‘वो अटेंशन का भूखा था’, सुशांत सिंह राजपूत ने अनुराग कश्यप की फिल्म को न कहा था, अब कश्यप उसी का बदला ले रहे

अनुराग कश्यप लाइमलाइट के लिए कुछ भी कर सकते हैं

अनुराग कश्यप

बॉलीवुड में कुछ लोग लाइमलाइट के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं और इस लिस्ट में निर्देशक अनुराग कश्यप भी शामिल हैं। परंतु, पिछले कुछ दिनों से लाइमलाइट में रहने के लिए अनुराग कश्यप जो कर रहे हैं, उसे देख तो ध्रुव राठी और स्वरा भास्कर भी शिष्टाचार की प्रतिमूर्ति लगें। अनुराग कश्यप ने अभी एक साक्षात्कार में सुशांत सिंह राजपूत को अपमानित करने का जो प्रयास किया है, उसके लिए किसी भी प्रकार की निंदा और अपशब्द कम ही लगेगा।

हाल ही में फिल्मफेयर को दिये साक्षात्कार में अनुराग कश्यप ने बताया कि सुशांत सिंह राजपूत ने किस तरह उनके साथ ‘विश्वासघात’ किया था। उन्होंने कहा, “मुकेश छाबड़ा मेरे ऑफिस से काम करता था। हम हंसी तो फंसी बना रहे थे। हमने वो फिल्म सुशांत सिंह राजपूत के साथ शुरू की थी, परंतु उसे YRF [यश राज फिल्म्स] के साथ फिल्म करने की इच्छा थी। उसने एक बाहरी की फिल्म को ठुकरा कर YRF के साथ शुद्ध देसी रोमांस की। सुशांत YRF और धर्मा जैसे प्रोडक्शन हाउस के अटेन्शन का भूखा था। अब कुछ लोग उसकी मृत्यु का इस्तेमाल कर दूसरों को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं”।

अनुराग कश्यप ने यह साक्षात्कार ऐसे समय में दिया है, जब सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘दिल बेचारा’ डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म पर प्रदर्शित होने को तैयार थी। परंतु ठहरिए, महोदय यहीं पर नहीं रुके। अनुराग कश्यप आगे कहते हैं, “कुछ सालों बाद 2016 में सुशांत सिंह राजपूत जब एमएस धोनी पर बायोपिक कर रहा था, तब भी मुकेश सुशांत के पास गया था। उसने बताया कि अनुराग एक ऐसे अभिनेता को ढूंढ रहे थे, जो उसकी आने वाली फिल्म में काम कर सके, और जो उत्तर प्रदेश से बाहर का हो। सुशांत ने स्क्रिप्ट सुनी और धोनी के हिट होने के बाद मुझे पूछा तक नहीं। लेकिन तब भी मैंने मुक्काबाज़ बनाई। मैं दुखी नहीं हूँ, ऐसा होता रहता है”।

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कुछ लोग अटेन्शन प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है, पर अनुराग कश्यप ने जो किया है, उसे नीचता की पराकाष्ठा ही कहेंगे। जिस प्रकार से अनुराग कश्यप ने सुशांत को गैर पेशेवर और अटेन्शन का भूखा करार देने का प्रयास किया है, उसके लिए अनुराग को जो भी बोले, कम पड़ेगा। अपने आकाओं को बचाने के लिए और किस हद तक जाएगें अनुराग कश्यप?

पर ठहरिए, अनुराग पहले ऐसे व्यक्ति नहीं है जिन्होंने सुशांत के बारे में इतनी ओछी बात बोली हो। कथित फिल्म क्रिटिक राजीव मसन्द ने तो सुशांत के बारे में ऐसी ऐसी बातें ओपेन मैगज़ीन में अपने लेखों में लिखी, जिसे पढ़कर किसी का भी खून खौल सकता है। इन्हीं में से एक लेख में राजीव मसन्द ने सुशांत सिंह राजपूत का नाम लिए बिना सुशांत सिंह राजपूत के बारे में ऐसे-ऐसे शब्द बोले, जिसे पढ़कर आप समझ सकते हैं कि ये व्यक्ति अपनी निकृष्टता को सिद्ध करने के लिए किस हद तक जा सकता है।

रही बात मुक्काबाज़ की, तो यदि सुशांत सिंह राजपूत ने वास्तव में इस फिल्म को रिजेक्ट किया था, तो ये उनके खुद के भले के लिए ही था, क्योंकि मुक्काबाज़ को फिल्म कहना उचित नहीं होगाा। जिस तरह से ‘पाताल लोक’ चंद क्रिटिक्स की चाटुकारिता भरी समीक्षा से एक बेहतरीन वेब सीरीज़ नहीं बन सकते, उसी तरह से मुक्काबाज़ वामपंथी समीक्षकों की लाख प्रशंसा के बावजूद एक अच्छी फिल्म नहीं कहलाई जा सकती।

एक स्पोर्ट्स ड्रामा को किस तरह से अपने निजी स्वार्थ के लिए एक अझेल प्रोपेगेंडा में परिवर्तित किया जा सकता है, यह कोई अनुराग कश्यप से सीखे। ब्राह्मणों की नकरात्मक छवि पेश करना, बात बात पर गौरक्षा को नकारात्मक परिवेश में दिखाना, जातिवाद के नाम पर ब्राह्मणों के विरुद्ध मोर्चा निकालना, आप बस बोलते जाइए और इस फिल्म में सब कुछ था। यदि ऐसी फिल्म की कहानी को न करके एक उचित निर्णय सुशांत सिंह ने लिया होगा, क्योंकि कहानी में किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना और नकरात्मकता दिखाना कहीं से भी एक अच्छे अभिनेता को शोभा नहीं देता। किसी फिल्म को करना या न करना एक कलाकार पर निर्भर करता है परन्तु उसके न को अपना अपमान समझकर उसे इस तरह से मतलबी और अटेंशन सीकर कहना कहाँ तक उचित है? ऐसे में अनुराग कश्यप अब सुशांत सिंह राजपूत के नाम पर जिस तरह के बयान दे रहे हैं वो बेहद शर्मनाक है।

शायद अनुराग कश्यप के इसी व्यवहार के कारण ही अभिनेता रणवीर शौरी ने उन्हें हाल ही में आइना दिखाया था। उन्होंने एक ट्वीट में कहा भी था, “कितने लोगों का तुम अपमान कर रहे थे जब तुमने कहा कि ‘मैं लोगों को हमारी विचारधारा नहीं बदलने दूँगा’? तुम होते कौन हो विचारधारा पर कब्जा जमाने वाले? सबको अपनी तकलीफ के बारे में बात करने का अधिकार है, जैसे तुम कर रहे हो! और हाँ, मेरे ट्वीट्स के लिए तुम्हारे जवाब एकदम फिजूल थे। यहाँ मैं कोई तमाशा नहीं खड़ा कर रहा”।

सच कहें तो अनुराग कश्यप ने अपने इस साक्षात्कार से सिद्ध किया है कि वे अब पहले जैसे उत्कृष्ट फ़िल्मकार क्यों नहीं रहे। यदि कहानी  फिल्म के एक संवाद को वर्तमान परिस्थिति में अनुवाद करे, तो अनुराग कश्यप “उन्हीं के हाथों बिक चुके हैं, जिनसे उन्हें सिनेमा को बचाना था”।

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