दुनियाभर में चीन के खिलाफ गुस्सा बेशक सांतवे आसमान पर पहुंच गया हो, लेकिन एक देश ऐसा भी है जिसने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भयंकर बेइज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जापान और चीन के ऐतिहासिक रिश्ते यूं तो तनावपूर्ण ही रहे हैं, लेकिन कोरोना से ठीक पहले जापान के प्रधानमंत्री शिंजों आबे चीन के साथ लगातार नज़दीकियाँ बढ़ा रहे थे। यहाँ तक कि शी जिनपिंग इसी साल अप्रैल में जापान के दौरे पर भी आने वाले थे। अगर वे जापान आते, तो लगभग एक दशक के बाद कोई चीनी नेता जापान में कदम रख रहा होता। हालांकि, तब कोरोना की वजह से शी जिनपिंग ने अपने दौरा टाल दिया था। इसी बीच अब जापान ने कहा है कि वह जी7 देशों द्वारा हाँग-काँग सुरक्षा कानून मुद्दे पर जारी की जाने वाली स्टेटमेंट को ड्राफ्ट करना चाहता है। जापान में कोरोना को लेकर चीन के खिलाफ काफी गुस्सा है, और माना जा रहा है कि जापान इस स्टेटमेंट को बेहद कड़ी भाषा में ड्राफ्ट करेगा। ऐसे में जापान ने संकेत दे दिये हैं कि जापान में अब शी जिनपिंग का कोई स्वागत नहीं करना चाहता।
जापान के पीएम ने हाल ही में देश की संसद में खड़े होकर भी चीन के खिलाफ हुंकार भरी थी। हाल ही में जापानी प्रधानमंत्री ने देश की संसद डाइट में बोलते हुए कहा था कि जी-7 समूह के नेताओं को हांगकांग के लिए एक देश, दो सिस्टम सिद्धांत को संरक्षित करने के लिए एक बयान जारी करना चाहिए। उन्होंने यहां तक कहा था कि इस बार जी-7 की बैठक में इस मुद्दे का उठाया जाना चाहिए, और जापान खुद चीन द्वारा हाँग-काँग में लिए जा रहे इन कदमों के खिलाफ एक कड़े संयुक्त बयान को ड्राफ्ट करने की पहल करेगा। Japan के इस ऐलान के बाद फ्रांस ने भी इस संयुक्त बयान के ड्राफ्ट में जापान की सहायता करने का प्रस्ताव पेश किया है। बुधवार को जापान और फ्रांस के विदेश मंत्रियों के बीच फोन पर बातचीत हुई थी, और इसमें तय किया गया था कि दोनों देश मिलकर ही चीन के खिलाफ एक कडा बयान जारी करेंगे।
हाँग-काँग मुद्दे पर अमेरिका और यूके तो पहले ही चीन के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करने की धमकी दे चुके हैं। ऐसे में और ज़्यादा ताकतवर देशों का चीन के खिलाफ बोलना चीन के लिए बुरे सपने से कम नहीं है। चीन ने Japan के इस कदम की कड़ी आलोचना भी की है। जापान के इस रुख पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने हाल ही में कहा था “हम जापान के इस रुख पर बेहद चिंतित हैं। सभी देशों को चीन के आंतरिक मामलों का सम्मान करना चाहिए। सभी देशों को अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों को भी ध्यान में रखना चाहिए”।
गौरतलब है कि कोरोना के कारण जापान और चीन के रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं। Japan ने सबसे पहले अपनी कंपनियों को चीन से बाहर निकालने के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी, जिसके बाद अमेरिका भी ऐसे ही आर्थिक पैकेज की घोषणा पर विचार कर रहा है। कोरोना से पहले चीन और Japan के बेहद मजबूत व्यापार संबंध थे। चीन हर साल Japan को 148 बिलियन डॉलर का समान एक्सपोर्ट कर रहा था। हालांकि, कोरोना के बाद से इस एक्सपोर्ट पर पूरी तरह पाबंदी लग गयी, जिसके बाद Japan में जरूरी चीजों की भयंकर कमी हो गयी। यही बड़ा कारण है कि अब जापान अपनी सभी कंपनियों को जल्द से जल्द चीन से बाहर लाना चाहता है।
बता दें कि जापान में चीन विरोधी मानसिकता में बढ़ोतरी देखने को मिली है। Japan की मीडिया में भी चीन के खिलाफ आवाज़ उठना शुरू हो गयी हैं। Japan की मीडिया का एक हिस्सा जहां चीन पर कोरोना के मामले under report करने का आरोप लगा रहा है, तो वहीं जापानी मीडिया का एक हिस्सा इस बात को दिखा रहा है कि कैसे पिछले कई सालों से चीनी एक्सपर्ट्स अमेरिका को गिराने के लिए आम हथियारों से परे जाकर किसी अन्य हथियार के उपयोग के बारे में बताते आ रहे हैं। जापान में Japan today अखबार के “जनता के मत” सेक्शन में भी Japan की जनता चीन विरोधी सुर ही अपनाती दिखाई दे रही है। लोग यहां लिख रहे हैं कि उन्हें लगता है ये वायरस चीन की किसी bio-weapon लैब में विकसित किया गया होगा।
इससे स्पष्ट है कि जापानी सरकार और लोग, किसी भी सूरत में चीन के राष्ट्रपति के स्वागत के लिए तैयार नहीं हैं। जापान अब चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विवाद की तैयारी कर चुका है।