सरकार ने सफ़ूरा की जमानत का विरोध नहीं किया, क्योंकि वो प्रेगनेंट है, ये तो दंगाइयों की चाँदी हो गयी

क्या प्रेगनेंट अपराधी, अपराधी नहीं होता?

सफूरा जरगर

PC: Zee News

दिल्ली में CAA के विरोध के नाम पर दंगे भड़काने के मामले में आरोपी सफूरा जरगर को दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत दे दी है। सफूरा गर्भवती हैं और मानवीय आधार पर अदालत ने उनकी जमानत मंजूर की है। हैरानी की बात तो यह है कि केंद्र सरकार ने इस जमानत को दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा मानवीय आधार पर दिये जाने का कोई खास विरोध नहीं किया। इस तरह दिल दहला देने वाले दिल्ली दंगों के आयोजन में भूमिका के लिए गिरफ्तार सफूरा को बेल मिल जाने से न सिर्फ पूरा देश हैरान है बल्कि अब इन आरोपियों को भी बल मिला है।

हालांकि, सफूरा को दिल्ली हाईकोर्ट से पहले पटियाला हाउस कोर्ट के एडिशनल सेशंस जज धर्मेन्द्र राणा ने याचिका को ठुकराते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि जब आप अंगारो के साथ खेलते हैं, तो चिंगारी से आग भड़कने के लिए हवा को दोष नहीं दे सकते। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा था कि, “जांच के दौरान एक बड़ी साजिश देखी गई और अगर पहली नजर में साजिश, कृत्य के सबूत हैं, तो किसी भी एक षड्यंत्रकारी द्वारा दिया गया बयान, सभी के खिलाफ स्वीकार्य है।”

जब से सफूरा के बेल याचिका को पटियाला हाउस कोर्ट ने खारिज किया था तब से ही पूरा लेफ्ट लिबरल गैंग मोदी सरकार पर लगातार हमले कर रहा था। इस गैंग का शुरू से यही कहना था कि सफूरा जरगर गर्भवती है इसी कारण से उसे गिरफ्तार ही नहीं किया जाना चाहिए था। सफूरा जरगर के गिरफ्तार होने के बाद सोशल मीडिया पर कई कैंपेन चलाये गए और इसे अमानवीय कृत्य करार दिया गया। हालांकि, किसी भी कमजोरी को विक्टिम कार्ड के रूप में इस्तेमाल करने की वामपंथियों की आदत होती है और यहीं पर मोदी सरकार कमजोर पड़ गयी।

दिल्ली पुलिस की तरफ़ से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मानवीय आधार पर ज़मानत का विरोध नहीं किया और उनके द्वारा कोई विरोध न करने के कारण सफूरा को जमानत दे दी गयी।

मेहता ने आगे तर्क दिया कि यह दर्ज किया जाना चाहिए कि इस जमानत का मानवीय आधार होने के कारण विरोध नहीं किया जा रहा और इसका जमानत याचिका के गुणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

परंतु यहा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार को दिल्ली दंगों जैसा भयानक दंगे की आरोपी पर मानवीय आधार पर बेल मान लेनी चाहिए थी? क्या इस मानवीय आधार से अंकित शर्मा वापस आएंगे? शायद नहीं ।

सोमवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को स्पष्ट शब्दों में कहा था कि सफूरा जरगर को गर्भवती होने के आधार पर बेल नहीं मिलनी चाहिए। दिल्ली पुलिस ने बताया था कि कानून इस आधार पर भेदभाव नहीं करता है और पहले ही पिछले एक दशक में 39 बच्चों का जन्म जेल के अंदर हो चुका है।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि जब अन्य मामलों में आरोपियों को बेल नहीं दी गयी तो सफूरा को क्यों? क्या सफूरा जरगर को बेल मिलना उन 39 आरोपियों के साथ नाइंसाफी नहीं है? आखिर केंद्र सरकार ने इस बेल का विरोध क्यों नहीं किया?  क्या मोदी सरकार लेफ्ट लिबरल कबाल को खुश करना चाहती है? ये वही इकोसिस्टम है जो आज भी देश के अंदर तक घुसी हुई है और देश में चल रहे नैरेटिव को हवा देती है।

क्या मोदी सरकार इसी गैंग को लुभाना चाहती है और यह चाहती है कि ये सभी सरकार को फासिस्ट कहना बंद कर दें? अगर ऐसा है तो यह भारी भूल है और इसका परिणाम भविष्य में ही सामने आएगा।

बेल के बाद भी मोदी सरकार को गाली देने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है और इस गैंग के foot soldiers से लेकर इसे चलाने वाले सभी अब यह कह रहे हैं कि सफूरा जरगर को गिरफ्तार ही नहीं किया जाना चाहिया था और ये केस ही नहीं दर्ज किया जाना चाहिए था।

इन इस्लामिस्ट और वामपंथियों की नेक्सक्स द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि उन्हें मोदी सरकार पर जीत मिली है। इसी गैंग की एक सदस्य सागरिका घोष ने तो यह तक ट्वीट कर दिया कि “एक पुलिस-डीएसपी दविंदर सिंह जो हिजबुल के आतंकवादी है, उसे  आसानी से जमानत मिल जाती है क्योंकि पुलिस 6 महीने में चार्जशीट दाखिल करने में विफल है। और एक कथित भड़काऊ भाषण के आरोपी एक गर्भवती #SafooraZargar को हालांकि जमानत से वंचित रखा गया है। गोलमाल है भाई, सब गोलमाल है।”

यहाँ ध्यान देने वाली बात है वो ये नहीं बताती है कि दिल्ली पुलिस ने दविन्दर को दूसरे मामले के लिए पकड़ा था और दविन्दर अभी भी NIA की custody में है।

पर वामपंथियों से तथ्यों की उम्मीद करना मुर्खता ही होगी। इसी तरह कांग्रेस के कई लोगों ने भी सफूरा जरगर के मामले को दविन्दर सिंह के मामले से तुलना की और मोदी सरकार को निशाना बनाया।

इससे यह स्पष्ट होता है कि अगर केंद्र सरकार इन्हें खुश करने की कोशिश कर रही है तो यह कभी नहीं होने वाला है। वामपंथियों का गैंग मोदी सरकार को फासिस्ट और मुस्लिम विरोधी करार दे कर अपने सभी हितों को साधने के लिए दबाव बनाता रहेगा।

अगर सफूरा जरगर के अपराधों की बात करें तो वह कोई छोटा-मोटा अपराध नहीं है। सफूरा जरगर पर पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़काने का आरोप है, जिसके कारण अनेक निर्दोष लोग दंगाइयों के हाथों मारे गए। गर्भावस्था के आधार पर वामपंथी सफूरा को ज़मानत देना दंगे में मारे गए बेकसूर निवासियों का उपहास है। सच कहें इस तरह से मानवीय आधार पर जमानत दिये जाने से अब लिबरल गैंग के हाथ एक और हथियार लग गया है जिसका इस्तेमाल वे आगे भी करने से नहीं हिचकिचाएँगे।

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