अभी हाल ही में कांग्रेस को एक बार फिर जोरदार झटका लगा है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी के विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार द्वारा दर्ज कराई गई दो एफ़आईआर को निलंबित करते हुए कहा की उनके विरुद्ध कोई केस नहीं बनता, जिसके कारण अब अर्नब गोस्वामी के विरुद्ध जितने भी मुकदमे दर्ज हुए हैं, वो सभी तत्काल प्रभाव से निरस्त होंगे। इसके साथ ही कांग्रेस ने अर्नब को अब वो दर्जा दे दिया है, जिसका उपयोग वे निस्संदेह कांग्रेस की धज्जियां उड़ाने में अवश्य करेंगे।
बता दें कि पालघर में दो साधुओं की जघन्य हत्या के बाद अर्नब गोस्वामी ने अपने चैनल रिपब्लिक पर हुए एक डिबेट शो में सोनिया गांधी पर इन दोनों साधुओं की हत्या पर मौन रहने का आरोप लगाया था। इतना ही नहीं, अर्नब ने सोनिया गांधी को उनके वास्तविक नाम एंटोनिया माइनो से भी संबोधित किया और उनपर भारत को नीचा दिखाने का आरोप भी लगाया।
बस, फिर क्या था, कांग्रेस की आत्मा को ठेस पंहुचा, और राष्ट्र समहारकार की पूरी मशीनरी अर्नब को सबक सिखाने में लग गई। एक के बाद एक अर्नब गोस्वामी के विरुद्ध 12 से ज़्यादा एफ़आईआर दर्ज कराए गये। इतना ही नहीं, अर्नब को मुंबई पुलिस ने समन कर 12 घंटे तक पूछताछ भी की, और अर्नब पर महाराष्ट्र में अशांति फैलाने और सांप्रदायिक हिंसा जैसे आरोप तक लगाए गए। इसके कारण अर्नब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
कांग्रेस का इतिहास रहा है कि वह अपनी गलतियों से कभी कुछ नहीं सीखती। जब कांग्रेस किसी व्यक्ति के पीछे पड़ती है तो अपनी पूरी मशीनरी लगा देती है लेकिन ज्यादातर मामलों में इस पार्टी को मुंह की खानी पड़ती है। उदाहरण के लिए पीएम मोदी को ही देख लीजिये, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उनपर 2002 के गुजरात दंगों को बढ़ावा देने का आरोप लगा था। नरेंद्र मोदी दोषी सिद्ध नहीं हुए थे, लेकिन यूपीए के पूरे शासनकाल में सरकारी मशीनरी से लेकर बुद्धिजीवियों की टोली तक नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने और उन्हें अपराधी सिद्ध करने में जुट गई थी। लेकिन यहां भी इसका ठीक उल्टा हुआ। नरेंद्र मोदी न केवल गुजरात में लोकप्रिय बने रहे, बल्कि अपने सुशासन के दम पर 2014 में भारत के प्रधानमंत्री भी बने।
परंतु कांग्रेस की यह कैसी मानसिकता है, जिसके कारण उसे अक्सर जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ता है। इसके बारे में प्रकाश डालते हुये अर्नब का केस लड़ रहे प्रसिद्ध अधिवक्ता हरीश साल्वे ने बताया, “हमें एक गणराज्य के तौर पर परिपक्व बनना होगा। यह जिस तरह की स्टेट मशीनरी है, वो उन लोगों के पीछे पड़ती है जो शासन को अप्रिय है, वो सही नहीं है, और हमें अभी बहुत सुधार करना है इस क्षेत्र में। ये अक्सर ही राज्य सरकारों में ज़्यादा देखा जाता है, और ये किसी एक सरकार की गलती नहीं है। मेरे मित्र राजीव धवन ने इसके लिए बड़ा सटीक नाम बताया है। उन्होंने इसे बदले की राजनीति कहते हैं, और इस कुत्सित रीति पर लगाम लगाना बहुत आवश्यक है”।
बदले की राजनीति में अंधी कांग्रेस पार्टी ने अपनी इन्हीं हरकतों से आज अर्नब गोस्वामी का स्तर और बढ़ा दिया है, उनके आत्मविश्वास को और मजबूत कर दिया है, जिसे अब रोक पाना असंभव होगा। अर्नब इससे पहले भी कांग्रेस के विरोध में यदा कदा बोलते आए हैं, पर वे पहले इतने मुखर नहीं थे। लेकिन महाराष्ट्र सरकार जिस तरह कांग्रेस के इशारों पर उनके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी, उसने अर्नब को अब पूर्ण रूप से कांग्रेस विरोधी बना दिया है।