गलवान घाटी में उत्पन्न तनाव ने 15 जून की रात एक भयानक मोड़ लिया था, जब चीन के सैनिकों ने धोखे से क्षेत्र में de escalation के कार्य को सुपरवाइज कर रहे भारतीय सैनिकों की टुकड़ी पर हमला कर दिया। इस हिंसक झड़प में बिहार रेजीमेंट के कर्नल संतोष बाबू सहित 20 भारतीय सैनिक हुतात्मा हुए, जबकि 40 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराने में भारतीयों ने सफलता पाई।
अब जैसे-जैसे इस घटना से जुड़े तथ्य सामने आ रहे हैं, उनसे एक बार फिर सिद्ध हुई है – भारतीय सैनिकों के शौर्य और उनके अदम्य साहस की कोई तुलना नहीं हो सकती। कहा जा रहा है कि चीन के कब्ज़े को हटाने गए भारतीय सैनिकों की जो टुकड़ी गई थी, वो चीनी सैनिकों के मुक़ाबले काफी कम थी। कुछ रिपोर्ट्स का मानना है कि भारत के 21 सैनिकों को चीन के 300 से अधिक सैनिकों का सामना करना पड़ा, जबकि कुछ रिपोर्ट्स का मानना है कि करीब भारतीय सैनिकों की एक पूरी कंपनी पर चीन के 300 से अधिक सैनिकों ने धावा बोल दिया था।
इन्ही रिपोर्ट्स में से एक रिपोर्ट के अनुसार कर्नल संतोश बाबू सहित गलवान घाटी में तैनात बिहार रेजीमेंट की एक टुकड़ी चीनी सेना द्वारा एक कृत्रिम पहाड़ी पर किए गए कब्ज़े को हटाने गयी थी। हाल ही में हुई सैन्य अफसरों की वार्ता के अनुसार चीन को अप्रैल वाली position में वापस लौटना था। इसी वार्ता के मुताबिक चीनी सैनिकों को सोमवार तक अपनी मौजूदा स्थिति से पीछे हट जाना था।
जब सोमवार रात तक चीनी सैनिक वहां से नहीं हटे तो 16,बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर वी. संतोष बाबू चीनी अधिकारियों से बात करने के लिए गये। उनके साथ कुछ भारतीय सैनिक भी थे। इसी दौरान चीनी सैनिकों ने संतोष बाबू से हाथापायी शुरू कर दी। वे जानते थे कि इस लड़ाई में गोली नहीं चलानी है क्यों कि इससे भारत और चीन में युद्ध शुरू हो जाएगा, जो उसके लिए किसी आपदा से कम नहीं होगा।
कुछ चीनी सैनिकों ने कील लगे लोहे के ग्लब्स पहन रखे थे। कुछ के हाथ में रॉड और डंडे थे। 300 चीनी सैनिकों ने बिहार रेजिमेंट के सैनिकों को घेर लिया और हमला बोल दिया। भारत के वे सैनिक वीरता से लड़ते रहे। कृत्रिम पहाड़ी इस लड़ाई का भार नही उठा सकी और वह अचानक ढह गयी। उसके बगल में ही एक खाई थी जिसमें बर्फिला पानी भरा हुआ था। इस पानी में गिरने की वजह से भारत के 20 सैनिकों के हुतात्मा होने की खबर आई है। खबरों के के मुताबिक चीनी के भी 43 सैनिक हताहत हुए हैं।
यह कोई पहली बार नहीं नहीं है जब चीन ने छल से भारतीय सैनिकों की हत्या की हो। जब 1962 में चीन ने भारत पर हमला बोला था, तो उसके सैनिकों ने नामका चू में स्थित राजपूत रेजीमेंट के जवानों पर तब धावा बोला, जब आधे से अधिक सैनिक सो रहे थे। चीन के दुर्दांत सैनिकों ने निहत्थे जवानों की हत्या करने में तनिक भी झिझक नहीं दिखाई। लेकिन जहां भी भारतीय जवान सतर्क थे, वे कम संख्या में होने के बावजूद चीनियों को दुम दबाकर भागने पर विवश कर देते थे। रेजांग ला की लड़ाई में केवल 124 जवानों ने अंतिम श्वास तक लड़ते हुए 2000 से अधिक चीनी सैनिकों को दिन में तारे दिखा दिये, और करीब 1350 सैनिकों को धाराशायी भी किया। इसके अलावा 1967 की कुटाई के तो क्या ही कहने!
गलवान घाटी में जो हुआ, उससे पूरा देश आक्रोशित है, लेकिन उन्हे बिहार रेजीमेंट के उन जवानों पर गर्व भी है, जिन्होंने मरते दम तक शत्रुओं से नाकों चबवा दिये थे। आशा है कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, और चीनियों को ऐसा सबक मिलेगा कि वे जीवन भर याद रखें।