Safoora Zargar मामला: एक गर्भवती आरोपी, आरोपी ही होती है, भारत के कानून और जज को इसमें कोई शक नहीं

मैडम वो रहा जेल का दरवाजा!

सफूरा जरगर

वामपंथियों को लगता है सफूरा जरगर में अपनी नई पोस्टर गर्ल मिल गई है। तभी ये लोग आजकल उसके नाम की माला जप रहे हैं। दिल्ली में CAA के विरोध के नाम पर दंगे भड़काने के मामले में आरोपी सफूरा जरगर की ज़मानत याचिका को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने रद्द कर दिया, क्योंकि उसकी याचिका के लिए कोई ठोस आधार मौजूद नहीं था।

पटियाला हाउस कोर्ट के एडिशनल सेशंस जज धर्मेन्द्र राणा ने याचिका को ठुकराते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, “मुझे ज़मानत याचिका में कोई विशेष मेरिट नहीं दिखता, इसीलिए इसे मैं डिस्मिस करता हूं।”

उसके अलावा एडिशनल सेशंस जज ने बताया कि आखिर क्यों सफूरा की याचिका रद्द हुई। सफूरा भले ही खुलेआम भड़काऊ भाषण नहीं दे रही थी, पर अप्रत्यक्ष रूप से दंगों को बढ़ावा देने में उसकी भूमिका मिले साक्ष्य के अनुसार संदेह का सवाल ही पैदा नहीं होता। इसके अलावा जज ने  सफूरा को गर्भावस्था को देखते हुए उसके लिए विशेष इंतजाम करने को कहा है।

पर सफूरा जरगर है कौन? ऐसा क्या है जिसके लिए वह जेल में बंद है, और ऐसा क्या है कि उसके लिए वामपंथियों की आंखों से अश्रुधारा बह रही है? बता दें कि सफूरा जरगर जामिया मीडिया सेल की संयोजकों में से एक है, जिनपर कैंपस के जरिए पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़काने का आरोप भी लगा है। इसी संबंध में सफूरा जरगर को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया और UAPA के अन्तर्गत कार्रवाई भी हुई।

परन्तु एक रोचक बात यह भी सामने आई कि सफूरा जरगर गर्भवती भी है। अब वह कैसे गर्भवती हुई और कैसे नहीं ये तो अलग ही विषय है, परन्तु इस अवस्था को हथियार बनाकर वामपंथी अब उसके बिना शर्त रिहाई की मांग कर रहे हैं। उदाहरण के लिए आरफा खानुम शेरवानी के ट्वीट को ही देख लीजिए। मोहतरमा कहती हैं, “जब आप एक गर्भवती हथिनी के लिए संवेदना है, पर जेल में सड़ रही एक गर्भवती मुस्लिम महिला के लिए नहीं, तो यह सिर्फ आपकी हिपोक्रेसी को दर्शाता है”।

अब ऐसे मामले में Rana Ayyub (राणा अय्यूब) चुप तो नहीं रहने वाली थी। इन्होंने भी ट्वीट किया, “सारी ज़िन्दगी मायने नहीं रखती”, जो निस्संदेह सफूरा को बेल ना मिलने पर उनकी कुंठा को साफ दिखा रहा था।

इनके अलावा करुणा नंदी भी सफूरा जरगर का बचाव करते दिखीं। मोहतरमा ने आरफा की भांति सफूरा की तुलना हथिनी से की, और उनकी दृष्टि में हथिनी के लिए न्याय उतना आवश्यक नहीं है, जितना सफूरा का रिहा होना। कानून की नजर में हर अपराधी को सजा मिलनी चाहिए, अगर ‘गर्भवती’ होने के नाम पर सफूरा जरगर की रिहाई होती है तो अन्य गर्भवती महिलाओं के साथ अन्याय क्यों? बस इसलिए क्योंकि अन्य महिलाएं लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम से वास्ता नहीं रखतीं?

गर्भावस्था निश्चित ही एक अहम स्थान रखता है मानव जीवन में। परन्तु इसका यह अर्थ तो बिल्कुल नहीं है कि गर्भावस्था के आधार पर सफूरा के जुर्म को अनदेखा कर उसे रिहा कर दिया जाए। क्या जेल में और गर्भवती कैदी नहीं है? क्या उन्हें उचित सुविधा नहीं मिलती? जज ने ज़मानत याचिका ठुकराते हुए भी स्पष्ट कहा था कि सफूरा जरगर को उसकी अवस्था देखते हुए उसके लिए विशेष इंतजाम क्या जाए। कानून में इसके लिए एक प्रावधान भी है, जहां जेल में गर्भवती महिलाओं के लिए त्वरित मेडिकल उपचार, विशेष डायट, उनके रहन सहन के लिए अलग से व्यवस्था, समय समय पर मेडिकल चेकअप और जेल से बाहर अस्पताल में डिलीवरी का प्रावधान भी है। ये सारी जानकारी राष्ट्रीय जेल मैनुअल 2016 में उपलब्ध है।

इसके अलावा अगर सफूरा जरगर के अपराधों की बात करें तो वह कोई छोटा-मोटा अपराध नहीं है। सफूरा पर पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़काने का आरोप है, जिसके कारण अनेक निर्दोष लोग दंगाइयों के हाथों मारे गए।  गर्भावस्था के आधार पर वामपंथी सफूरा के ज़मानत की मांग कर दंगे में मारे गए बेकसूर निवासियों का ही उपहास उड़ा रहे हैं।

सच कहें तो वामपंथियों को किसी भी हाल में दिल्ली सहित पूरे देश को दंगे की आग में झोंकना है। इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार है, और सफूरा जरगर के लिए लॉबी करना उसी नापाक हरकतों का भाग है। सरकार और दिल्ली पुलिस को इस मामले पर सतर्क रहना होगा, वरना सफूरा को ढाल बना ये लोग एक बार फिर शाहीन बाग जैसा कलंक दिल्ली के माथे पर मढ़ सकते है।

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