कहते हैं, मछ्ली के बच्चे को कभी तैरना नहीं सिखाना चाहिए, और यही बात कूटनीति के मामले में भारत पर भी लागू होती है। चीन ने यूएन को अपनी ढाल बनाते हुए अपने कूटनीति का एक प्रमाण पेश करने का प्रयास किया, पर विश्व के 5 प्रमुख देश या 5 Eyes के साथ भारत ने ऐसा सबक सिखाया कि स्वयं यूएन को अपनी साख बचाने के लिए चीन की आलोचना करनी पड़ी, और ये तो मात्र प्रारम्भ है।
अभी हाल ही में यूएन ने वैश्विक स्थिति को देखते हुए अपना 75वीं Declaration को पारित करने के लिए जनरल असेम्बली को गठित कराया। इस असेम्बली में प्रस्ताव को पारित करने के लिए यूएन ‘साइलेंस’ प्रक्रिया का उपयोग करने ही वाला था कि यूएन में बैठे यूके के प्रतिनिधि ने हस्तक्षेप किया, क्योंकि उन्हे प्रस्ताव की शब्दावली पर आपत्ति थी।
आखिर प्रस्ताव की शब्दावली से चीन का क्या कनेक्शन? दरअसल, प्रस्ताव में एक जगह लिखा हुआ था, “हम अपने साझेदारों के साथ समन्वय के साथ वैश्विक भलाई और वैश्विक सुशासन के लिए प्रयासरत ताकि आने वाली पीढ़ियाँ हमारे बेहतर भविष्य के साझे विज़न से रूबरू हो सके।” अब इसमें बेहतर भविष्य के साझे विज़न की शब्दावली का उपयोग अक्सर चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने ही किया है, और इसीलिए यूके समेत 5 Eyes यानि यूके, यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने इस पर अपनी आपत्ति जताई, क्योंकि उनका मानना था कि चीन यूएन को अपनी उँगलियों पर नचा रहा है।
दिलचस्प बात तो यह थी कि इस प्रस्ताव की शब्दावली के विरोध में भारत ने भी 5 Eyes का भरपूर साथ दिया, और फलस्वरूप यूएन को इस प्रस्ताव पर फिलहाल के लिए रोक लगानी पड़ी। इतना ही नहीं, यूएन को अपनी सफाई में चीन की आलोचना भी करनी पड़ी थी, जहां उन्होंने बयान दिया, “हम इस बात से बहुत चिंतित हैं कि चीन में मानव अधिकारों के लिए कोई सम्मान नहीं है, और आए दिन वहां पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन किया जाता है”।
इससे एक बात तो स्पष्ट सिद्ध होती है – चीन को कूटनीति में भारत से जूझने की भूल नहीं करनी चाहिए, विशेषकर मोदी सरकार के शासन में तो बिलकुल नहीं। भारत की विदेश नीति में अब ऐसा परिवर्तन आ चुका है कि न सिर्फ वर्षों तक साथ देने वाले दोस्त बनाने में सफलता मिली है, बल्कि भेड़ की खाल में छुपे भेड़िये भी खुलकर सामने आए हैं। ऐसे में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से भारत का जो रवैया रहा है, उसे देखते हुए तो ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि चीन ने यूएन में कूटनीतिक दांव खेलकर बहुत बड़ी गलती की है।
अब भारत ने चीन को कूटनीतिक तरह से घेरना शुरू भी कर दिया है। न केवल अमेरिका उसके साथ खड़ा है, बल्कि भारत के समर्थन में पूरा दक्षिण पूर्वी एशिया सामने आया है। जापान ने तो यहाँ तक कहा है कि चीन के किसी भी हरकत पर जवाब देने के लिए जापान के पास सारे विकल्प मौजूद हैं। ऐसे में यूएन में चीन को जो पटखनी दी गई है, वह तो मात्र ट्रेलर है, क्योंकि असल पिक्चर अभी बाकी है।