अमेरिका की चार सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियों के CEOs बुधवार को संसद की न्यायिक समिति के एंटीट्रस्ट पैनल के समक्ष वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पेश हुए। इनमें फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग, अमेजन के जैफ बेजोस, गूगल के सुंदई पिचई और एपल के टिम कुक शामिल थे। कांग्रेस के पैनल ने इन चारों CEOs को एक साथ बुलाया, ताकि ये एक दूसरे पर अपनी ज़िम्मेदारी को न डाल सके।
हालांकि, एक साथ आकर भी इन कंपनियों ने एक दूसरे पर आरोप लगाना नहीं छोड़ा। फेसबुक की ओर से जुकरबर्ग ने गूगल और एपल पर आरोप लगाते हुए कहा कि बड़े खिलाड़ी होने की वजह से ये दोनों ही देश के लिए बड़ा खतरा पैदा करते हैं। जुकरबर्ग ने कहा “कुछ क्षेत्रों में हम अपने प्रतिद्वंधियों से पिछड़े हुए हैं। अमेरिका में सबसे लोकप्रिय messaging एप Imessage है। TikTok सबसे तेजी से बढ़ती एप है। YouTube सबसे बड़ा video platform है। गूगल सबसे बड़ा ad platform है। हमारे ऊपर अमेरिका में ads पर होने वाले कुछ खर्च का 10 प्रतिशत हिस्सा भी खर्च नहीं होता”।
अमेरिका के सांसदों ने वर्ष 2012 की Facebook-Instagram डील पर भी सवाल उठाए। सांसदों ने आरोप लगाया कि फेसबुक ने अपने कंपीटीशन को मारने के लिए ऐसा किया होगा। हालांकि, जुकरबर्ग ने कहा कि वर्ष 2012 में instragram बहुत ही छोटा खिलाड़ी था, और फेसबुक से उससे कोई खतरा नहीं था। इसी प्रकार जुकरबर्ग ने Facebook-Whatsapp डील का भी बचाव किया। उनके मुताबिक “Whatsapp हमारे लिए प्रतिद्वंधी भी थी और एक पूरक भी। Whatsapp social messaging के क्षेत्र में हमारे कंपीटीशन में थी, जो कि बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है”।
इसके बाद सांसदों ने गूगल और इसकी प्रचार नीतियों को आड़े हाथों लिया। सांसद प्रमिला जयपाल ने गूगल की ad policy पर सवाल उठाते हुए सुंदर पिचाई से सवाल पूछा “marketplace में गूगल खरीदने वाले की ओर से भी काम कर रहा है, और बेचने वाले की ओर से भी, क्या ये हितों का टकराव नहीं है?”
टॉप CEOs की पेशी से पहले इस प्रोग्राम को तब एक राजनीतिक एंगल भी मिल गया जब ट्रम्प ने इन दिग्गज कंपनियों पर एक “खास विचारधारा” के लोगों के विचारों को दमन करने का आरोप लगा डाला। ट्रम्प ने कहा “अगर कांग्रेस इन IT कंपनियों के रवैये में निष्पक्षता नहीं ला पाती है, तो फिर ऐसा मैं अपने executive order के माध्यम से करूंगा”।
ट्रम्प की line पर ही republican सांसद जिम जॉर्डन ने सवाल उठाया “एक बात साफ है, ये सभी IT कंपनियाँ conservatives के पीछे पड़ी हुई हैं। ये कोई मिथ्या नहीं है, ये कोई विचार भी नहीं है, ये तथ्य है”। कमिटी ने कहा कि इन सभी बड़ी कंपनियों को छोटे हिस्सों में तोड़े जाने और फिर इन्हें regulate किए जाने की ज़रूरत है, नहीं तो ये कंपनियाँ छोटे और स्वतंत्र उद्योगों को बर्बाद करती रहेंगी।
कुल मिलाकर इस पेशी के दौरान सभी CEOs अपनी ज़िम्मेदारी एक दूसरे पर डालते नज़र आए। सच कहे तो ये टॉप कंपनियाँ ऐसे ही अपनी जिम्मेदारियों से भागती नज़र आई हैं। भारत में भी समय-समय पर इनपर दक्षिणपंथी आवाजें दबाने का आरोप लगता रहता है। इन सब कंपनियों को भारत में भी सही से regulate करने की ज़रूरत है, ताकि इनके प्रभाव को कम किया जा सके।