Lancet ने झूठ फैलाया, WHO ने आगे बढ़ाया, ICMR ने हौसला दिखाया- अब हुई भारत और HCQ की जीत

WHO को फिर ICMR से मुंह की खानी पड़ गयी

HCQ

(PC: Lehren)

चीन के तोते WHO यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन को एक बार फिर से भारत के सामने झुकना पड़ा है। WHO ने HCQ के ट्रायल पर आंशिक रोक लगाने के बाद कोरोना वायरस के इलाज में इस दवा के इस्तेमाल और ट्रायल को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया है। WHO ने बुधवार को ट्वीट करते हुए HCQ के ट्रायल को दोबारा शुरू करने की जानकारी दी।

बता दें कि WHO ने HCQ के क्लिनिकल परीक्षण पर अस्थायी रोक लगा दी थी। WHO ने यह निर्णय मशहूर ऑनलाइन मेडिकल जर्नल The Lancet में प्रकाशित एक अध्ययन के बाद लिया था जिसमें यह पाया गया था कि HCQ दवा के उपयोग से मौत का खतरा 34 प्रतिशत और गंभीर heart arrhythmias का खतरा 137 प्रतिशत बढ़ जाता है। अब इस शोध के प्रकाशित होने के बाद इस जर्नल की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे हैं। सौ से अधिक वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने इस रिपोर्ट के आधार यानि अस्पताल के डेटाबेस की प्रमाणिकता पर संदेह किया है। इस संदेह के पैदा होते ही अब WHO ने दोबारा से HCQ का क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने का निर्देश दिया है।

WHO के ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए डॉ टेडरोस ने कहा,“उपलब्ध मृत्यु दर आंकड़ों के आधार पर समिति के सदस्यों ने सिफारिश की है कि परीक्षण प्रोटोकॉल को संशोधित करने का कोई कारण नहीं है। इसलिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ट्रायल को फिर से शुरू किया जा सकता है।“

संगठन ने कहा कि कार्यकारी समूह इसपर बारीकी से नजर रखेगा।

बता दें कि The Guardian अखबार की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि The lancet ने जिस अमेरिकी कंपनी के डाटा का इस्तेमाल अपने शोध के लिए किया था उसके कर्मचारियों को बेहद कम या न के बराबर वैज्ञानिक ट्रेनिंग थी। इसके साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि इस कंपनी के कुछ कर्मचारी science fiction writer और adult-content model हैं।”

इस विवादित कंपनी के डेटाबेस को द लांसेट और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन जैसे दुनिया की दो सबसे प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित अध्ययनों में इस्तेमाल में किया गया है। जैसे ही The Lancet के HCQ के शोध पर सवाल उठने लगे वैसे ही इस जर्नल ने जांच के आदेश दिये थे।

परंतु यहाँ यह सवाल उठता है कि The Lancet जब अपने आप को एक peer-reviewed जर्नल होने का दावा करता है लेकिन फिर भी इस तरह के गलत शोध प्रकाशित कैसे कर दिये जाते हैं? इसके दो अर्थ निकलते हैं , या तो HCQ पर किए गए शोध को peer review नहीं किया गया था या फिर The Lancet ने किसी फायदे के लिए इस शोध को प्रकाशित किया।

यह किसी से छुपा नहीं है कि किस तरह से वैश्विक लिबरल मीडिया और अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ HCQ के पीछे हाथ धो कर पड़ी हैं। ये सभी लोग एक के बाद एक कई नकारात्मक रिपोर्ट प्रकाशित कर HCQ की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करने की कोशिश कर रहे हैं। अब ऐसा लगता है Bloomberg और NYT जैसे मीडिया हाउस ही नहीं बल्कि The Lancet जैसे जर्नल भी HCQ के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। HCQ के खिलाफ एजेंडा चलाने में WHO भी उनका साथ दे रहा है।

भारत की ICMR जैसी संस्था अभी HCQ को लेकर अपने दावों पर सही उतरी है। ICMR के ही शोध में यह पाया गया था कि मलेरिया-रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन प्रोफिलैक्सिस (HCQ) की चार या अधिक खुराक के सेवन से स्वास्थ्यकर्मियों में कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा कम हो सकता है। ICMR के इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में ऑनलाइन प्रकाशित मामलों को नियंत्रण करने वाले अध्ययन में पाए गए नतीजों के मुताबिक HCQ के छह या अधिक रोगनिरोधी खुराकों पर 80% स्वास्थ्य देखभाल कर्मी, कोरोनावायरस से संक्रमित नहीं थे।

इससे एक बार फिर WHO की लापरवाही की पोल खुल गयी।  WHO के इस लापरवाही पर CSIR के डीजी शेखर सी मांडे ने कहा, ‘हमें खुशी है कि डब्‍ल्‍यूएचओ ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का ट्रायल फिर शुरू करने का फैसला लिया है। मुझे यकीन है कि डब्‍ल्‍यूएचओ ने ट्रायल रोकने का फैसला जल्‍दबाजी में लिया होगा। यह बिना सोचे-समझे लिया गया फैसला था। उन्‍हें अस्‍थाई तौर पर ट्रायल सस्‍पेंड करने से पहले अपने आप आंकड़ों का विश्‍लेषण करना चाहिए था।’

अगर हम HCQ के खिलाफ चलाये गए प्रोपोगेंडा को देखे तो WHO,The Lancet, मीडिया और फार्मा कंपनियों की सिर्फ पोल ही नहीं खुली है, बल्कि इस क्षेत्र में भारत के बढ़ते वर्चस्व का नमूना भी देखने को मिला है।

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