ग्रेटा थनबर्ग से जुड़ा पर्यावरण संगठन भारत सरकार के खिलाफ एजेंडा फैला रहा था, अब Website हुई ब्लॉक

ग्रेटा को सरकार से पड़ी ग्रेट लताड़!

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PC: HuffPost India

भारत में अक्सर हमारी सरकार से यह शिकायत रहती है कि वह देश में infrastructure के विकास और उद्योगों को प्रेरित करने की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है। हालांकि, हमारे ही देश में किस प्रकार कुछ छद्म पर्यावरणविद भारत सरकार के हर विकासवादी कदम में रोड़ा अटकाने की कोशिश में जुटे रहते हैं, उसकी बात कोई नहीं करता। दरअसल, केंद्र सरकार ने हाल ही में Environment Impact Assessment (EIA) के ड्राफ्ट की नोटिफ़िकेशन निकाली थी, जिसके बाद से ही देश में तथाकथित पर्यावरणविदों द्वारा जमकर एजेंडा फैलाया जा रहा है। अब भारत सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए इस ड्राफ्ट के खिलाफ एजेंडा फैला रही तीन वेबसाइट्स को ब्लॉक कर दिया है। ये तीन वेबसाइट्स Let India Breathe (LIB), FridaysForFuture (FFF) and There Is No Earth B जैसे समूहों से संबंध रखती थीं, जो पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को लेकर समाज में “जागरुकता” फैलाने का काम करते हैं।

बता दें की जिन तीन ग्रुप्स की Websites ब्लॉक की गयी है, उनमें से Fridays for Future समूह तो स्वीडन की 17 वर्षीय “पर्यावरण शुभचिंतक” Greta Thunberg से जुड़ा है, वहीं Let India Breathe और There is No Earth B जैसे समूहों में अधिकतर छात्र शामिल हैं। ये तीनों समूह पिछले कुछ समय से भारत सरकार के EIA ड्राफ्ट का अंधा विरोध कर रहे थे। बता दें कि Environment Act, 1986 के तहत किसी भी औद्योगिक प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलने से पहले Environment Impact Assessment की प्रक्रिया के तहत पर्यावरण की दृष्टि से उस प्रोजेक्ट की जांच करना आवश्यक है। अब सरकार ने उस प्रक्रिया में बदलाव करने के लिए draft notification जारी की है, जिसका ये समूह जमकर विरोध कर रहे हैं। सरकार को इस बदलाव के बाद अपने infrastructure projects को विकसित करने में आसानी हो जाएगी, जो ये संगठन नहीं चाहते। इसीलिए भारत सरकार ने कोई बड़ा मुद्दा बनने से पहले ही इन वेबसाइट्स को बैन कर दिया है, जिसे आप देश के विकास की दिशा में ऐसे छद्म पर्यावरणविदों पर pre-emptive strike भी कह सकते हैं।

गौरतलब है कि देश के कुछ सामाजिक संगठन और NGO विदेशों से पैसा लेकर पर्यावरण रक्षा और मजदूरों के अधिकारों की आड़ में भारत में विकास कार्यों में रोड़ा अटकाते हैं। वर्ष 2014 में सामने आई intelligence bureau की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में अमनेस्टी, ग्रीनपीस और action aid जैसे गैर-सरकारी संगठन विदेशी सरकारों के पैसों के दम पर भारत में कोयले और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के खिलाफ अभियान चला रहे थे। शायद यही कारण था कि वर्ष 2015 में भारत ने ग्रीसपीस को अपने सारा सामान समेटकर भारत से दफा हो जाने को कहा था।

पिछले कुछ सालों में हम कई ऐसे उदाहरणों को देख चुके हैं जब इन विदेशी संगठनों ने भारत में विकास कार्यों और उद्योगों के खिलाफ अभियान छेड़ा हो। बता दें कि पिछले वर्ष महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद तमिलनाडु सरकार ने पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से वेदांता ग्रुप को तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट प्लांट को सील करने का आदेश दिया था। आदेश में पर्यावरण और पानी को लेकर बनी राज्य की नीतियों का हवाला देते हुए कहा गया था कि जनहित को देखते हुए इसे हमेशा के लिए बंद किया जाना चाहिए। कुछ एजेंडावादी पर्यावरणविदों ने तब इस प्लांट के खिलाफ जमकर हिंसक प्रदर्शन करवाए थे जिनमें दर्जनों लोगों की जान तक चली गयी थी। माना जाता है कि इन प्रदर्शनों को चीनी कंपनियों और विदेशी एनजीओ द्वारा फंड किया जा रहा था।

सिर्फ इतना ही नहीं, महाराष्ट्र के रत्नागिरि में 3 लाख करोड़ रुपयों का नानर रिफाईनरी प्रोजेक्ट से लेकर महाराष्ट्र में ही आरे मेट्रो रेल प्रोजेक्ट तक, हर जगह इन नकली पर्यावरणविदों की वजह से ही प्रोजेक्ट्स में या तो देरी देखने को मिली है, या फिर इन्हें हमेशा के लिए रद्द करना पड़ा है। जब से राज्य में उद्धव सरकार आई है, उसके बाद से महाराष्ट्र का बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट और हाइपरलूप प्रोजेक्ट भी खतरे में पड़ गया है, जो कि राज्य के विकास में अपनी अहम भूमिका निभा सकते थे। इसी प्रकार ये विदेशी संगठन भारत के पूर्वोतर के राज्यों में पर्यावरण के नाम पर खदानों और कोयला प्लांट्स के खिलाफ प्रदर्शन कर भारत की विकास की गाड़ी को धीमा करने के प्रयत्न कर चुके हैं।

अब जब सरकार देश में विकास की गति को तेज करने के लिए देश के infrastructure को विकसित करने के प्रयास कर रही है, तो इन नकली पर्यावरणविदों के पेट में दर्द होना शुरू हो गया है। सरकार ने इन समूहों और NGO के एजेंडे को अभी से ब्लॉक करके बड़ा कदम उठाया है। उम्मीद है कि सरकार के इस कदम से अन्य छद्म पर्यावरणविदों को भी एक बड़ा संदेश जाएगा।

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