“दंगे, हिंसा और लूटपाट”, बहुसंस्कृतिवाद नाम का साँप दोबारा यूरोप को डसने आ रहा है

पिछले कई दशकों से यूरोप इस साँप को पाल रहा था, अब वो इसी को डस रहा है

बहुसंस्कृतिवाद

(PC: Indiatimes)

अमेरिका में पुलिस द्वारा एक अश्वेत व्यक्ति की हत्या के बाद भड़के दंगों की आंच अब यूरोप तक भी पहुंच चुकी है। यूरोप में भी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरकर पश्चिमी समाज में जारी नस्लीय नफरत के खिलाफ अपना विरोध जता रहे हैं। हालांकि, अमेरिका की तरह ही यूरोप में भी ये विरोध प्रदर्शन हिंसक होते जा रहे हैं। इन प्रदर्शनों में गाड़ियों को जलाया जा रहा है, पत्रकारों पर “अल्लाह-हू-अकबर” के उद्घोष के साथ हमले किए जा रहे हैं और दुकानों को लूटा जा रहा है। पिछले एक दशक के अंदर यूरोप के समाज में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं, जिसका नतीजा है कि यूरोप में लगातार अस्थिरता फैलती जा रही है। यूरोप ने पिछले दशकों में जिस तरह open borders नीति का पालन किया है और बहुसंस्कृतिवाद को गले लगाया है, उसी का परिणाम है कि यूरोप की आज यह दुर्दशा हो गयी है।

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इन प्रदर्शनों का असल सच आप एक और घटना से पता लगा सकते हैं, जहां इन प्रदर्शनों को कवर कर रही ऑस्ट्रेलियाई न्यूज़ चैनल की एक पत्रकार को दंगाइयों ने पकड़ लिया और अल्लाह-हू-अकबर का नारा भी लगाया। रिपोर्टर ने यह भी आशंका जताई कि उस व्यक्ति की जेब में एक स्क्रूड्राईवर भी हो सकता था। UK और यूरोप में ये सब समानता के अधिकारों के लिए किए जा रहे प्रदर्शनों की आड़ में किए जा रहा है। यह देखकर समझ में आता है कि बहुसंस्कृतिवाद को गले लगाकर UK और यूरोप ने कितनी बड़ी गलती कर दी है।

पिछले पांच सालों में यूरोप ने वही काटा है, जो उसने पिछले दशकों के दौरान बोया है। आज यूरोप की स्थिति यह है कि वहाँ की संस्कृति पर इस्लामवादियों ने कब्जा कर लिया है, और इसकी वजह से यूरोप के लोग अपने ही देश में हिंसा के शिकार हो रहे हैं। मध्य एशिया से आये शरणार्थियों ने वर्ष 2015 के बाद जर्मनी में 200,000 से अधिक अपराध किए।  यह आंकड़ा 2014 के आंकड़ों से 80% ज्यादा है, जिसका मतलब यह है कि प्रति दिन 570 आपराधिक (गैस्टस्टोन इंस्टीट्यूट) घटनाएं यूरोप में होने लगी हैं।

स्वीडन के विशेषज्ञों का कहना है कि उनके देश में स्थिति भयावह है। स्वीडन के राष्ट्रीय पुलिस आयुक्त ने कहा है कि उनके पास शरणार्थियों के अपराधों की बढ़ती स्थिति को संभालने के लिए संसाधन नहीं हैं। पुलिस ने शरणार्थियों का पूरा क्षेत्र को ‘नो-गो ज़ोन’ घोषित कर दिया गया है।  ISIS ने हमेशा यह दावा किया है कि वो अपने आतंकवादियों को शरणार्थियों के रूप में भेजने में सफल रहा है। हाल के जर्मनी, फ़्रांस और यूरोप में हुए अतांकी हमलों से यह साबित भी होता है। जर्मनी की घरेलू खुफिया एजेंसी (BfV) के प्रमुख ने पुष्टि की है कि यूरोप में ISIS आतंकवादी प्रवेश करने में कामयाब रहे हैं। यह विडंबना ही है कि एक तरफ यूरोप अपनी यूरोपीय संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं दुनिया भर के उदारवादी इसे  बहुसंस्कृतिवाद यानी multi-culturism की जीत मान कर इसका जश्न मनाने में व्यस्त हैं।

आइए देखते हैं कि इस multi-culturism की वजह से यूरोप को अब तक क्या-क्या सहना पड़ा है:

  1. 11 मार्च 2014 : स्पेन की राजधानी मैड्रिड में आतंकियों ने कई ट्रेनों में सीरियल धमाके किए. इस हमले में 191 लोग मारे गए थे जबकि 1800 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे
  2. 7 जनवरी 2015 को फ्रांस की मशहूर व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो पर आतंकवादी हमला हुआ था। इसमें 17 लोग मारे गए जिनमें तीन पुलिसकर्मी भी शामिल थे। इस हमले में पत्रिका के एडिटर सहित नौ पत्रकारों की भी मौत हुई थी।
  3. 16 नवंबर 2015 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में कई जगह हुए आतंकी हमलों में 129 से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसके अलावा उन आतंकी हमलों में 200 से ज़्यादा लोग घायल भी हो गए थे।

ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं। यूरोप में आए दिन छुटपुट हिंसक घटनाएँ सामने आती रहती हैं, और इस सब का दोष यूरोप में बढ़ते बहुसंस्कृतिवाद को जाता है। अब जब अमेरिका में हो रहे प्रदर्शनों की तर्ज पर यूरोप में भी ऐसे ही प्रदर्शन हो रहे हैं, तो ऐसे ही लोगों ने इन प्रदर्शनों को हाई-जैक कर लिया है। बहुसंस्कृतिवाद नाम का यह साँप फिर से यूरोप को डसने आ रहा है।

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