हाँग काँग की स्वायत्ता को नष्ट करने के बाद अब चीन का प्रशासन अपनी छवि सुधारने में लगा हुआ है। हाँग काँग की स्वायत्ता को समाप्त करने वाले नेशनल सेक्युरिटी लॉ पर वैश्विक आलोचना का सामना करने के बाद अब चीन ने अपनी छवि सुधारने के लिए पीआर एजेंसी के लिए तलाशना प्रारम्भ कर दिया था। लेकिन कई पीआर एजेंसियों ने हाँग काँग के चीनी चाटुकारों के साथ काम करने से भी मना कर दिया था।
परंतु चीन को ऐसा लगता है कि अब एक पीआर एजेंसी मिल चुकी है। लंदन में स्थित कोंसुलम (Consulum) नामक इस पीआर एजेंसी ने 6 मिलियन डॉलर के लिए हाँग काँग की छवि सुधारने का जिम्मा उठा लिया है। Consulum का पीआर के तौर पर नियुक्त होना ऐसे समय में आया है, जब चीन ने नैतिकता और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए नेशनल सेक्युरिटी लॉ को मनमाने तरीके से पारित करा लिया। लेकिन जिस तरह से Consulum को पीआर का खिताब मिला है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि चीन अपनी छवि सुधारने के लिए कितना छटपटा रहा है।
सोमवार को हाँग काँग के सूचना विभाग ने ये घोषणा की कि Consulum FZ LLC को यह कांट्रैक्ट मिला, और वे रीलॉन्च हाँग काँग अभियान का हिस्सा बनेंगे। सूचना विभाग के अनुसार, “हमें आशा कि इस अभियान से हाँग काँग को एक बार फिर वैश्विक समुदाय से जुड़ने में सफलता मिलेगी, और COVID 19 के बाद हम विश्व के साथ बेहतर ढंग से जुड़ पाएंगे। बता दें कि इस अभियान के लिए सात दावेदार ने प्रारम्भ में आवेदन किया था, परंतु नेशनल सेक्युरिटी लॉ पारित होते ही दो दावेदारों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए।
लेकिन Consulum यूं ही विवादों में नहीं आया। विवादों के साथ इस पीआर एजेंसी का बहुत पुराना नाता रहा है। इस एजेंसी ने सऊदी अरब और उसके शासक मोहम्मद बिन सलमान के लिए पीआर अभियान भी संभाला था। यही नहीं, जब वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की बर्बरतापूर्ण हत्या हुई थी, तब इसी फार्म ने सऊदी साम्राज्य के पीआर को संभालने का जिम्मा लिया था।
सऊदी अरब की बर्बरता से भला कौन नहीं परिचित है? इसके बावजूद अपनी छवि को बचाने के लिए उन्हें लंदन में बसे पीआर एजेंसी Consulum की सेवाएँ लेनी पड़ी, और अब सीसीपी भी अपने आप को वैश्विक आलोचना से बचाने के लिए इसी एजेंसी की सेवाएँ ले रहा है।
स्पष्ट शब्दों में कहे तो चीन करोड़ों डॉलर खर्च करने को तैयार है, ताकि हाँग काँग के मुद्दे पर उसके लिए सहानुभूति प्राप्त हो सके। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन ने इस कदम से चीन और इंग्लैंड के बीच हुए 1997 में हाँग काँग के हस्तांतरण से संबन्धित समझौते का उल्लंघन किया है, और हाँग काँग को मिलने वाली सहूलियत भी उससे छीनी है। अक्सर देखा गया है कि तानाशाही सत्ताओं को पीआर एजेंसी की बड़ी आवश्यकता पड़ती है, और इसीलिए Consulum को हाँग काँग की छवि सुधारने का अवसर देना कोई हैरानी की बात नहीं है।
लेकिन जिस तरह से Consulum को ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई, उससे स्पष्ट है कि न केवल Consulum, बल्कि चीन की विश्वसनीयता भी अब रसातल में है, और अब कोई भी इन दोनों से हाथ मिलाने से पहले हज़ार बार सोचेगा। वुहान वायरस से उबरने के बाद जिस तरह से चीन के विरुद्ध मुहिम चलाई जा रही है, उससे एक बात और स्पष्ट होती है – कोंसुलम को अब से कोई भी देश अपने पीआर के लिए नियुक्त करने से पहले हज़ार बार सोचेगा।