“तुम्हारा हाल भी तिब्बत जैसा ही होगा” तिब्बत के निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति ने नेपाल को दी कड़ी चेतावनी

ओली! तुम कहाँ शरण लोगे? भारत में?

नेपाल

PC: Tibet.net

अगर नेपाल ने अभी ध्यान नहीं दिया तो उसका भी वही हाल होगा जो 1949 में तिब्बत का हुआ था। यह कहना है तिब्बत की निर्वासित सरकार का। Wion से इंटरव्यू के दौरान तिब्बत के निर्वासित राष्ट्रपति Lobsang Sangay ने बताया कि चीन नेपाल के उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को खरीद कर अपने में मिलाने की नीति पर काम कर रहा है।

उन्होंने स्पष्ट शब्दों में नेपाल की सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि जिस तरह से चीन ने पहले तिब्बत तक सड़क बनाई और फिर उसी सड़क से ट्रक, टैंक और बंदूक ला कर तिब्बत पर कब्जा जमाया उसी तरह से चीन नेपाल को भी अपनी सीमा में मिला लेगा। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि, “चीन के सुरक्षा कानून का सबसे पहला शिकार तिब्बत ही था। अगर भारत-चीन का सीमा विवाद सुलझता है तो उसे सबसे पहले तिब्बत का मामला सुलझाना चाहिए।“

बता दें कि तिब्बत का इतिहास बेहद उथल-पुथल रहा है, लेकिन साल 1950 में चीन ने इस इलाके को अपनी सीमा में मिलाने के लिए हज़ारों की संख्या में सैनिक भेज कर आक्रमण कर दिया था। तब तिब्बत के अलावा उससे लगने वाले बाक़ी इलाकों को भी चीनी प्रांतों में मिला दिया गया था। परंतु, साल 1959 में तिब्बतियों ने चीन के ख़िलाफ़ विद्रोह करने की कोशिश की लेकिन तब भी चीन ने उस विद्रोह को बेरहमी से कुचल कर पूरे तिब्बत को चीन की सीमा में मिला लिया और 14वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी जहां उन्होंने निर्वासित सरकार का गठन किया था। तब से ही तिब्बत चीन के कब्जे में है।

आज नेपाल की भी वही हालत है और चीन नेपाल के कई क्षेत्रों को पहले ही रोड बनाने के नाम पर हड़प चुका है और अब उसे पूरी तरह से अपनी सीमा में मिलाने की मंशा रखता है। Zee News की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने नेपाल से सटे करीब 11 इलाकों पर कब्जा कर लिया है। इस रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से लिखा गया है कि तिब्बत से सटे नेपाली सीमा से जुड़े इलाकों पर नदी के जल प्रवाह में परिवर्तन के चलते चीन ने कई नेपाल के इलाकों पर अपना दावा ठोका है, जिसे लेकर Nepal में काफी विरोध हो रहा है।

यही नहीं नेपाल का एक गाँव रुई अब चीन के स्वायत्त वाले तिब्बत के कब्‍जे में आ गया है। 72 घरों वाले इस गांव में चीनी सेना ने जबरदस्ती घुसपैठ कर कब्‍जा किया था लेकिन अब नेपाल की सरकार इसे छुपा रही है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि नेपाल अभी भी रुई गांव को अपने मानचित्र में दिखाती है परंतु, वह क्षेत्र पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में है। नेपाल की सरकार ने नेपाली जनता को धोखा देने की हर मुमकिन कोशिश की है। यही कारण है कि अब नेपाली जनता का ध्यान भटकाने के लिए Nepal की कम्युनिस्ट सरकार ने भारत के क्षेत्रों को अपने क्षेत्र में दिखा कर विवाद पैदा करना चाहती है और यह सब शी जिनपिंग के इशारों पर ही किया जा रहा है। चीन ने नेपाल की सिर्फ जमीन ही नहीं हड़पी है बल्कि उसे BRI के नाम पर इनफ्रास्ट्रक्चर बनाने लालच दे कर अपने कर्ज के जाल में भी फंसा चुका है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी नेपाल की सरकार को कुछ इसी तरह की हिदायत दी थी। उन्होंने कहा था कि अगर नेपाल नहीं चेता तो उसका भी वही हाल होगा जो तिब्बत का हुआ था। इस पर नेपाल के पीएम केपी ओली भड़क गए थे।

जिस तरह से चीन धीरे-धीरे कर नेपाल को अपनी सीमा में मिलाता जा रहा है, और वहां की राजनीति को अपने हिसाब से नियंत्रित कर रहा है, उससे तो यही लगता है कि अब वह दिन दूर नहीं जब Nepal को चीन के नाम से ही जाना जाने लगेगा जैसे तिब्बत को अब जाना जाता है।  तिब्बत के निर्वासित राष्ट्रपति Lobsang Sangay का कहना बिल्कुल सही है और चीन ऐसी ही मंशा रखता भी है। Lobsang Sangay पहले ही बता चुके हैं कि “जब तिब्बत पर कब्जा किया गया था, माओत्से तुंग और अन्य चीनी नेताओं ने कहा था कि ‘तिब्बत वह हथेली है जिस पर हमें कब्जा करना चाहिए, फिर हम पांचों उंगलियों पर भी जाएंगे।’ पहली उंगली लद्दाख की है। अन्य चार नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश हैं”। आज भी चीन इसी नीति पर काम कर रहा और पहले से ही लद्दाख और Nepal को अपनी सीमा में मिलाने की चालें चल रहा है। वर्ष 2017 में डोकलाम स्टैंडऑफ के दौरान चीन ने यही चाल भूटान और सिक्किम को हड़पने के लिए चली थी, लेकिन उस दौरान भारत ने भूटान का समर्थन किया और चीन को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया। परंतु आज की नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार चीन के पालतू की तरह बर्ताव कर रही है। अगर अब भी नेपाल की जनता और सरकार होश में नहीं आई तो विश्व के मानचित्र से इस देश का नामों निशान मिट जाएगा।

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