“अक्साई चिन” नहीं “अक्साई लद्दाख”, सरकारें अब तक चुप रहीं, अब लद्दाख के MP ने की नाम बदलने की मांग

चीन को इससे भयंकर मिर्ची लगने वाली है!

गलवान घाटी में चीन द्वारा किए गए विश्वासघात से भारत की जनता काफी आक्रोश में है। वह चीन को एक कड़ा सबक सिखाने के लिए उद्यत हैं। ऐसे में इस बात पर ज़ोर दिया जा रहा है कि केंद्र सरकार अपनी चीन नीति को लेकर और मुखर हो। ऐसा लगता है कि इस दिशा में काम शुरू भी हो चुका है। जहां बीएसएनएल जैसी सरकारी सेवा अपग्रेडेशन के लिए हुवावे [Huawei] से मुंह मोड़ रही है, तो वहीं आकाशवाणी ने तिब्बत से जुड़ी खबरें पुनः प्रसारित करना शुरू कर दिया है। अब लद्दाख से भाजपा संसद जामयांग शेरिंग नामग्याल ने यह स्पष्ट कह दिया है कि चीन के कब्ज़े में स्थित लद्दाख क्षेत्र को अक्साई चिन के नाम से नहीं, बल्कि चीन के कब्ज़े वाले लद्दाख यानि China Occupied Ladakh के नाम से संबोधित किया जाये।

जामयांग के अनुसार, “1962 के समय से चीन ने भारत के साथ एक बार नहीं, बल्कि कई बार विश्वासघात किया है। 1962 के युद्ध में उसने हमसे हमारी 37244 स्क्वेयर किलोमीटर की धरती छीन ली थी, जिसे वे अक्साई चिन के नाम से संबोधित करते हैं। ये अकसाई चिन नहीं, चीन के कब्ज़े में हमारी भूमि है”।

इसके अलावा उन्होने कहा,

“ये चीन के कब्ज़े में हमारा लद्दाख है। हमारा इस पार दावा कभी कम नहीं होना चाहिए। कुछ लोग पूछ सकते हैं कि क्या कभी इसे वापिस लिया जा सकता है। मेरे मायने में यह सरल नहीं है, पर असंभव तो बिलकुल नहीं है। अब समय आ गया कि अपनी भूमि हम वापिस लें”।

पर ये अक्साई  चिन नाम आया कहाँ से? ऐसा क्या है इस नाम में, जो ये भारतीय नहीं है? दरअसल, अक्साई चिन का अर्थ है ‘चीन के सफ़ेद पत्थरों का रेगिस्तान’, जो निस्संदेह चीनी दावे को बढ़ावा देता है। अक्साई चिन चीन द्वारा प्रशासित क्षेत्र है, जो उसके शिंजियांग क्षेत्र में आता है। परंतु शिंजियांग स्वयं चीनी क्षेत्र नहीं है। जैसे तिब्बत पर चीन ने कब्जा जमाया था, वैसे ही शिंजियांग भी चीन के कब्ज़े में है। चूंकि भारत ने तिब्बत पर चीनी हमले का कभी विरोध नहीं किया, इसीलिए जब शिंजियांग पर चीन ने दावा किया, तो उसका भी भारत ने विरोध नहीं किया।

पर अक्साई चिन का वास्तविक नाम क्या है? इसका उत्तर शिंजियांग प्रांत के इतिहास में है, जो पूर्ण रूप से भारतीय था, और यहाँ संस्कृत और प्राकृत जैसी भाषाएँ प्रचलन में थी।

अक्साई चिन का वास्तविक नाम है गोस्थान, यानि गाय का निवास। लद्दाखी और तिब्बती आज भी इस क्षेत्र को गोस्थान के नाम से ही संबोधित करते हैं।

 

परंतु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे राजनीतिक प्रशासन ने कभी भी इस क्षेत्र को गोस्थान के नाम से संबोधित नहीं किया। अब आप सोचते हैं कि नाम में क्या जाता है? पर नाम में बहुत कुछ है, क्योंकि जब आप एक ऐसे देश से भिड़ रहे हो, जो किसी सदियों पुराने दस्तावेज़ के आधार पर आपके क्षेत्रों को अपना हिस्सा बताता हो, तो यह बात बहुत मायने रखती है।

ऐसे में चीन को अक्साई चिन नाम रखने की भूल कर हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने चीन के दावों को और मजबूत बनाया है। हद्द तो इस बात की हो चुकी है कि चीन पूरे गलवान घाटी को अपना मानता है। हमारी पूर्ववर्ती सरकारों का अक्साई चिन या गोस्थान को लेकर बड़ा नर्म रुख था। जब चीन ने लद्दाख में कब्जा जमाना शुरू किया था, तो जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी बेशर्मी से कहा था, “इन उजाड़ क्षेत्रों में घास तक नहीं उगती है, तो हम अपना समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं?”

नेहरू के बाद के अधिकांश प्रधानमंत्री ने चीन से पंगा ही नहीं लिया, और इसीलिए किसी भी भारतीय सरकार ने कभी भी चीन के बॉर्डर से सटे इलाकों में रोड इनफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के बारे में सोचा ही नहीं। परंतु,  मोदी सरकार ने  इस कबाड़ नीति को बहुत हद तक कूड़ेदान में फेंक दिया है। यदि भारत को चीन को हराना है, तो भारत को अक्साई चिन को भारतीय पहचान देकर एक सकारात्मक पहल करनी चाहिए, और सांसद जामयांग नामग्याल के विचार इस दिशा में एक सार्थक प्रयास से कम नहीं है।

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