यूके का बड़ा धमाका, ताइवान को घोषित कर सकता है स्वतंत्र देश

ताइवान जल्द ही चीन से आजाद होगा

लगता है चीन के कम्यूनिस्ट शासन का बुरा समय प्रारंभ हो चुका है। हाल ही में ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमिनिक राब ने अपने बयान में ना केवल हॉंग कॉंग में लोकतांत्रिक प्रदर्शनों को अपना समर्थन दिया है, अपितु यह संकेत भी दिया है कि आने वाले समय में ब्रिटेन द्वारा ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देने का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा। ऐसा लगता है कि अब ब्रिटेन अपनी की हुई गलती को सुधारने के लिए कदम बढ़ा रहा है।

दरअसल, हाल ही में प्रेस वार्ता से डोमिनिक राब ने बताया कि ब्रिटेन हॉंग कॉंग पर अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछे नहीं हटने वाला है। बीबीसी से संपर्क के दौरान डोमिनिक राब के अनुसार, “यदि चीन अपनी मनमानी करेगा तो हम भी हाथ पर हाथ नहीं धरा रहेगा। हम हॉंग कॉंग के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकते”। 

हाल ही में ताइवान की राष्ट्रध्यक्ष ट्साई इंगवेन ने हांग कांग के मुद्दे पर ट्वीट करते हुए सूचित किया था कि, “आज मैंने एक्जीक्यूटिव युआन को एक मानवीय सहायता एक्शन प्लान बनाने को कहा, जिसमें हांग कांग से आने वाले नागरिकों के रहने, उनके नौकरी और उनके सुखी जीवन के लिए ताइवान में बंदोबस्त किया जा सके”। अब ब्रिटेन भी ताइवान के साथ आ गया है । पर हॉंग कॉंग को ब्रिटेन के समर्थन से ताइवान के स्वतंत्रता का क्या मतलब? दरअसल, हॉंग कॉंग पर इतना मुखर स्वभाव स्पष्ट संकेत देता है कि अब ब्रिटेन चीन की गीदड़ भभकी से नहीं डरने वाला, बल्कि वह चीन को उसी की भाषा में जवाब देगा। ब्रिटेन चीन के खिलाफ ताइवान की मदद कर चीन के जबरदस्ती के शासन को खत्म करना चाहता है।

ब्रिटिश अखबार द संडे एक्सप्रेस के अनुसार ब्रिटेन ताइवान को अपना पूरा समर्थन देने के लिए तैयार है। रिपोर्ट के अनुसार स्टीव (नाम परिवर्तित) नामक एक सरकारी सूत्र ने कहा कि, “हैरान मत होइएगा यदि हम कुछ समय में ताइवान को मान्यता दें और उसकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दें”।  इसके अलावा ब्रिटेन ने ताइवान को बतौर इंटरपोल का सदस्य बनने का भी समर्थन किया है। बता दें कि इंटरपोल एक वैश्विक पुलिस संगठन है जो अपराधियों को पकड़ने के लिए एक सुनियोजित व्यवस्था के अनुसार विभिन्न देशों की सहायता करता है

फिलहाल, चीन के कारण ताइवान को आधिकारिक मान्यता प्राप्त नहीं है और इसी वजह से ताइवान का यूके में एक अनौपचारिक दूतावास है। परंतु, सूत्रों के मुताबिक “अगर चीन अपने मौजूदा नीतियो पर जारी रहता है तो स्थिति बदल सकती है।”

चीन पहले ही हॉंग कॉंग के विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर चुका है, इससे वह बिना किसी दिक्कत के हॉंग कॉंग के विरोध प्रदर्शन को कुचल सकता है।

तो इस कानुन से ब्रिटेन का क्या काम है? दरअसल, जब 1997 में ब्रिटेन ने एक संधि के अन्तर्गत चीन को हॉंग कॉंग सौंपा था, तो उसकी सबसे बड़ी शर्त थी कि चीन का जैसा प्रशासन है, वैसा प्रशासन हॉंग कॉंग में नहीं होगा। इसीलिए चीन की जनता के मुकाबले हॉंग कॉंग के नागरिकों के पास ज़्यादा स्वतंत्रता है, और वे ज़्यादा बेहतर तरीके से अपनी ज़िन्दगी जी सकते हैं। लेकिन चीन के वर्तमान निर्णय से ना केवल हॉंग कॉंग की स्वायत्ता खत्म हो गयी है बल्कि, चीन ने ऐसा करके ब्रिटेन के साथ की गई संधि का उल्लंघन किया है।

ब्रिटेन के पूर्व मंत्रियों ने एक संयुक्त पत्र में प्रधानमंत्री जॉनसन से आवेदन किया है कि यही समय है, जब चीन के विरुद्ध हॉंग कॉंग और ताइवान पर हो रहे अत्याचारों को लेकर एक मजबूत और वैश्विक स्तर का गठबंधन चीन के विरुद्ध तैयार करे। अब बोरिस जॉनसन भी चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयारी कर रहे है।

ब्रिटेन ने लगता है ब्राज़ील के उदाहरण से काफी अच्छी सीख ली है। अभी कुछ ही दिनों पहले ब्राज़ील के सांसद पाउलो एडुआर्डो मर्टोंस ने एक पत्र की फोटो छापते हुए बताया कि कैसे चीन ब्राज़ील को दबाने का प्रयास कर रहा है।

इस पत्र में ब्राज़ील के सांसदों को चेतावनी दी गई कि वे ताइवान को बधाई के संदेश ना भेजे। बता दें कि ताइवान की राष्ट्राध्यक्ष साई इंग वेन ने भारी बहुमत से आम चुनाव में विजय प्राप्त की थी।

चीन की इस तरह की गुंडई से ब्राज़ील बुरी तरह बौखलाया हुआ है। चीन की धमकी से आग बबूला ब्राजील चीन के विरुद्ध ट्विटर पर अपना आक्रोश जता रहा था। लाखों ब्राज़ील के नागरिक #VivaTaiwan के नाम से ट्वीट कर चीन की हेकड़ी का मुंहतोड़ जवाब देने लगे।

जिस तरह से ब्रिटेन अब खुलकर हॉन्ग कोंग और ताइवान के समर्थन में सामने आया है, वह अपने आप में चीन के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है। इस बार ब्रिटेन ने सदियों बाद एक मिसाल पेश की है। अब समय आ चुका है कि ताइवान की स्वतंत्रता के लिए दुनियाभर के देश एकजुट हों, ताकि चीन पूरी तरह अलग थलग पड़ जाए, और चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी को समझ आ जाए कि पूरी दुनिया केपी शर्मा ओली या यूरोपीय संघ जितनी चाटुकार नहीं है।

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