भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव ने कई देशों को अपना पक्ष चुनने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत का पड़ोसी और हाल ही में सीमा पर भारत के क्षेत्रों को अपने नक्शा में दिखा कर विवाद खड़ा करने वाला नेपाल भी इसी दुविधा में फंसा हुआ है। अब इस मामले पर नेपाल सरकार में दो फाड़ देखने को मिल रही है। एक तरफ जहां नेपाल के प्रधानमंत्री ओली और उनके समर्थक चीन की गोद में बैठना चाहते हैं। वहीं दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और उनके साथ कई बड़े नेता चीन के प्रति इस झुकाव का विरोध कर रहे हैं। इससे न सिर्फ नेपाल की NCP दो धड़े में बंट गई, बल्कि सरकार गिरने के कगार पर आ गयी है।
दरअसल, जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार नेपाल की NCP ने चीन की सत्ताधारी CCP यानि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मीटिंग रखी थी जिसमें नेपाल के पूर्व पीएम माधव कुमार नेपाल समेत पार्टी के कई बड़े नेता शामिल नहीं हुए। अब इन नेताओं ने सवाल उठाए हैं कि जब भारत-चीन के बीच लद्दाख में LAC के मुद्दे पर तनाव चल रहा है और दोनों देश की सेना एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोले है, तब NCP ने ऐसी मीटिंग क्यों बुलाई?
रिपोर्ट्स के अनुसार CCP द्वारा आयोजित इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की अध्यक्षता उप प्रधानमंत्री ईश्वर पोखरेल ने की लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल, जो पार्टी के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाग के प्रमुख भी हैं, उन्हें इस मीटिंग के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। माधव कुमार नेपाल और पार्टी के वरिष्ठ नेता झलनाथ खनाल चार घंटे की इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मीटिंग से दूर रहे।
इससे नेपाल की NCP में चल रहा विवाद स्पष्ट रूप से सामने आ गया है। पार्टी के इस तरह से चीन की CCP के कहने पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को आयोजित करने पर एक अन्य वरिष्ठ नेता का कहना है कि, “यह बेहद आपत्तिजनक है कि पार्टी ऐसे समय में चीनी समकक्षों की सह-मेजबानी कर रही है, जब नेपाल-भारत के संबंध सीमा विवाद और संवैधानिक संशोधन की वजह से तनावपूर्ण स्थिति में है। इसके अलावा, भारत और चीन भी तनाव के दौर से गुजर रहे हैं और दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़पें हुई हैं।’ इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि, “ऐसे समय में चीन की गोद में जाना क्योंकि भारत के साथ हमारा सीमा विवाद हैं, कहीं से भी उचित नहीं है। यह न तो बुद्धिमानी का फैसला है और न ही हमारी पार्टी की यह नीति रही है।“
यही नहीं नेपाल की सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टी दोनों ने इस मीटिंग के समय पर सवाल उठाए जा रहे हैं। नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री और विदेश मामलों के मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ ने भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के समय, इसकी मंशा और गोपनीयता पर सवाल उठाए हैं।
बता दें कि कुछ भारत-चीन विवाद तथा भारत नेपाल-विवाद से पहले से ही नेपाल की सत्ताधारी पार्टी में फूट पड़ चुकी थी, तब पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड और NCP के वरिष्ठ नेता माधव कुमार पीएम ओली से नाराज हो गए थे और उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा था। तब चीन के प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप के बाद ओली की सरकार बची थी जिसके बाद से ही नेपाल के पीएम केपी ओली ने भारत विरोधी रुख अपनाया हुआ है। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म मई 2018 में ओली के CPN-UML और पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के Maoist Centre के बीच विलय से हुआ था।
अब भारत और चीन के बीच विवाद से इस गठबंधन में फूट पड़ चुकी है जिसके बाद नेपाल की सरकार गिरने की नौबत आ चुकी है। नेपाल की सरकार में अभी भी कुछ नेता ऐसे हैं जो भारत के साथ अपने रिश्तों का मूल्य समझते हैं और इसे खराब नहीं होने देना चाहते हैं। शायद इसीलिए ये सभी चीन की सत्ताधारी पार्टी CCP द्वारा आयोजित इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं। अगर यह मामला बढ़ता है तो वह दिन दूर नहीं जब ओली को अपने पीएम पद से इस्तीफा देना पड़े।