी है।

कोरोना ने नीतीश कुमार के 15 वर्ष के खोखले प्रशासन, झूठे वादे और विकास की पोल खोल दी है। कोरोना की वजह से बिहार में 15 से 20 लाख तक प्रवासी मजदूर वापस लौटे हैं और राज्य में बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। उन्हें रोजगार की तलाश है लेकिन बिहार की सरकार उन्हें रोजगार देने की हालत में ही नहीं है।

ऊपर से बिहार के ADG का पत्र अलग से बवाल मचा रहा है। उन्होंने एक पत्र लिखा था जिसमें यह कहा गया था कि प्रवासी मजदूरों के वापस आने से बिहार में अपराध बढ़ सकते हैं। ADG अमित कुमार ने 29 मई को लिखे अपने खत में यह भी कहा था कि जरूरी नहीं है कि बिहार लौटने वाले लाखों प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिले। इसके लिए वो अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए अनैतिक और गैरकानूनी काम कर सकते हैं। हालांकि, इस पत्र को 4 जून को वापस ले लिया गया था, लेकिन अब क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत?

विपक्ष भले ही कमजोर है लेकिन जनता तक अपनी बात पहुंचाने का माद्दा रखता है। RJD नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इसी मुद्दे को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और नीतीश कुमार को निशाने पर लिया। यही नहीं उस दौरान उन्होंने उन ADG के पत्र को भी फाड़ डाला।

जनता को तो बस पता चलना चाहिए कि सरकार उनके लिए क्या कर रही है और जब उन 15 लाख प्रवासी मजदूरों को यह पता चलेगा कि सरकार उनपर संदेह कर रही है तो नकारात्मक छवि तो बनेगी ही। नीतीश कुमार ने सिर्फ यही नहीं किया है बल्कि, उन्होंने तो मजदूरों को वापस लाने के लिए भी कुछ नहीं किया था। यह तो भला हो केंद्र सरकार का जिसने श्रमिक ट्रेन चलाई जिससे मजदूरों को राहत मिली नहीं तो हजारों की तादाद में मजदूर शहरों से पैदल ही अपने गाँव की ओर चल पड़े थे।

यही नहीं नितीश कुमार ने तो अपने छात्रों को भी कोटा से वापस लाने से मना कर दिया था।

इन सभी का गुस्सा तो जनता में भरा पड़ा है और ऐसे में नीतीश कुमार को NDA में रखना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। भले ही मोदी सरकार ने श्रमिक ट्रेन चलाई लेकिन बिहार की जनता को यह अंदाजा है कि बिहार में अगर वो NDA को वोट देती है तो फिर से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे और फिर से वही होगा जो पिछले 15 वर्षों से होता आया है यानि कुछ नहीं।

वर्ष 2005 में ही नीतीश कुमार ने वादा किया था कि बिहार के युवाओं को आजीविका की तलाश में बाहर नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन आज भी बिहार के युवाओं को किसी अन्य राज्य जाने का कोई विकल्प नहीं है। यह पलायन घटने की बजाए बढ़ा है और आज बिहार सबसे अधिक रेमिटेन्स पाने वाले राज्य है।  जंगल राज तथा विकास और रोजगार ने ही बिहार से लालू को सत्ता से बेदखल किया था। आज फिर से वही हालत है।

कोरोना ने यह साबित कर दिया है कि नितीश कुमार एक फिसड्डी मुख्यमंत्री हैं। 14 अप्रैल को केवल 66 मामले होने के बावजूद, लॉकडाउन में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़े और अब तक 5,000 से अधिक मामले हो चुके हैं। यानि जब नियंत्रण नितीश के हाथों में था तभी कोरोना के मामले बढ़े।

इन सभी का असर विधान सभा चुनावों में देखने को मिलेगा और नितीश कुमार के लिए चुनाव को जीतना आसान नहीं होगा।  जनता तो नितीश कुमार को वोट नहीं देने जा रही है। अब BJP की जनता में बनी गुडविल को भी नुकसान होगा जो लोक सभा चुनाव के दौरान देखने को मिला था। लोग नितीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते और BJP अगर नितीश के साथ जाती है तो बिहार विधान सभा चुनाव में हार तय हो जाएगी।

 

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