मनोज तिवारी को दिल्ली BJP अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है, 2 साल देरी से हुआ लेकिन अच्छा हुआ

ये काम पहले हो गया होता तो आज दिल्ली में BJP सरकार होती

मनोज तिवारी

राजनीति में सभी दिन एक जैसे नहीं होते हैं। कभी आप अर्श पर होते हैं तो कभी आप फर्श पर। यही राजनीति की रीति है। इस वर्ष देश के कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले हां, इसी मौके को देखते हुए BJP ने कई राज्यों के पार्टी प्रमुख को बदला है। इनमें से वो राज्य भी हैं जिसमें BJP ने हाल के चुनावों में हार का मुंह देखा है। इसमें से सबसे प्रमुख है दिल्ली BJP प्रमुख के पद से मनोज तिवारी का हटाया जाना।

दिल्ली में अभी तक यह जिम्मेदारी संभाल रहे मनोज तिवारी को हटाते हुए आदेश कुमार गुप्ता को दिल्ली बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाया गया है। मनोज तिवारी को इस महत्वपूर्ण पद से हटाये जाने के कई कारण है और यह हाल के कुछ वर्षों की घटनाओं से इसे समझा जा सकता है। बीजेपी ने जिस मकसद से उन्हें अध्यक्ष बनाया था, यानि पूर्वांचली वोट को अपने पाले में करने के लिए वह कभी पूरा ही नहीं हुआ। नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को दिल्ली में केजरीवाल के सामने दो बार करारी हार का सामना करना पड़ा।

परंन्तु अगर आपके मन में ये सवाल है कि लोकसभा चुनाव मनोज तिवारी कैसे जीत गए तो उसका उत्तर भी है। वास्तव में लोकसभा चुनावों में भी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी को जीत भी नरेंद्र मोदी की लहर की वजह से मिली थी। यदि वो दिल्ली के विधानसभा चुनाव में उतरते तो उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ता। इसके पीछे का कारण मनोज तिवारी की लोकप्रियता है जो उनके स्टारडम तक सीमित रह गयी या यूँ कहें वो जमीनी तौर पर न दिल्ली की जनता से कभी जुड़ पाए और न ही पार्टी काडर से। वो स्टारडम के नशे में चूर रहते हैं जनता की परेशानी जानने की बजाय कभी गाना गाते हैं तो कभी रंग बिरंगे कपड़ों में पहुंचकर अतरंगी बयान देते हैं। यही वजह है कि उन्हें न ही एक आम पूर्वांचली पसंद करता है और न ही पार्टी के कार्यकर्त्ता। नतीजा ये हुआ कि दिल्ली में लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर वाली पूर्वांचली जनता ने मनोज तिवारी को नकार दिया। चूंकि वो एक पूर्वांचली हैं तो दिल्ली के 35 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर रखने वाला पंजाबी समुदाय भी उनसे दूरी बनाकर रखता है।

यहां गौर करने वाली बात है कि आखिरी बार 1998 में दिल्ली की सत्ता में रहने वाली BJP आज 22 वर्ष बाद भी सत्ता हासिल नहीं कर पाई है। वर्ष 2014 से कांग्रेस के रेस से बाहर होने के बाद भी BJP जनता को लुभाने में नाकामयाब रही है।  इसका एक मात्र कारण है केजरीवाल का मनोज तिवारी का बाहरी होने का कार्ड उन्हीं के खिलाफ खेलना। इससे हर बार चुनाव में ऐसा माहौल बन जाता है कि जैसे BJP ही सत्ता में थी और केजरीवाल स्वयं को ऐसे पेश करते हैं कि अभी भी वो पिछली सरकार के भ्रष्टाचार को ही खत्म कर रहे हैं। इसके जवाब में मनोज न तो केजरीवाल को चुनौती दे सके और न ही जनता को केजरीवाल के पक्ष में जाने से रोक सके। इस बार के चुनाव में तो तिवारी ने 45 सीटों का दावा किया था, जबकि बीजेपी के हाथ केवल 8 सीटें लगीं। उस दौरान भी TFI ने एक लेख लिखा था कि मनोज तिवारी को तुरंत दिल्ली प्रमुख पद से हटाया जाना चाहिए।

एक और कारण है जिससे मनोज तिवारी का दिल्ली में प्रदर्शन निम्न स्तर का रहा और वह है उनके BJP कैडर का न होना। BJP एक कैडर आधारित पार्टी है और कैडर से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। कैडर द्वारा न पसंद का कारण ये मनोज तिवारी का वर्ष 2009 में SP के टिकट पर  योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ना भी है।

अक्सर यह देखा गया है कि संघ और भाजपा के कैडर से ही कोई नेता ऊपर तक पहुंचता है और वह नेतृत्व संभालता है। इससे वह कैडर के बीच भी लोकप्रिय रहता है और कैडर भी खुश होकर मेहनत करता है। परंतु मनोज तिवारी न तो भाजपा से थे और न ही संघ से फिर भी वह भाजपा दिल्ली का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हें जमीनी स्तर के कैडर बिल्कुल पसंद नहीं करते, इसका असर यह हुआ कि BJP को हार का सामना करना पड़ा।

मनोज तिवारी का BJP के कोर वोटरों के बीच बेहद आलोकप्रिय हैं। भारत का कोई भी वोटर किसी फिल्म सेलिब्रिटी को राजनीति में पसंद नहीं करते। कोर वोटर किसी भी पार्टी की विचारधारा से प्रभावित रहते हैं और मनोज तिवारी की कोई विचार धारा नहीं है। इसी का खामियाजा BJP को दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा है।

इस तरह से देखा जाए तो BJP ने दो वर्ष बाद उन्हें हटा कर सही फैसला लिया है। हालांकि, यह पहले ही किया जाना चाहिए था, परंतु कहते हैं न देर आए दुरुस्त आए।

Exit mobile version