बाकी देशों ने हज़ारों की तादाद में अपने डॉक्टर खोए, पर भारत ने नहीं, कारण HCQ है

HCQ

PC: Al Jazeera

भारत के डाक्टरों को बड़े स्तर पर कोरोना होने से कोई बचा रहा है तो वह HCQ ही है। ICMR के एक नए अध्ययन में अब यह बात साफ हो गई है। इस अध्ययन में यह पाया गया है कि मलेरिया-रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन प्रोफिलैक्सिस (HCQ) की चार या अधिक खुराक के सेवन से स्वास्थ्यकर्मियों में कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा कम हो सकता है।

रविवार को आईसीएमआर के इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में ऑनलाइन प्रकाशित मामलों को नियंत्रण करने वाले अध्ययन में पाए गए नतीजों के मुताबिक, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) के छह या अधिक रोगनिरोधी खुराकों पर 80% स्वास्थ्य देखभाल कर्मी, कोरोनावायरस से संक्रमित नहीं थे।

इससे एक बार फिर से HCQ की उपयोगिता साबित हो गयी है।

बता दें कि WHO ने कुछ दिनों पहले ही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के क्लिनिकल परीक्षण पर अस्थायी रोक लगाने का सुझाव दिया था, लेकिन फिर भी भारत ने इस दवा का परीक्षण और प्रयोग दोनों जारी रखा था। WHO ने यह निर्णय ऑनलाइन मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के बाद लिया जिसमें यह पाया गया कि HCQ दवा के उपयोग से मौत का खतरा 34 प्रतिशत और गंभीर heart arrhythmias खतरा 137 प्रतिशत बढ़ा है। हालांकि, अब इन रिपोर्ट पर कई सवाल खड़े होने लगे हैं। सौ से अधिक वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने इस रिपोर्ट के आधार यानि अस्पताल के डेटाबेस की प्रामाणिकता पर संदेह उठाया है।

द लैंसेट के एडिटर-इन-चीफ रिचर्ड हॉर्टन और शोध के लेखकों को एक खुले ओपेन लेटर में दूसरे शोधकर्ताओं ने डेटा के विवरण की मांग की है और अध्ययन के लिए WHO या किसी अन्य संस्था द्वारा स्वतंत्र रूप से सत्यापित किए जाने का आह्वान किया है। वहीं ऑस्ट्रेलिया के संक्रामक रोग शोधकर्ताओं ने भी अध्ययन के ऊपर संदेह किया था।

एक तरफ WHO कई संस्थाओं के साथ मिल कर HCQ के खिलाफ एजेंडा चला रहा तो वहीं अब भारत के ICMR ने HCQ की उपयोगिता पर मोहर लगा दिया है। भारत शुरू से  ही अपने स्वस्थ्य कर्मियों को कोरोना से बचाव के लिए HCQ के उपयोग का निर्देश देता आया है। कुछ दिनों पहले ही HCQ का सेवन करने वालों की लिस्ट में गैर-स्वास्थ्य सेवा फ्रंटलाइन श्रमिकों को भी जोड़ दिया गया था। तब ICMR ने स्पष्ट कहा था, भारतीय शोधकर्ताओं को HCQ का कोई बड़ा साइड-इफेक्ट नहीं मिला है और इसका इस्तेमाल COVID-19 से बचाव के रूप में जारी रखा जाना चाहिए।

जब से कोरोना शुरू हुआ है तब से ही WHO ने पूरी दुनिया को अंधेरे में रखा जिसका खामियाजा आज सभी देशों को भुगतना पड़ा है। अभी भी WHO अपने उसी रवैये से बाज नहीं आ रहा है। आज अगर विश्व के अन्य देश भी भारत की तरह ही अपने डाक्टरों और नर्सों को HCQ का उपयोग करने की छुट देते तो कई स्वस्थ्यकर्मियों को कोरोना से बचाया जा सकता था। लेकिन इंटरनेशनल मीडिया के साथ मिलकर WHO ने शुरू से ही HCQ पर संदेह किया जिससे कई देशों ने HCQ के सेवन पर रोक लगा दी थी। 24 मार्च को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उस समय तक स्पेन के 40,000 कोरोनोवायरस मामलों में से 5,400 यानि लगभग 14 प्रतिशत पेशेवर चिकित्सक थे। वहीं इटली में यह आंकड़ा 8.3 प्रतिशत था। बाकी यूरोपीय देशों का भी वही हाल था।

आज स्पेन में 2 लाख 86 हजार और इटली में 2 लाख 32 हजार करोना के मामले हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि डाक्टरों और स्वस्थ्यकर्मियों में किस स्तर से कोरोना फैला होगा।

परंतु भारत अपने स्वास्थ्यकर्मियों को यह दवा देता रहा जिससे यहाँ काफी कम संख्या में स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना से संक्रमित पाया गया है। यानि कहा जा सकता है कि एक तरफ दुनिया भर के देश अपने स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना के संक्रमण से नहीं बचा पाये लेकिन भारत के HCQ ने यह कर दिखाया। अब ICMR के इस नए क्लीनिकल स्टडी में स्पष्ट हो चुका है कि HCQ की चार या अधिक खुराक के सेवन से स्वास्थ्यकर्मियों में कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित होने का खतरा कम हो सकता है।

भारत में COVID-19 के लिए नेशनल टास्क फोर्स ने इस अध्ययन पर संज्ञान लिया और asymptomatic लोगों के एक समूह के बीच कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ प्रोफिलैक्सिस के रूप में HCQ के उपयोग की सिफारिश की।

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