चीन का सरकारी बैंक भारत पर आर्थिक कब्जा करना चाहता था, कोरोना ने उसके प्लान की धज्जियां उड़ा दी

दिल के अरमान कोरोना ने तोड़ दिए!

निवेश

कोरोना के बाद बेशक भारत चीन के नापाक मंसूबों को लेकर जागरूक हो गया हो, लेकिन चीन पिछले कई सालों से लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना कब्जा जमाने की रणनीति पर काम कर रहा था। इस वर्ष कोरोना के बाद जब चीन के सरकारी बैंक “Peoples Banks of China” यानि PBC ने भारत के HDFC बैंक में 1.01% तक शेयर खरीद लिए, तब जाकर भारतीय नीतिकारों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ। अगर भारत चीनी सरकारी बैंक के रास्ते में कोई बाधा नहीं खड़ा करता, तो वह आने वाले 10 सालों के अंदर सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भारत की कई कंपनियों में अपने निवेश को बढ़ा लेता और भारत के आर्थिक सेक्टर को हाईजैक करने में सफल हो जाता।

दरअसल, अब Times of India की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन का सरकारी Peoples Bank पिछले कुछ सालों से लगातार भारत की कुछ कंपनियों में निवेश को बढ़ा रहा था। उदाहरण के लिए इस बैंक ने Piramel Enterprise में 137 करोड़ के शेयर खरीद लिए। इसी प्रकार PBC ने Ambuja Cement में 122 करोड़ के शेयर खरीद लिए। 2 साल पहले ही PBC को RBI द्वारा यहाँ लेन-देन की अनुमति मिली थी। उसके बाद से ही PBC लगातार भारतीय कंपनियों को निशाना बना रहा था। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए जानबूझकर कुछ खास कंपनियों में निवेश कर रहा था।

कोरोना के बाद से चीन के सरकारी बैंक ने अपने इस निवेश को बढ़ा दिया क्योंकि दुनियाभर के स्टॉक मार्केट्स में बड़ी भयंकर गिरावट देखने को मिली थी और शेयर बेहद कम कीमत पर उपलब्ध हो रहे थे। इसी कड़ी में अप्रैल महीने में चीन के सरकारी Peoples Bank of China ने भारत के HDFC बैंक के भी 1 प्रतिशत से ज़्यादा शेयर्स खरीद लिए। PBC ने HDFC के एक करोड़ 74 लाख 92 हज़ार शेयर्स खरीदे थे। चीन ने ऐसा कदम तब उठाया था जब मार्च महीने में ही HDFC के शेयर्स में 25 प्रतिशत की कमी देखने को मिली थी। इसके बाद सरकार अलर्ट हुई और तेजी से अपने FDI नियमों में बदलाव किया। इतना ही नहीं, इसके बाद भारत के Securities exchange board of India यानि SEBI ने भी ना सिर्फ भारत के शेयर बाज़ार में सभी चीनी निवेश का ब्यौरा मांगा, बल्कि भविष्य में चीन द्वारा किए जाने वाले सभी लेनदेन की गंभीरता से जांच करने की बात भी कही।

चीन सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि यूरोप के देशों में भी ऐसे मंसूबों को सफल करने में लगा था। कोरोना के बाद चीन ने यूरोप के कई देशों की कमजोर कंपनियों में बड़े पैमाने पर निवेश करने की कोशिश की थी। बाद में फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों ने रातों-रात अपने निवेश के नियमों में बदलाव करके चीनी आर्थिक आक्रमण को रोका था।

कोरोना से पहले जिस प्रकार चीन शांत और गुपचुप तरीके से भारत की अहम कंपनियों में अपने निवेश को बढ़ा रहा था, उससे आज के एक दशक के बाद भारत की कई कंपनियाँ चीन की मुट्ठी में हो चुकी होती। कोरोना ने चीन के इस प्लान पर पानी फेर दिया और उसके पूरे प्लान का भंडाफोड़ हो गया। अब भारत और चीन के बीच बढ़ते विवाद के दौरान आसानी से भारत चीन को boycott करने का संकल्प ले सकता है। आज से 10 सालों के बाद ऐसा करना मुश्किल हो जाता। भारत ने समय रहते चीन के इस एजेंडे को रोक कर अपनी संप्रभुता की रक्षा की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है।

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