चीन किस तरह भारत की पीठ में छुरा घोंपता रहता है, ये किसी से छुपा नहीं है। गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के हाथों बुरी तरह कूटे जाने के बाद भी चीन अपनी आदतों से बाज़ नहीं आया है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट्स की माने तो चीन ने अब भारत के विरुद्ध एक और फ्रंट खोलने का निर्णय लिया है, और वो भी पूर्वी लद्दाख के Depsang plains में।सैन्य भाषा में सब-सैक्टर नॉर्थ के नाम से जाना जाने वाला Depsang Plains का इलाका रणनीतिक लिहाज से काफी अहम माना जाता है, क्योंकि ये उसी दौलत बेग ओल्डी सैक्टर के दक्षिण में स्थित है, जहां पर भारतीय क्षेत्र में हो रहे निर्माण से चीन बौखलाया हुआ है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट्स की माने तो दौलत बेग ओल्डी सेक्टर के पूर्व में चीनियों ने फिर से अपनी सक्रियता बढ़ानी शुरू कर दी थी। परंतु चीन का दुर्भाग्य देखिये, यहाँ पर उनकी सक्रियता अनदेखी नहीं रही है, और मई से ही इस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना के जवान उनपर कड़ी नज़र बनाए हुए हैं।
परंतु Depsang plains इतना अहम क्यों माना जाता है? इसके लिए हमें 1962 के भारत चीन युद्ध की ओर ध्यान देना होगा, जहां चीनी सेना ने पूरे Depsang plains पर कब्जा जमाया हुआ था। 2013 में भी चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में 19 किलोमीटर तक घुस आई थी, जिसके कारण तीन हफ्ते तक बॉर्डर पर तनातनी रही थी। Depsang इसलिए भी चिंता का विषय रहा है, क्योंकि ये लद्दाख का एकमात्र ऐसा हिस्सा है, जो वाहनों के लिहाज से काफी सुगम है, और यहाँ यदि चीन light armoured वाहन ले आया, तो भारत के लिए स्थिति काफी गंभीर हो सकती है।
इतना ही नहीं, जिस जगह 15 जून को भारत और चीन की सेनाओं के बीच खूनी झड़प हुई थी, उसी गलवान घाटी के पेट्रोलिंग पॉइंट 14 पर फिर से चीनी गतिविधियां देखी जा रही हैं। इसका मतलब स्पष्ट है – चीन न केवल भारत को उल्लू बनाने की जुगत में लगा हुआ है, अपितु वह गलवान घाटी पर किसी भी प्रकार से कब्जा जमाना चाहता है –
Movements in Galwan PP14. Will update details shortly. Also expect updates from me on Pangong & Depsang sectors today. Meanwhile, @detresfa_ has just put out June 22 (day of Lt Gen meet) sat image of site of June 15 clash. #IndiaChinaFaceOff pic.twitter.com/nihj2PFxCj
— Shiv Aroor (@ShivAroor) June 24, 2020
बात करे गलवान घाटी की, तो ये गलवान और श्योक नदी के मिलन के स्थान पर स्थित है। इसे भारतीय सैन्य सर्कल्स में ‘Estuary’ भी बोलते हैं। कई वर्षों से एलएसी को आधिकारिक रूप से गलवान और श्योक के मिलन स्थल के पूर्व में स्थित माना जाता रहा है। इसी गलवान घाटी के भारतीय क्षेत्र में पेट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 स्थित हैं।
लेकिन चीन का कहना है की पूरी की पूरी गलवान घाटी उसकी है। चीनी सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियान ने यहाँ तक कह दिया , “ये तो भारत है जो समझौते के विरुद्ध गया है। पहले भारत ने वादा किया कि वह सेना को गलवान घाटी से हटा देगा, और दोनों पक्षों ने समझौते के अनुसार गलवान नदी के estuary पर observation पोस्ट्स लगाने की भी बात की, लेकिन भारतीय पक्ष ने समझौते का उल्लंघन करते हुए एलएसी को पार किया”।
इस पूरे प्रकरण से एक बात तो स्पष्ट है – चीन किसी भी तरह लेह को दौलत बेग ओल्डी से जोड़ने वाली रोड को बनने से रोकना चाहता है। दौलत बेग ओल्डी में भारत का सबसे ऊंचा एयरस्ट्रिप है, और अगर इसे जोड़ने वाली दरबुक श्योक दौलत बेग ओल्डी रोड का निर्माण एक बार पूरा हो गया, तो भारत को चीन से बॉर्डर पर भिड़ने में या उसकी नापाक गतिविधियों पर नज़र रखने में कोई भी समस्या नहीं आएगी। यही रोड भारत डेप्सांग प्लेन्स से भी जोड़ती है, जो काराकोरम पास से अधिक दूर नहीं है, और चीन इसका निर्माण रोक भारत को काराकोरम और दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र से दूर रखना चाहता है।
इसके अलावा सब-सेक्टर नॉर्थ अथवा डेप्सांग प्लेन्स सियाचिन ग्लेशियर के पूर्व में स्थित है, और ऐसे में भारत को सुनिश्चित करना पड़ेगा कि चीन की यह आक्रामकता किसी भी स्थिति में कामयाब न हो, अन्यथा भारत दौलत बेग ओल्डी के साथ साथ विश्व के सबसे ऊंचे युद्धस्थल पर अपना नियंत्रण खो बैठेगा। इसके अलावा डेप्सांग प्लेन्स ही वो जगह है, जो भारत को चीन के कब्जे में स्थित अक्साई चिन का access दे सकती है। ऐसे में जहां चीन ने एक बार फिर अपने इरादे जगजाहिर किए हैं, तो वहीं भारत ने भी इस बार मोर्चा संभाल लिया है। यह तो स्पष्ट है कि भारत-चीन के बीच सीधी झड़प में भारत का ही पलड़ा भारी रहने वाला है।