पहले राजकीय सम्मान देने से मना किया, अब अंतिम क्रिया पर भी रोक लगाई, शहीदों के साथ ऐसा है चीन का सलूक

थू है ऐसे देश पर, जो अपने शहीदों को मिट्टी में मिला दे

सैनिकों

PC: The August

इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन को 15 जून की रात को गलवान घाटी में भारतीय टुकड़ी पर हमला करना बहुत महंगा पड़ा था। कहने को भारतीय हताहतों के मुक़ाबले चीनी पक्ष में हताहतों की संख्या बहुत ही ज़्यादा थी, पर चीन पिछले एक महीने से इस बात को स्वीकारने में आनाकानी कर रहा है। लेकिन अब जो खबरें सामने आ रही हैं, उससे पता चलता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी तो उन मृत सैनिकों को दफन होने के लिए दो गज़ ज़मीन भी नसीब नहीं होने दे रही है। यूएस न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने सख्त निर्देश दिये हैं कि मृत सैनिकों का अंतिम संस्कार गुपचुप तरीके से होगा, और पारंपरिक तौर पर उन्हे दफनाया बिलकुल नहीं जाएगा। यानि चीन ये भी नहीं चाहता कि उसके मृत सैनिकों का अंतिम संस्कार पारंपरिक तरह से हो।

इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट के अनुसार चीन ने जो हमला किया था, वो एक बहुत बड़ी भूल थी, जिसके कारण भारत और चीन के रिश्तों में काफी हद तक कड़वाहट आ सकती है। कहने को चीन ने इसके पीछे वुहान वायरस को प्रमुख कारण बताया है, लेकिन सच्चाई इससे कोसो दूर है। असल में सैनिकों को दफनाने का अर्थ उनके लिए स्मृति शेष यानि मेमोरियल का निर्माण करना, जिससे भारतीयों के हाथों मारे गए चीनी सैनिकों की वास्तविक संख्या का पता भी दुनिया को चल जाता।

यूएस न्यूज़ से बातचीत के दौरान चीन से संबन्धित एक विश्वसनीय सूत्र ने बताया, “सच तो यह है कि वे सैनिकों के बलिदान का सम्मान भी नहीं करना चाहते, इसलिए उन्होंने अंतिम संस्कार में किसी भी प्रकार के समारोह को प्रतिबंधित किया है”। सच कहें तो चीन ने पहले के मुक़ाबले अपने मृत सैनिकों को इस बार अपनी ढाल बनाकर भारत के विरुद्ध इस्तेमाल भी नहीं किया है, क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि गलवान घाटी में भारत के वीर जवानों ने उन्हे ज़बरदस्त धूल चटाई है।

इससे पहले चीन की जनता ने काफी हो हल्ला मचाया था, जब चीनी सेना ने मृत सैनिकों के लिए श्रद्धांजलि सभा आयोजित करने से मना किया था। इसके ठीक उलट भारतीय सेना ने न केवल श्रद्धांजलि सभा अर्पित की, अपितु वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों को सम्मान विदाई भी दिलवाई। इस पर चीनी सोशल मीडिया पर काफी बवाल मचा, और चीन के कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने इस सभा का हवाला देते हुए चीनी प्रशासन पर तंज़ भी कसा। उधर चीन के नागरिक अभी भी इसी बात से अंजान है कि उनके सैनिकों के साथ उस रात वास्तव में क्या हुआ था। चीनी प्रशासन के मुखपत्रों का दावा है कि वास्तविक संख्या बताने से क्षेत्र की अमन और शांति बिगड़ जाएगी, पर सच तो यह है कि चीन पाकिस्तान की भांति अपनी पोल खुलने से हिचकिचा रहा है।

एक बार फिर हमें ध्यान में रखना चाहिए कि चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी एक अक्षम सेना है, जिसके पास युद्ध का पिछले चार दशकों से कोई अनुभव नहीं है। इसके बावजूद जो भी सैनिक अपने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करता है, उसे कम से कम कुछ मूलभूत सम्मान का अधिकार तो है ही। परंतु जो चीन अपने सैनिकों के साथ कर रहा है, उससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि उन्हे अपने खुद के सैनिकों की भी कोई परवाह नहीं है।

 

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