राज्यपाल को अशोक गहलोत की ‘धमकी’ से स्पष्ट है नंबर के खेल में हार रहे गहलोत

कुर्सी खोने का डर अब इनके हाव-भाव में भी दिखने लगा है

राजस्थान में चल रहे राजनीतिक संकट ने कांग्रेस को एक ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा किया है जहां से कांग्रेस की एक गलती भारी पड़ सकती है। इसी क्रम में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत राज्यपाल से मिलने पहुंचे और यहां उन्होंने चौंकाने वाली टिप्पणी की। पायलट कैंप के बगावत के कारण अल्पमत की खबरों के बीच अशोक गहलोत ने राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात की और अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। इस मुलाक़ात के दौरान राजस्थन के सीएम ने कहा, हम राज्यपाल से अनुरोध कर रहे हैं कि वह दबाव में आए और विधानसभा सत्र बुलाए।उन्होंने आगे कहा, वर्ना फिर हो सकता है कि पूरे प्रदेश की जनता अगर राजभवन को घेरने के लिए गयी तो यह हमारी ज़िम्मेदारी नहीं होगी।

यह पहली बार ही होगा जब किसी मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को इस तरह से खुलेआम धमकी देते हुए उनके आधिकारिक निवास के घेराव की बात की हो।

अशोक गहलोत की चौंकाने वाली यह नाराजगी वास्तव में उनके सरकार की अनिश्चितताओं को लेकर है और उन्हें अपनी सरकार गिरने का डर लग रहा है। बता दें कि राजस्थान के राजनीतिक संकट से पहले राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में गहलोत सरकार को 124 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। इसमें 101 कांग्रेस विधायक, 6 बसपा MLAs, 2 BTP MLAs, 2 CPM MLAs , 12 निर्दलीय विधायकों और 1 RLD MLA। लेकिन अब चीजें काफी बदल गई हैं।

सचिन पायलट और उनके साथ 19 अन्य विधायकों के विद्रोह ने कांग्रेस की संख्या को सीधे 105 पर ला दिया है। दूसरी ओर, भाजपा के पास पहले से 76 विधायक हैं, जिसमें से 72 भाजपा के, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के और 1 निर्दलीय विधायक है। अब पायलट और उनके साथियों को भाजपा के साथ मिला दें तो यह संख्या 95 पर हो जाती है जो बहुमत से अधिक दूर नहीं है।

इसी दाँव-पेंच के कारण आई कांग्रेस सरकार के भीतर की दरार ने गहलोत की चिंता बढ़ा दी है। चूरू के सुजानगढ़ से कांग्रेस के एक विधायक मास्टर भंवर लाल गंभीर रूप से बीमार हैं और उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वह फ्लोर टेस्ट में भाग नहीं ले सकते और न ही मतदान कर सकते हैं।

इसके अलावा विधान सभा अध्यक्ष भी वोटिंग में भाग नहीं ले सकता। इस प्रकार कांग्रेस की ताकत घटकर 103 हो जाती है।

कांग्रेस सरकार और गहलोत विरोधी खेमे के बीच का यह 103 Vs 95 का खेल कभी भी एक रोमांचक मोड़ ले सकता है। यानि दूसरे शब्दों में कहें तो बाजी किसी के हाथ भी जा सकती है।

हाल ही में, BTP ने एक बयान जारी किया कि वह भाजपा और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बनाए रखना चाहती है। यही नहीं CPM के एक विधायक बलवंत पूनिया की भी कांग्रेस के लिए निष्ठा संदिग्ध ही है।

22 जून को उनकी पार्टी की राजस्थान इकाई ने राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी लाइन से अलग जाने के लिए पूनिया को निलंबित कर दिया था। सीपीएम ने भी अपने राज्य सचिव और पूर्व विधायकों के माध्यम से एक बयान जारी किया है कि वर्तमान में वो न तो कांग्रेस के साथ है, न ही भाजपा के साथ।

यदि 2 BTP विधायक और एक CPM विधायक विश्वास मत के दौरान पीछे हटने का फैसला करते हैं, तो कांग्रेस के पास कुल 100 विधायकों का ही समर्थन रह जाएगा, जबकि बहुमत का आंकड़ा 101 है। इसके अलावा, पायलट कैंप का दावा है कि 12 स्वतंत्र विधायकों में से दो का समर्थन उन्हें प्राप्त हैं। यदि यह दावा सही है, तो यह चुनावी दांव पेंच और भी जटिल हो सकता है। ऐसे में अशोक गहलोत का खेमा 98 पर सिमट जाएगा, जबकि गहलोत विरोधी खेमा के पास 97 विधायकों का समर्थन आ जाएगा।

राजस्थान जैसे राज्य में 98 Vs 97 का परिदृश्य ऐसा है कि बाजी किसी के पाले में भी जा सकती और भाजपा ऐसी स्थिति का फायदा उठाने का पूरा प्रयास करेगी।

इस स्थिति से बचने के लिए अशोक गहलोत के लिए एकमात्र रास्ता है कि वो सचिन पायलट और 18 अन्य बागी विधायकों को किसी तरह अयोग्य घोषित करवा दें। पायलट समेत 19 विधायकों की अयोग्यता से विधानसभा की तत्कालीन संख्या 181 तक आ जाएगी और ऐसे परिदृश्य में अशोक गहलोत स्पष्ट बहुमत साबित कर सकते हैं। राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सीपी जोशी ने बागी विधायकों को अयोग्य नोटिस जारी किया, लेकिन सचिन पायलट ने उस फैसले को राजस्थान उच्च न्यायालय में चुनौती दी और हाईकोर्ट ने स्पीकर से सोमवार तक बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई स्थगित करने को कहा है।

भारत का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान इस तरह के राजनीतिक संकट में फंसा है और यहां से कांग्रेस की हार ही नजर आ रही है जिससे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पारा सातवें आसमान पर है। यही कारण है कि वो खुलेआम राजभवन के घेराव की धमकी दे रहे हैं।

Exit mobile version