एशिया को दुनिया पर राज करने से बस एक ही ताकत रोक रही है, वो है चीन की कम्युनिस्ट पार्टी

CCP को हटाओ, एशिया बचाओ!

कम्युनिस्ट पार्टी

(PC: The Diplomat)

जब 21 वीं सदी शुरू हुई थी तब इसे एशियाई सदी का नाम दिया गया था। जिस तरह से 19वीं सदी को ब्रिटेन की सदी और 20वीं सदी को अमेरिका की सदी कहा जाता है, उसी तर्ज पर 21 वीं सदी को एशिया महाद्वीप के देशों की बढ़ती अर्थव्यवस्था, सामरिक महत्व तथा बढ़ते सांस्कृतिक मेल-जोल के लिए यह नाम दिया गया था। तब एशिया के दो प्रमुख देश भारत और चीन तेजी से विकास कर रहे थे। ये नतीजा इन दोनों देशों को देख कर ही निकाला गया था। विश्लेषक तब यह मान रहे थे कि अब समय का चक्र घूमेगा और भारत तथा चीन फिर से विश्व में अपना परचम लहराएँगे। लेकिन आज जैसी स्थिति बनी है, उसके बाद यह कहना अब मुश्किल है क्योंकि जिस तरह से चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी CCP विस्तारवादी सोच रखती है, उससे इस सदी को “एशियाई सदी” कहने पर सवाल खड़े होते हैं।

इतिहास देखा जाए तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि पश्चिमी देशों का उत्थान 1700 AD के बाद आए Industrial Revolution से ही शुरू हुआ। उससे पहले तो पश्चिम के देश एशियाई देशों की बराबरी का सोच भी नहीं सकते थे। तब भारत और चीन इस क्षेत्र में अपनी बुलंदी को पार कर चुके थे। परंतु उसके बाद पश्चिमी देशों ने पूरे एशिया को अपने कब्जे में कर लिया और ऐसा आतंक मचाया कि इन देशों में खाने के लाले पड़ गए। हालांकि चीन और भारत, दोनों ही देशों ने 80-90 के दशक में उदारीकरण के साथ विकास की राह पर दोबारा लौटना आरंभ किया। आज चीन 14 ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा भारत 3 ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। आने वाले दो दशकों में एशियन GDP पश्चिमी GDP को पछाड़ देगी, जिसमें यूरोप और अमेरिका शामिल हैं।

परंतु एशिया के उत्थान में भारत और चीन के बीच पैदा हुए गतिरोध ने सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। आज के दौर में चीन, कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के तहत उसी तरह का विस्तारवादी देश बन चुका है, जिस तरह से यूरोपियन देश 18वीं और 19वीं सदी में थे। अपनी अर्थव्यवस्था की ताकत का गलत इस्तेमाल कर चीन अपने पड़ोसी देशों को अस्थिर करने की तमाम कोशिशें करता है। उदाहरण के लिए चीन का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट BRI देखा जा सकता है कि कैसे BRI के नाम पर चीन ने कई देशों को कर्ज के जाल में फंसाया है।

इतिहास देखा जाए तो इन दोनों ही देशों के बीच संबंध इतने कड़वे नहीं थे, जितना आज हैं। और इन सब की वजह है चीन की सत्ताधारी पार्टी CCP। आज जिस तरह के हालत बॉर्डर पर हैं, वैसे हालात कभी भी 2000 वर्ष पुराने इतिहास में नहीं रहे। यह CCP की विस्तारवादी सोच का ही परिणाम है कि वह अपने पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने के लिए उन्हें बॉर्डर विवाद में उलझाए रखती है। भारत और चीन के बीच सदियों से ही एक अच्छा व्यापार संबद्ध रहा है जो आज भी दिखाई देता है। लेकिन CCP की महत्वकांक्षा ने पहले 1949 में तिब्बत को हड़पा, उसके बाद 1962 में भारत के लद्दाख क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया। उसके बाद अब जिनपिंग की देख रेख में फिर से CCP ने लद्दाख पर अपनी आंखे गड़ाई हुई है। यही हाल अन्य एशियाई देशों का भी है।

जैसे चीन का बॉर्डर विवाद लगभग उसके सभी देशों के साथ, जिससे उसकी सीमा लगती है। ऐसे में कोई भी देश इस तरह की विस्तारवादी सत्ता से दूर ही रहना चाहेगा। अगर किसी भी देश को Mutual respect नहीं मिलती है तो वह कभी भी एक दूसरे का साथ नहीं दे सकते हैं। चीन के इसी रवैये के कारण एशिया के कई देश अमेरिका के साथ गुट बना चुके हैं। अगर सभी देश अमेरिका के साथ चले जाएंगे तो चीन पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाएगा और अगले कुछ दशकों में उसकी कोई हैसियत नहीं रहेगी। अगर CCP इसी तरह से अपने पड़ोसियों को नाराज करने की नीति पर काम करती रही तो वह दिन दूर भी नहीं है।

इसीलिए अगर एशियाई सदी के सपने को साकार करना है तो एक लोकतान्त्रिक चीन का होना आवश्यक है। कम्युनिस्ट चीन के रहते तो यह कभी संभव नहीं हो सकता है। अगर एशिया को पश्चिम को परास्त करना है तो चीन में CCP के पतन के अलावा कोई रास्ता नहीं है। जब तक CCP जैसी पार्टी और शी जिनपिंग जैसे विस्तारवादी सोच रखने वाले नेता चीन की सत्ता में रहेंगे, किसी भी देश का चीन के साथ आना नामुमकिन है।

पूरे एशिया के विकास के लिए इस देश में लोकतन्त्र  होना सबसे आवश्यक है। चीन के लोग मेहनत करते हैं लेकिन सबसे अधिक शोषण उन्हीं का किया जाता है। इसीलिए उन्हें ही अपने देश को और एशिया को बचाने के लिए क्रांति की शुरुआत करनी होगी, जिसका सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद होगा और वह मकसद होगा चीन में लोकतन्त्र की स्थापना करना। लोकतान्त्रिक रूप से चुना गया एक नेता किसी भी स्थिति में अधिक जिम्मेदार होता है। उदाहरण के लिए ताइवान को ही देखा जा सकता है। जब तक चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता है, तब तक माओ और शी जिनपिंग जैसे नेता खड़े होते रहेंगे। अगर इस सदी को एशियाई सदी बनाना है तो विश्व को मिल कर चीन में लोकतन्त्र बहाल करने में चीनी जनता की मदद करनी होगी।

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