केजरीवाल सरकार एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार भी गलत कारणों से। जनाब को अब स्टाफ को सैलरी देने के भी लाले पड़ गए हैं, और अब केंद्र सरकार से महोदय 5000 करोड़ रूपए के विशेष आर्थिक सहायता की मांग कर रहे हैं –
मनीष सिसोदिया द्वारा किए गए प्रेस कांफ्रेंस के अनुसार, “कोरोना और फिर लॉकडाउन की वजह से दिल्ली सरकार का टैक्स कलेक्शन करीब 85% नीचे चल रहा है। इसलिए इस मदद की जरूरत है। केंद्र की ओर से बाकी राज्यों को जारी आपदा राहत कोष से भी कोई राशि दिल्ली को नहीं मिली है”।
पर ठहरिए, ये समस्या कैसे उत्पन्न हुई? यह वही दिल्ली सरकार है ना, जो साल के प्रारंभ में बजट सरप्लस का दावा ठोंक रही थी? तो अब ऐसा क्या हुआ, कि केजरीवाल सरकार के पास पैसा तक देने को नहीं है?
अगर आप को स्मरण हो तो 2020 के प्रारंभ में केजरीवाल सरकार ने अपने मुफ्तखोरी को उचित ठहराने के लिए इसी बजट सरप्लस का उदाहरण दिया था। CAG की 2017 – 18 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए केजरीवाल सरकार ने बताया की उन्हें 2017-18 में 113 करोड़ रुपए का ट्रेड सरप्लस मिला है।
तो क्या अब केजरीवाल सरकार के पास कुछ भी नहीं बचा है? यदि आंकड़ों पर गौर करें, तो स्थिति तो कुछ इसी तरह इशारा कर रही है। एक बजट विश्लेषण के अनुसार पिछले वर्ष साल, यानी 2019 में सरकार का फिस्कल डेफिसिट लगभग 700 करोड़ आंका गया था, और अबकी बात तो यह आंकड़ा और भी ज़्यादा होगा। अब ऐसे में प्रश उठना तो वाजिब है कि बाकी पैसा कहां गया।
परन्तु वुहान वायरस के आर्थिक दुष्परिणाम से बचने हेतु केजरीवाल ने दो अहम निर्णय भी तो लिए थे। एक था शराब की बिक्री पर 70 प्रतिशत तक स्पेशल कोरोना टैक्स लगाना, और दूसरा था पेट्रोल पर 30 प्रतिशत से भी अधिक की मात्रा में सेस बढ़ाना। यदि इसके बाद भी केजरीवाल सरकार के पास सरकारी कर्मचारियों को पगार देने के पैसे नहीं है, तो प्रश्न तो उठेगा ही – आखिर सारे पैसे कहां गायब हुए? या तो केजरीवाल ट्रेड सरप्लस पर झूठ बोल रहे थे, या फिर जनाब अब झूठ बोल रहे हैं।
केजरीवाल की इस अजीबोगरीब मांग को विपक्ष ने बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते हुए आम आदमी पार्टी सरकार पर निशाना साधा। बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार बाकी देश के लोगों के साथ-साथ दिल्ली के लोगों की भी मदद कर रही है। उन्होंने दावा किया, “लोगों के खातों में 1500, 1500 रुपये ट्रांसफर किए गए हैं। दिल्ली सरकार का बजट अब 65 हजार करोड़ रुपये का है, जबकि पहले शीला दीक्षित के वक्त में कुल 39 हजार करोड़ का था। पहले ये पैसे विज्ञापन पर खर्च किए गए और अब मदद मांगी जा रही है।
बिधूड़ी आगे पूछते हैं, “दूसरे राज्यों में भी मॉब लिंचिंग या किसी ऐसी वजह से मौत होती है तो केजरीवाल 1 करोड़ रुपये की सहायता कर देते हैं। दिल्ली का पैसा ऐसे राजनीति करने के लिए बाहर खर्च किया जाता है”।
रमेश बिधूड़ी के अलावा कवि कुमार विश्वास ने भी विज्ञापनों का जिक्र करते हुए केजरीवाल सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने लिखा, “लाखों-करोड़ की चुनावी-रेवड़ियां, टैक्सपेयर्स के हजारों करोड़ अखबारों में 4-4 पेज के विज्ञापन व चैनलों पर हर 10 मिनट में चेहरा दिखाने पर खर्च करके, पूरी दिल्ली को मौत का कुआं बनाकर अब स्वराज-शिरोमणि कह रहे हैं कि कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों को सैलरी देने के लिए उनके पास पैसा नहीं हैं”।
सच कहें तो एक बार फिर केजरीवाल सरकार की पोल खुल चुकी है, कि वह वास्तव में दिल्ली का कायाकल्प करने के लिए कितना उद्यत हैं। जिस तरह से काफी राजस्व कमाने के बाद भी दिवालिया होने का दावा करते हुए जनाब सरकारी सहायता की मांग कर रहे हैं, उसे देख एक कहावत याद आती है – “आधी छोड़ सारी को धावे, ना आधी मिले ना पूरी पावे”।