PM मोदी के राज में अब PLA भारत की ज़मीन नहीं हड़पती, अब भारतीय सेना नाकों चने चबवाती है

अब चीन को पता चली 52 इंच के सीने की ताकत!

मोदी

पिछले 1 महीने से भारत चीन सीमा पर लगातार भारतीय और चीनी सेना एक दूसरे का डटकर मुकाबला कर रहे हैं। चीन ने जहां एक तरफ अपनी सीमा पर भारी हथियारों को तैनात कर दिया है तो वहीं भारतीय सेना भी चीनी सेना के मुताबिक अपनी तैयारी पक्की कर चुकी है। वर्ष 2017 के डोकलाम विवाद के बाद भारत और चीन के बीच होने वाला यह पहला बड़ा विवाद है। गौर करने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समय भारत और चीन के बीच विवाद की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। बड़ा सवाल यहां यह है कि क्या वर्ष 2014 से पहले चीन की ओर से ऐसी आक्रामक घटनाएं नहीं होती थी?

इसका जवाब है, हां। वर्ष 2014 से पहले भी चीन ऐसे ही भारत बॉर्डर पर अपनी आक्रामकता दिखाता था। हालांकि, तब भारतीय सरकार चीन के सामने घुटने टेकने में देर नहीं लगाती थी। प्रधानमंत्री मोदी घुटने टेकने वालों में से नहीं हैं। वर्ष 2014 के बाद से जब भी चीन ने सीमा पर आक्रामकता दिखाई है, तब तब भारत ने भी चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है, जो बाद में सीमा विवाद में बदल जाता है। इसीलिए पहले हमने देखा वर्ष 2017 में डोकलाम विवाद हुआ और अब 2020 में लद्दाख में भारतीय और चीनी सेनाएं एक दूसरे के आमने सामने खड़ी हैं।

कांग्रेस के समय भारत सरकार कितनी कायर हुआ करती थी इसका एक उदाहरण हमें वर्ष 2013 में देखने को मिलता है, जब चीनी सेना ने भारत के लगभग 20 किलोमीटर अंदर आकर अपना डेरा डाल लिया था और भारत के लगभग 640 स्क्वेयर किलोमीटर एरिया को अपने पश्चिमी हिस्से में मिला लिया था। चीनी सेना ने तब भारतीय सेना को दौलत बेग ओल्डी के पास राकीनाला तक जाने नहीं दिया था और उसे अपना हिस्सा बताया था। इस सब के बावजूद  तब भारत सरकार लगातार किसी भी चीनी आक्रामकता से इंकार करती रही थी।

कांग्रेस की सरकारों ने कभी खुलकर चीनी आक्रामकता का जवाब ही नहीं दिया, जिसके कारण कभी भारत और चीन के बीच विवाद पैदा ही नहीं हुआ। भारत सरकार चीन को लेकर इतना कायरता-पूर्ण रवैया अपनाती थी, कि भारत ने कभी चीन सीमा पर सड़कों का निर्माण तक नहीं किया, क्योंकि भारत सरकार को लगता था कि अगर चीन दोबारा वर्ष 1962 जैसा हमला करेगा तो उन्हें उन सड़कों के जरिये भारत के अंदरूनी हिस्सों की तरफ आने में आसानी हो जाएगी। हालांकि, मोदी सरकार ने आते ही अपनी रणनीतिक सड़कों को बनाने पर ज़ोर दिया। यही कारण है कि भारत की Border Roads Organisation और चीन की PLA में अक्सर विवाद देखने को मिलता रहता है।

वर्ष 2019 में भारत ने भारत-चीन सीमा पर 61 रणनीतिक सड़क बनाने का प्रस्ताव रखा था और इसके एक साल के अंदर-अंदर ही भारत ने भारत-चीन सीमा पर अपनी 75 प्रतिशत सड़कों का निर्माण कर लिया। हाल ही में भारत ने अरुणाचल प्रदेश के दूरगामी पूर्वी इलाके में एक पुल को भी खोला था, जो भारतीय सेना को चीनी सीमा पर भारी हथियार पहुंचाने में आसानी प्रदान करेगा।

चीन ने लद्दाख में भारत द्वारा बनाई जा रही सड़क पर अपनी आपत्ति जताई थी, लेकिन भारत ने अभी चीन को साफ शब्दों में यह संकेत दे दिया है कि वह बॉर्डर पर अपनी सड़कों का निर्माण किसी भी सूरत में नहीं रोकेगा। भारत के इस रुख से साफ है कि इस बार भी चीन को डोकलाम जैसा ही हश्र देखने को मिलेगा, क्योंकि भारत में अब भी प्रधानमंत्री मोदी ही सत्ता में हैं।

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