भारत के साथ सीमा विवाद को बढ़ाने के बाद अब चीन ने अपनी नजर भूटान के क्षेत्रों की तरफ किया है और उसे हड़पने के लिए चाल चल रहा है। The Hindu की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने भूटान के पूर्वी क्षेत्र में स्थिति सकतेंग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी पर अपना दावा ठोकते हुए इस मामले को सुलझाने के लिए Bhutan के सामने “package solution” का प्रस्ताव रखा है। माना यह जा रहा है कि चीन पहले की तरह ही इस बार फिर से भूटान के साथ जमीन की अदला-बदली करना चाहता है और इसलिए उसे “package solution” का लालच दे रहा है। हालांकि, Bhutan ने वाइल्ड लाइफ सेंचुरी पर चीन के इस दावे को खारिज कर दिया है।
दरअसल, चीन वर्ष 1990 में भूटान के लिए एक पैकेज डील लेकर आया था जिसके तहत वह Bhutan को डोकलाम के छोटे हिस्से के बदले भूटान का ही एक बड़ा परंतु विवादित क्षेत्र देने को तैयार था। जब भूटान नहीं माना तो चीन ने दोबारा वर्ष 1996 में उसी डील में कुछ नए प्रस्ताव जोड़ कर डोकलाम को अपने कब्जे में करने की कोशिश की। उस दौरान 11 वें दौर की वार्ता के बाद, Bhutan के चौथे राजा Jigme Singye Wangchuck (वर्तमान राजा के पिता) ने भूटानी नेशनल असेंबली को सूचित किया था कि चीन उत्तरी घाटियों के 495 वर्गकिमी इलाके को पश्चिम में 269 वर्गकिमी की जमीन से बदलना चाहता है।
इससे पूरे डील में भूटान को ना सिर्फ एक बड़े क्षेत्र पर अपना अधिकार मिल जाता, बल्कि वर्षों से चीन के साथ चला आ रहा सीमा विवाद भी खत्म हो जाता। परंतु इस डील के बाद चीन कि PLA को डोकलाम के जरीय भारत सीमा पर एक रणनीतिक बढ़त मिल जाती और सिलीगुड़ी कॉरिडॉर में chicken neck पर आसानी से हमला करने की स्थिति में आ जाता। भूटान ने भारत की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर से इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
अब एक बार फिर से चीन ने वही चाल चलने की कोशिश की है और भूटान के सामने पैकेज डील का प्रस्ताव रखा है। हालांकि, अभी तक इस पैकेज डील के शर्तों का खुलासा नहीं हुआ है परंतु 1996 के डील में ही थोड़े बदलाव के साथ आने की उम्मीद है।
चीन और भूटान के बीच चल रहे सीमा विवाद को लेकर वर्ष 1984 से लेकर 2016 के बीच में अब तक 24 दौर की बातचीत हुई है। इस दौरान चीन ने आज तक त्राशिगैंग दोंगशाक ज़िला जिसमें सकतेंग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है या पूर्वी हिस्से को लेकर कोई मुद्दा नहीं उठा है।
यह विवाद भूटान के उत्तरी हिस्से पासमलुंग और जाकारलुंग घाटी और पश्चिम में डोकलाम समेत कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित था। परंतु इस बार चीन ने अपने पाँव पसारते हुए पूर्वी क्षेत्र पर अपना दावा ठोक दिया है जो भारत के अरुणाचल प्रदेश से सटे सीमा पर स्थित है। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि चीन सिर्फ भूटान पर ही दबाव नहीं बनाना चाहता, बल्कि भारत पर भी दबाव बनाना चाहता है। बता दें कि 29 जून को Global Environment Facility Council की 58वीं मीटिंग में चीन ने पहली बार भूटान के सकतेंग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी क्षेत्र पर दावा ठोका था। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था, चीन और Bhutan के बीच सीमा को कभी भी निर्धारित नहीं किया गया। यही नहीं चीन ने भारत की ओर इशारा करते हुए कहा था कि किसी तीसरे पक्ष को चीन-भूटान सीमा विवाद में उंगली नहीं उठानी चाहिए।
पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने समाचार पत्र ‘द हिंदू’ से बातचीत में कहा, “जहां तक मुझे पता है कि कई साल पहले भूटान–चीन के बीच हुई सीमा वार्ता में चीन ने पैकेज का प्रस्ताव दिया था। इतने सालों में ये पहली बार है जब चीन ने अपने पुराने प्रस्ताव को फिर से दोहराया है। Bhutan ने उस वक्त इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था।“ सरन ने आगे कहा, “चीन का मकसद है कि इस समझौते पर Bhutan जल्द से जल्द हामी भर दे। चीन भूटान को दिखा रहा है कि अगर वह डील पर सहमति नहीं देता तो वह उसके क्षेत्रों पर इसी तरह अपने दावे का विस्तार करता जाएगा।”
ऐसे में अगर Bhutan चीन के इस प्रस्तावित पैकेज डील को मान लेता है तो यह भारत के लिए खतरे की घंटी होगी। अगर यह डील 1996 वाले डील के अनुसार हुई तो उस स्थिति में डोकलाम चीन के पास चला जाएगा जिससे भारत का बेहद ही संवेदनशील इलाका “चिक़ेन नेक” चीन की पहुंच में आ जाएगा और भारत को पाकिस्तान, नेपाल और चीन के बाद एक और क्षेत्र में युद्ध की स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
हालांकि, अभी तक भूटान के विदेश मंत्रालय से इस मामले पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन जब चीन ने ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी काउंसिल के दौरान भूटान के सकतेंग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी क्षेत्र को अपना बताया था तब Bhutan ने पुरजोर विरोध किया था। भूटान शुरू से ही भारत के समर्थन में रहा है और यह उन देशों में शामिल है जो चीन के BRI का हिस्सा नहीं है। चीन गलवान घाटी में तनाव बढ़ाने के बाद अब सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और भूटान के क्षेत्रों में दबाव बनाना चाहता है। इस बार भी भूटान से यही उम्मीद है कि वह भारत के साथ खड़ा रहे और चीन के विस्तारवादी कदम को मिल कर रोके।