चीनी धुन पर नाचने वाली ओली सरकार ने अब Hong-Kong में चीन की गुंडागर्दी का किया खुला समर्थन

नेपाल सरकार अपना होश खो चुकी है

नेपाल

(PC: India TV)

आज कल भारत के पड़ोसी देश नेपाल चीन की गोद में बैठे किसी पालतू की तरह व्यवहार कर रहा है और चीन के सभी फैसलों का समर्थन कर रहा है। इसी कड़ी में अब नेपाल ने चीन के हाँग-काँग में लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का भी समर्थन किया है। एक तरफ दूसरे देश चीन के इस कदम को हाँग-काँग की स्वतन्त्रता पर हमला बता रहे हैं, तो वहीं नेपाल ने अब इसमें भी चीन का ही साथ देने का ऐलान किया है।

मीडिया के सवालों के जवाब में, नेपाली सरकार ने बुधवार को चीनी के कानून का समर्थन किया जिससे Hong-kong में लोकतन्त्र के लिए हो रहे प्रदर्शन को दबाने के लिए पारित कराया गया है।

विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता भारत राज पौडयाल ने कहा, “नेपाल अपनी एक चीन नीति को दोहराता है और Hong-kong को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का अभिन्न अंग मानता है।शांति, कानून और व्यवस्था बनाए रखना एक राष्ट्र की प्राथमिक जिम्मेदारी है। नेपाल किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति में यकीन करता है और Hong-kong में कानून-व्यवस्था को लेकर चीन की कोशिशों का समर्थन करता है।’

Hong-Kong को इस कानून के जरिये पूर्ण रूप से चीन में मिलाने के लिए चीन की इस चाल के समर्थन में गिने चुने देश हैं और नेपाल अब उनमें से एक बन गया है। यह समर्थन ऐसे समय में आया है जब भारत के साथ उसके संबंध बेहद खराब हैं और नेपाल ने भारत पर उसके क्षेत्र को कब्ज़ाने का आरोप लगाया है

हाल ही में चीनी सरकार ने हाँग-काँग में विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू करने की मंजूरी दे दी है, जिसके बाद हाँग-काँग की स्वायत्ता खतरे में आ जाएगी। चीन द्वारा उठाया जा रहा है यह कदम पूरी तरह गैर-कानूनी है क्योंकि 19 दिसंबर 1984 को चीन और ब्रिटेन के बीच Sino-British joint declaration सहमति बनी थी, जिसके मुताबिक वर्ष 1997 से लेकर अगले 50 वर्षों तक यानि वर्ष 2047 तक Hong-Kong को अपने basic law के तहत कुछ स्वायत्ता प्राप्त रहेगी। इस स्वायत्ता के तहत Hong-Kong के लोगों को प्रदर्शन करने और सरकार का विरोध करने की आज़ादी हासिल है।

ऐसे में पश्चिम के देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन चीन के खिलाफ खुल कर सामने आ चुके हैं। अमेरिका और ताइवान ने अपने यहाँ ना सिर्फ हाँग-काँग के क्रांतिकारियों को शरण देने की बात कही है, बल्कि हाँग-काँग में लोकतन्त्र का समर्थन भी किया है। इसके साथ ही अमेरिका भी चीन को उसके कदम के गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे चुका है।

लेकिन फिर भी चीन की सरकार हाँग-काँग के रुख को लेकर अड़ी हुई है। ऐसे में चीन और लोकतंत्र को एक दूसरे का विपरीतार्थक शब्द अगर कहा जाए तो इसमें कोई समस्या नहीं होगी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार न सिर्फ लोकतंत्र का गला घोटने में माहिर है, बल्कि अपने विरोधियों को भी समाप्त करने में सबसे आगे है। शी जिनपिंग भी उसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं और अपने खिलाफ उठने वाले सभी विरोधी स्वरों को कुचल देना चाहते हैं।

लेकिन ऐसा लग रहा है कि नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार चीन की धुन पर ही नाच रही है। स्पष्ट तौर पर केपी ओली बीजिंग की मदद कर रहे हैं। और यह कुछ और नहीं बल्कि चीन द्वारा उनकी सरकार बचाने का बदला है। चीन ने उनकी सरकार बचाकर उन्हें अपना गुलाम बना लिया है, जिसके बाद से वह चीन की भाषा बोल रहे हैं।

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