चीन को तो ठोको ही ठोको! दुनिया को इसके बाद चीन के चेले यूरोपियन यूनियन को भी ठोकना होगा

गुरु और चेले-दोनों की तसल्ली बक्श मरम्मत होनी चाहिए!

यूरोपियन यूनियन

(PC: Anadolu agency)

एक तरफ दुनिया कोरोना फैलाने की वजह से चीन का बहिष्कार करने की मुहिम चला रही है, तो वहीं दूसरी तरफ यूरोपियन यूनियन चीन के साथ इनवेस्टमेंट के लिए उच्च स्तरीय strategic dialogue कर रहा है। यानि एक तरफ दुनिया चीन को उसके किए की सजा देने के लिए उससे किनारा कर रही है, तो वहीं EU उसे सहारा दे रहा है। जिस तरह से यूरोपियन यूनियन चीन के समर्थन में दिख रहा है उससे यह संगठन भी चीन जितना ही दोषी माना जाना चाहिए और विश्व के ताकतवर देशों द्वारा चीन को सबक सिखाने के बाद उन देशों को यूरोपियन यूनियन को भी दंड देने की कार्रवाई शुरू करनी होगी।

दरअसल, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चीन और यूरोपीय संघ के बीच उच्च स्तरीय रणनीतिक वार्ता का 10 वां दौर मंगलवार को आयोजित किया गया जहां दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने को लेकर चर्चा की। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वार्ता चीन और यूरोपीय संघ के बीच शिखर सम्मेलन और investment treaty का रास्ता साफ करेगी। यही नहीं, इस रिपोर्ट में EU की खूब तारीफ की गयी है। इसके अलावा, जर्मनी जैसे देश, जो चीन के ऊपर प्रतबंध लगाने के खिलाफ हैं, उनकी भी खूब तारीफ की गयी है। साथ ही साथ, EU को अमेरिका के चीन विरोधी ब्लॉक में शामिल न होने के लिए भी सराहा गया है।

इससे स्पष्ट होता है कि जब यूरोप के लोग चीन के वुहान से फैली कोरोना महामारी से तबाह हो रहे हैं, तब EU चीन के साथ अपने रिश्ते बढ़ाने में लगा है। यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने निर्विरोध रूप से चीन के समर्थन में अपना पक्ष रखा है। यूरोपियन यूनियन ने चीन के साथ अपनी वफादारी दिखाते हुए दुनिया के सभी देशों के साथ तगड़ा धोखा किया है। कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित होने के बावजूद यूरोपीय संघ चीन का साथ दे रहा है और उसके द्वारा फैलाये गए इस वायरस के कारणों को छिपाने में चीन की मदद कर रहा है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस तरह से चीन का साथ देकर यूरोपियन यूनियन ने सभी देशों की पीठ में छुरा घोंपा है। यही नहीं, अब WHOसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद यूरोपीय संघ ने WHO का भरपूर समर्थन करने का वादा किया है। परन्तु यह पहला ऐसा मामला नहीं था। इससे एक महीने पहले चीन ने यूरोपीय संघ पर दबाव डाला था ताकि वो वुहान वायरस पर आधारित रिपोर्ट में संशोधन करे और चीन विरोधी शब्दो का इस्तेमाल न करे। इसके बाद EU ने अपनी उस रिपोर्ट को बदलकर उसमें से चीन-विरोधी सामाग्री को हटा दिया।

इससे ये भी स्पष्ट होता है कि जब कठोर कदम उठाने का वक्त आता है तो ये संघ डर के मारे अपने कदम पींछे खींच लेता है। टाइम्स में लिखे एक लेख में यूरोपीय संघ के एक राजनयिक Lutz Güllnerने कहा था कि ‘original रिपोर्ट के सामने आने के बाद से चीन ने धमकी देना शुरू कर दिया था’।

यही नहीं इसके बाद भी यूरोपियन यूनियन इसी तरह की हरकतें करता रहा। जब ऑस्ट्रेलिया ने चीन के खिलाफ जांच करने की मांग की, तो EU ने एक  बेहद घटिया प्रस्ताव WHO की जनरल असेंबली में पेश कर दिया, जिसमें जांच तो छोड़िए, वुहान और चीन का नाम तक शामिल नहीं था। इसी ड्राफ्ट में ऑस्ट्रेलिया द्वारा दिये गए सुझाव को हटा कर एक सामान्य जांच में परिवर्तित कर दिया गया था।

EU ने सिर्फ चीन को बचाया ही नहीं बल्कि रणनीतिक रूप से भी यूरोपियन यूनियन चीन को खतरा नहीं मानता।  ऐसा लगता है कि यूरोपीय संघ अपनी प्रासंगिकता को समाप्त करने पर तुला हुआ है। जर्मन चांसलर और परोक्ष रूप से यूरोपीय संघ को चलाने वाली एंजेला मार्केल बीजिंग के तलवे चाट रही हैं। चेक गणराज्य, एस्टोनिया, स्वीडन और फ्रांस जैसे यूरोपीय संघ के सदस्यों ने चीन के खिलाफ खुल कर बात की है, लेकिन यूरोपीय संघ ऐसे देशों को नजरंदाज कर रहा है। यूरोपियन यूनियन के इस तरह से चीन का साथ देने के कारण EU भी उतना ही दोषी है जितना चीन। इस लिए विश्व के ताकतवर देशों को चीन को सबक सिखाने के बाद यूरोपियन यूनियन को भी दंड देना चाहिए।

 

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