अब चाबहार के रास्ते चीन की गर्दन पकड़ेगा भारत, मध्य एशिया से रूस-भारत मिलकर करेंगे चीन को Out!

भागो चीन! भारत-रूस ने हाथ मिला लिया है!

चाबहार पोर्ट

भारत और चीन के बीच जारी बॉर्डर विवाद के दौरान अब भारत मध्य एशिया में चीन को बड़ा झटका दे सकता है। चीन को झटका देने में भारत का सबसे अहम हथियार बनेगा ईरान का चाबहार पोर्ट, जिसे वर्ष 2016 से ही भारत ईरान की धरती पर विकसित कर रहा है। इसी वर्ष भारत ने चाबहार को विकसित करने के लिए 100 करोड़ का बजट आवंटित किया था। अब इसके बाद भारत ने इस पोर्ट पर अपने operations में तेजी ला दी है। इस पोर्ट के जरिये पहले सामान अफ़ग़ानिस्तान भेजा जा रहा था, अब जल्द ही भारत पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के देशों तक भी अपना सामान पहुंचा सकता है। अब केन्द्रीय मंत्री मंसुख लाल ने ऐलान किया है कि इन देशों तक सामान पहुंचाने में भारत को अब 20 प्रतिशत कम खर्चा करना पड़ेगा, क्योंकि चाबहार पोर्ट के जरिये व्यापार का रास्ता छोटा हो गया है, जबकि पहले भारत को यूरोप अथवा चीन के माध्यम से ही इन देशों तक पहुंचना पड़ता था।

केंद्रीय मंत्री के मुताबिक भारत अब ट्रांसपोर्ट के 20 प्रतिशत कम खर्चे में ही आर्मेनिया, अजेरबैजान, बेलारूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और रूस जैसे देशों तक पहुँच सकता है। ट्रांसपोर्ट में खर्चा कम होने की वजह से अब इन देशों के बीच ट्रेड भी बढ़ सकता है। यहाँ सबसे रोचक बात यह है कि भारत के साथ रूस भी चाबहार का इस्तेमाल कर सकता है। दरअसल, रूस ने पिछले वर्ष चाबहार के जरिये दक्षिण एशिया में अपना trade बढ़ाने में रूचि दिखाई थी। पिछले वर्ष रूस के अधिकारियों ने चाबहार पोर्ट का दौरा भी किया था, जिसके बाद रूस ने कहा था कि इस पोर्ट के माध्यम से सामान लाने-और ले-जाने पर अमेरिका की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं है, ऐसे में रूस के लिए भी इस पोर्ट का इस्तेमाल फायदेमंद साबित हो सकता है।

भारत-ईरान का यह पोर्ट मध्य एशिया में भारत के प्रभाव को कई गुना तक बढ़ा सकता है। अभी मध्य एशिया में प्रभाव को लेकर रूस और चीन के बीच तनातनी देखने को मिलती है। आर्थिक मोर्चे पर रूस चीन के सामने कहीं नहीं ठहरता। ऐसे में रूस को किसी साझेदार की आवश्यकता थी, जो अब भारत पूरी कर रहा है।

भारत अब चाबहार पोर्ट का भरपूर इस्तेमाल करना चाहता है, और इसकी timing बहुत महत्वपूर्ण है। अभी मध्य एशिया के देशों में चीन के खिलाफ रोष है और वे चीन के विकल्प की तलाश में हैं। एक तरफ कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़बेज्किस्तान जैसे देशों पर चीन का कर्ज़ बढ़ता जा रहा है, तो वहीं इन देशों में मौजूद चीनी लोग अपनी संस्कृति को क्षेत्रीय लोगों पर थोप रहे हैं। इसकी शुरुआत वर्ष 2017 में होती है, जब कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष बीजिंग में BRI फोरम की बैठक के लिए पहुंचे थे। इन सब देशों ने मिलकर चीन के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनाई थी। कुछ प्रोजेक्ट कनेक्टिविटी से जुड़े थे, तो कुछ ऊर्जा से, और सभी को यह सपना दिखाया गया था कि कुछ सालों के बाद उनके देशों में सब अच्छा होने लगेगा। लेकिन महज़ दो सालों के भीतर ही सब कुछ पटरी से उतर चुका है। कई प्रोजेक्ट शुरू होकर अधर में लटक चुके हैं, और कई प्रोजेक्ट्स अभी तक सिर्फ कागज़ पर ही हैं। लेकिन इतने समय में इन देशों पर चीन का कर्ज़ बड़ी मात्रा में बढ़ चुका है।

चीन इन देशों पर एक योजनाबद्ध तरीके से सांस्कृतिक हमला भी बोल रहा है। 1 अक्टूबर को जब दुनियाभर में सभी चीनी लोग अपना राष्ट्रीय दिवस मनाते हैं, तो पिछले वर्ष उस दिन मध्य एशियाई देशों में बसे चीनी लोगों ने भी परेड निकालकर, कॉन्सर्ट और उत्सव का मंचन किया था। यहां तक कि किर्गिस्तान की यूनिवर्सिटीज़ में भी चीन का राष्ट्रीय दिवस बड़े धूम-धाम से मनाया गया था। ये सभी चीनी लोग BRI प्रोजेक्ट के तहत काम करने के लिए लेबर के तौर पर ही इन देशों में आकर बसे हैं। यानि जगह भी उन देशों की, पैसा भी उन देशों का, लेकिन रोजगार सिर्फ चीनी नागरिकों के लिए। सबसे बुरी बात यह है कि मध्य देशों की सरकार इस सब पर आंख बंद करे बैठी है, लेकिन लोगों में इसको लेकर बेहद गुस्सा है।

अब भारत और रूस मिलकर इन देशों को बड़ी आर्थिक राहत प्रदान कर सकते हैं, जो इन देशों पर चीन की पकड़ को कमजोर कर देगा। यानि भारत लद्दाख के साथ-साथ चीन के पश्चिम में मध्य एशिया में भी चीन को बड़ा झटका देने जा रहा है।

 

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