चीनी कंपनियां बहुत सारी हैं, लेकिन विश्व भर के देशों ने Huawei को ही बर्बाद करने के लिए क्यों चुना?

कारण दिलचस्प है!

हुवावे

जैसे-जैसे दुनियाभर में चीन की गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे दुनिया चुन-चुन कर चीन को बर्बाद करने के लिए भी कमर कस चुकी है। इसी कड़ी में दुनिया ने सबसे पहले निशाना बनाया है चीन की दिग्गज IT कंपनी हुवावे को! हुवावे कम्युनिस्ट देश की 15वीं सबसे बड़ी कंपनी है और इसके ऑपरेशन दुनियाभर में फैले हुए हैं। हालांकि, आज उसी दिग्गज Huawei पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है।

ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ समय में और खासकर कोरोना के बाद दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों ने अपने-अपने यहाँ से हुवावे को चलता करना शुरू कर दिया। डोनाल्ड ट्रम्प ने निजी स्तर पर हुवावे के खिलाफ महाअभियान छेड़ दिया जिसमें उन्होंने ना सिर्फ अमेरिका से Huawei की छुट्टी कराई, बल्कि अपने मित्र देशों पर दबाव बनाकर उन्हें भी Huawei को त्यागने पर मजबूर कर दिया। ट्रम्प ने पिछले कुछ समय में हुवावे को बर्बाद करने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं और अब उनके नतीजे हमें जल्द ही देखने को मिल सकते हैं।

हुवावे ने पिछले वर्ष 123 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया था। हुवावे कंपनी ऐसी टॉप चाइनिज कंपनी है जिसकी चीन से बाहर इतने बड़े पैमाने पर मौजूदगी है। इसीलिए हुवावे को अगर आप चीन की शान कहें तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वर्ष 2018 में Huawei ने Forbes की top valuable brand की लिस्ट में भी जगह बना ली थी। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हुवावे चीन के लिए कितनी अहम है। शायद यही कारण है कि अमेरिका चीन की नाक माने जाने वाली Huawei को बर्बाद करने के पीछे हाथ धोकर+ पड़ा हुआ है और अपनी इस कोशिश में वह सफल होता भी दिखाई दे रहा है।

हुवावे पर अब अस्तित्व का संकट आन खड़ा हुआ है। दरअसल, पिछले दिनों ट्रम्प प्रशासन ने हुवावे के ताबूत में आखिरी कील ठोकते हुए अमेरिका में बने सेमी-कंडक्टर (चिप) के एक्सपोर्ट पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था। Huawei कंपनी के लिये यह इतना बड़ा झटका था कि स्वयं हुवावे के अध्यक्ष को कहा पड़ा था “अब हमें बहुत कडा परिश्रम करना पड़ेगा ताकि हमारा अस्तित्व बना रह सके”। एक अनुमान के मुताबिक अगर Huawei के लिए परिस्थिति जल्द ही ठीक नहीं होती हैं तो हुवावे आने वाले 12 महीनों के बाद धराशायी भी हो सकता है।

हुवावे कहने को तो चीन की सबसे बड़ी निजी कंपनी है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि चीन में कोई भी कंपनी निजी नहीं होती है। चीनी कम्युनिस्ट सरकार का Huawei पर भी बेहद ज़्यादा प्रभाव है, और यह कंपनी टेलिकॉम क्षेत्र से जुड़ी है, जिसके कारण दुनिया को इससे बड़ा खतरा महसूस होता है। टेलिकॉम क्षेत्र से जुड़ी किसी भी कंपनी के लिए जासूसी या डेटा चोरी करने जैसे अपराध करना बाएँ हाथ का खेल होता है। जिस प्रकार Huawei चीनी सरकार के इशारे पर दुनिभार में 5G नेटवर्क स्थापित करने के लिए जद्दोजहद कर रही थी, उससे यह स्पष्ट है कि चीन हुवावे को किस हद तक अपने अनैतिक कार्यों के लिए इस्तेमाल कर सकता था।

चीन हुवावे को ऐसे निम्न-स्तरीय कार्यों के लिए अपने देश में तो पहले ही इस्तेमाल कर रहा है। उदाहरण के लिए चीन के मुस्लिम बहुल शिंजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों पर नज़र रखने के लिए चीन हुवावे का ही इस्तेमाल कर रहा है। इतना ही नहीं, जब अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए थे, तो भी Huawei को ईरान को अपनी सेवाएँ देते हुए पकड़ा गया था, जिसके बाद कनाडा में हुवावे के CEO की बेटी अथवा हुवावे की CFO को वर्ष 2018 में गिरफ्तार कर लिया गया था।

दुनिया के लिए चीन की कोई अन्य कंपनी इतना बड़ा खतरा नहीं है, जितना हुवावे है। इसलिए सभी देश सबसे पहले चीन की सबसे बड़ी निजी कंपनी को ही बर्बाद करना चाहते हैं, ताकि चीन को उसकी जगह का पता चल सके। बीजिंग नहीं चाहेगा कि Huawei को इस हद तक नुकसान पहुंचे, इसीलिए तो वह समय-समय पर अमेरिका और भारत जैसे देशों को धमकी जारी करता रहता है। हालांकि, इसके बावजूद Huawei को भारत, अमेरिका, UK, दक्षिण पूर्व एशिया के कई देश और यूरोप के कई देश अपने यहाँ से भगा चुके हैं। ऐसा हो सकता है कि अगर एक बार हुवावे का काम खत्म हो जाए, तो उसके बाद ये सभी देश टिकटॉक जैसी अन्य चीनी कंपनियों को बर्बाद करने की योजना पर काम कर सकते हैं। चीन को उसकी आक्रामकता और उसकी विसतारवादी नीतियों का अंजाम भुगतना ही होगा!

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