चीन और रूस के बीच की कथित दोस्ती अब शायद ही बची रहेगी। जिस तरह से चीन रूस के मित्र देश माने जाने वाले सर्बिया में निवेश कर रहा है, वो रूस को काफी नागवार गुज़री है, परंतु चीन (China) सिर्फ सर्बिया तक सीमित नहीं है, अपितु कई देशों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, जहां रूस से मित्रता काफी पुरानी रही है।
चाहे पूर्वी यूरोप हो, या फिर केन्द्रीय एशिया, चीन (China) अब हर जगह अपनी पैठ जमा रहा है। कभी जो रूस के साथी हुआ करते थे, वो आज चीन के बेल्ट एंड रोड अभियान की गिरफ्त में आ रहे हैं। दुनिया में अब केवल अमेरिका और रूस में नहीं, अपितु अमेरिका, रूस और चीन में प्रतिस्पर्धा हो रही, जिसमें रूस को चीन का जूनियर पार्टनर बनना पड़ रहा है।
विडम्बना की बात तो यह है की रूस चाहकर भी चीनी प्रभाव के बारे में अधिक कुछ नहीं कर सकता। इसका प्रमुख कारण है Eurasian Economic Union (यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन), जिसके सदस्य देशों पर चीन (China) का प्रभाव बढ़ता ही चला जा रहा है। उदाहरण के लिए केन्द्रीय एशिया के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था Kazakhstan (कज़ाकस्तान) लीजिये। कज़ाकस्तान ने निर्विरोध रूप से चीन के बीआरआई अभियान का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया है। इसके अलावा कज़ाकस्तान के खोरगोस शहर में विश्व का सबसे बड़ा ड्राई पोर्ट बनने जा रहा है, जिसमें प्रमुख रूप से चीनी निवेश शामिल है। सच कहें तो इस समय केन्द्रीय एशिया का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर चीन है, जिसने EU और रूस को बहुत पीछे छोड़ दिया है। व्यापार के मामले में रूस चीन का मुक़ाबला कर ही नहीं सकता।
पर बात यहीं पर खत्म नहीं होती। बीजिंग ने केन्द्रीय एशिया पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया है। किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे देश चीन (China) के कर्ज़ के जाल में पहले ही फंस चुके हैं। रूस के सबसे बड़े साझेदारों में से एक माने जाने वाले कज़ाकस्तान को चीन से अधिक रूस से निवेश मिलता है, और इसीलिए चीनी प्रोजेक्ट साइबेरिया के दक्षिण तक पहुँच चुके हैं।
इसके अलावा अभी हाल ही में चीन ने रूस के Vladivostok शहर पर दावा ठोका था। रूस भी भली भांति जानता है कि ये लड़ाई वह अकेले नहीं जीत सकता, इसलिए उसने EAEU और भारत के साथ संभावित फ्री ट्रेड समझौते से आशा लगाई हुई है। अगर आप आर्कटिक क्षेत्र पर नज़र डालें, तो वहाँ भी चीन अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। बीजिंग विशेष रूप से बाल्टिक सागर क्षेत्र में निवेश कर रहा है। चाहे लाटविया हो, लिथुआनिया या फिर एस्टोनिया, सभी बीआरआई का हिस्सा हैं, और इस तरह से आर्कटिक क्षेत्र में चीन को संसाधन पर हाथ साफ करने से कोई नहीं रोक पाएगा।
पर रूस ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। राष्ट्रपति पुतिन चीन की मनमानी नहीं चलने देना चाहते। एक ओर जहां शी जिनपिंग अपने आप को आजीवन चीन का शासक बनाना चाहते थे, तो वहीं पुतिन भी 2036 तक कहीं नहीं जाने वाले नहीं हैं। चीन (China) अपने विश्वासघात के लिए काफी कुख्यात रहा है, इसलिए रूस चीन के विरुद्ध इस समय फूँक-फूँक कर कदम रख रहा है। चूंकि ये काम अकेले नहीं किया जा सकता, इसलिए रूस को एक भरोसेमंद साझेदार की दरकार है, जो इस समय रूसी प्रशासन को भारत के अलावा कहीं नहीं मिलेगा।
इसीलिए पिछले कुछ महीनों से रूस, रूस समर्थक देश और भारत के बीच बातचीत में काफी वृद्धि हुई है। यदि चीन (China) की हेकड़ी को नियंत्रण में रखना है, तो रूस को भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा, और ये पुतिन के लिए कोई कठिन काम नहीं है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि यदि चीन को नियंत्रण में करना है, तो भारत को खेल में शामिल करना बहुत ज़रूरी हो जाएगा, चाहे वो रूस हो, या फिर अमेरिका।