अमित शाह vs प्रशांत किशोर: एक रणनीति बनाने में मास्टर है, तो दूसरा अभी नौसिखिया है

बाजी किसके हाथ होगी, आप खुद तय करिये

अमित शाह

भारत एक ऐसा देश हैं जहां लगभग हर वर्ष किसी न किसी प्रकार के चुनाव होते ही हैं और सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव तैयारियों में व्यस्त रहती हैं। यह सभी को पता है कि अगले वर्ष पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं और इसी चुनाव के मद्देनजर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने BJP के खिलाफ रविवार को ‘शोजा बांग्लाए बोलची नाम के अभियान की शुरुआत की जिसमें राज्य सरकार की उपलब्धियों को रेखांकित किया जाएगा। ‘शोजा बांग्लाए बोलची का अर्थ है ‘सीधे बांग्ला में बोलते हुए’। रिपोर्ट के अनुसार यह कैम्पेन भी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के दिमाग की ही उपज हो सकती है।

‘शोजा बांग्लाए बोलची’ एक सप्ताह में तीन दिन तक चलने वाला एक वीडियो सीरीज होगी, जिसे TMC के राज्यसभा में सदस्य डेरेक ओ ब्रायन संबोधित करेंगे। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ‘इस वीडियो में बताया जायेगा कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में किस प्रकार से बंगाल ने नौ वर्षों में सभी मानकों में असाधारण प्रगति की है। अन्य विषयों में केंद्र किस प्रकार से संघवाद को कथित तौर पर नष्ट कर रहा है, और किस प्रकार से राज्यों को वंचित किया जा रहा है आदि शामिल होंगे।’

हालांकि, यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि ‘शोजा बांग्लाए बोलची’ अमित शाह के रणनीति को जवाब देने के लिए लॉन्च किया गया है। इसी वर्ष कुछ महीनों पहले यह खबर आई थी कि अमित शाह पश्चिम बंगाल की जनता के लिए खासतौर पर बंगला भाषा सीख रहे हैं। इससे वे पश्चिम बंगाल के कार्यकर्ताओं तथा जनता से सीधे तौर पर संवाद कर पाएंगे। अब TMC के लिए चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर ने अमित शाह को टक्कर देने के लिए ‘शोजा बांग्लाए बोलची’ को लॉन्च किया है। इस कैंपेन के जरिये प्रशांत किशोर की रणनीति ममता बनर्जी द्वारा किये गए कामों को जनता तक पहुंचाना है और राज्य में बीजेपी के खिलाफ जनता को करना है। हालाँकि, प्रशांत किशोर की ये रणनीति भी ‘दीदी के बोलो‘ रणनीति की तरह फेल होती है तो इसमें किसी को कोई हैरानी नहीं होगी।

अमित शाह की रणनीति के खिलाफ लड़ने की बात हो तो शायद ही कोई उनके मुकाबले में नजर आता है। अमित शाह प्रशांत किशोर की तरह जीतने वाली पार्टी पर दाव नहीं लगाते। प्रशांत किशोर एक ओवररेटेड रणनीतिकार हैं जो सिर्फ किसी भी पार्टी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए ही उनके लिए रणनीति बनाते हैं।

2019 के आम चुनावों के बाद से ही PK अपने अनुसार हिंदुओं को लुभाने के लिए ममता बनर्जी की रिब्रांडिंग करने में जुटे हुए थे। इसका उद्देश्य 2021 में होने वालों राज्य के विधानसभा चुनावों में भाजपा से अपनी पार्टी को बचाना था। हालांकि, यहाँ भी अमित शाह के सामने उनकी रणनीति धरी की धरी रह गयी थी।

उन्होंने ममता बनर्जी और TMC को सॉफ्ट हिन्दुत्व कार्ड खेलने के लिए उतार दिया था। चाहे वो TMC की नवनिर्वाचित सांसद और नवविवाहिता नुसरत जहां को लोकसभा में साड़ी, मंगलसूत्र और सिंदूर में शपथ लेना हो या तारकेश्वर मंदिर की कमेटी की अध्यक्षता करने वाले मुस्लिम अध्यक्ष को हटाना हो। रिपोर्ट के अनुसार ममता बनर्जी को यह भी सलाह दी गयी थी कि वो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह पर प्रत्यक्ष रूप से कोई हमला न करें।

तभी अमित शाह ने CAA के रूप में एक बाउन्सर फेंका जिसका जवाब ममता के पास नहीं था, और उन्हें फिर से अपने हिन्दू विरोधी रुख पर उतरना पड़ा। CAA को लेकर पश्चिम बंगाल में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। एक तरह से देखें तो प्रशांत किशोर का सारा दांव उल्टा पड़ गया था। वह चाह रहे थे कि ममता बनर्जी हिन्दू विरोधी न दिखें, लेकिन अमित शाह के एक कदम ने उन्हें एक्सपोज कर दिया।

गौर करें तो प्रशांत किशोर जब भी अमित शाह के प्रतिद्वंद्वी के रूप में उतरे हैं, तब तब उन्हें मुंह की खानी पड़ी है। उदाहरण के लिए 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों को देख लें। प्रशांत किशोर सपा-कांग्रेस गठबंधन के राजनीतिक रणनीतिकार थे। नोटबंदी में स्थिति को भांपते हुए उन्होंने कांग्रेस को सत्तारूढ़ सपा के साथ गठबंधन करने के लिए राज़ी कराया। परंतु परिणाम इसके ठीक उलट आए। बहुमत तो बहुत दूर की बात, सपा 100 सीट भी न जीत पायी और भाजपा 312 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही।

इसी प्रकार जिस महागठबंधन की नींव प्रशांत किशोर ने बिहार में रखी थी, वो भी 2017 के मध्य तक धसक गयी थी और लालू यादव और उनके पुत्रों की मनमानी से तंग आकर नितीश कुमार ने एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया। इस तरह से प्रशांत किशोर अपने महागठबंधन को बचाने में भी असफल रहे थे।

प्रशांत किशोर के विपरीत अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा का पूरे देश में विस्तार हुआ है और ये पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। प्रशांत किशोर चाहे कैसी भी रणनीति क्यों ना बना लें, वे किसी भी प्लान पर काम क्यों न कर लें, लेकिन सच्चाई यह है वह अमित शाह के सामने कहीं नहीं टिकते। सच कहें तो प्रशांत किशोर राजनीति के विषय में अमित शाह जितने परिपक्व और सूझ-बूझ वाले व्यक्ति नहीं है। वे जहां भी भाजपा के विरुद्ध रणनीति बनाने पहुंचे, वहां उन्हें मुंह की खानी पड़ी है। अब पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों में भी यही देखने को मिलेगा क्योंकि अब वहाँ की जनता TMC की गुंडागर्दी से तंग आ चुकी है जिससे BJP को बहुमत मिलने की संभाना बढ़ गयी है।

 

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