चीन की फितरत हमेशा से ही दुनिया के साथ विश्वासघात करने की रही है। अब ये बात सामने आई है कि वुहान की एक कंपनी किंगोल्ड ज्वेलरी इंक ने कुछ ऐसा किया है, जो इतिहास के सबसे बड़े स्वर्ण घोटालों में से एक माना जा रहा है। यही नहीं, प्रारम्भिक जांच में ये भी सामने आया है कि इस पूरे प्रकरण के पीछे पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के एक पूर्व अफसर का भी हाथ रहा है, जिससे एक बार फिर सिद्ध होता है कि किस प्रकार से चीन की सत्ता विश्वासघात से आगे कुछ नहीं सोचती।
बता दें कि किंगोल्ड चीन की सबसे बड़ी निजी गोल्ड प्रोसेसिंग एवं ज्वेलरी कंपनी है। इसने 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर के मूल्य का कर्ज़ा लिया था, जिसके लिए उसने सेक्युरिटी के तौर पर 83 टन गोल्ड रखा था। लेकिन जब कंपनी ने कर्ज़ा चुकाने में आनाकानी दिखाई, तो पता चला कि कंपनी ने सोना नहीं, बल्कि तांबा दिया था।
किसने सोचा होगा कि चीन इस तरह का भी विश्वासघात कर सकता है। जिस तांबे को इन्होंने स्वर्ण के तौर पर बेचा था, वो चीन के कुल स्वर्ण भंडार का 4.2 प्रतिशत और चीन के वार्षिक स्वर्ण उत्पादन का 22 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, प्रारम्भिक जांच में ये सामने आया है कि इस घोटाले के पीछे प्रमुख हाथ जिआ झीहोंग का था, जो न केवल पीएलए का एक पूर्व सैनिक था, अपितु अपने सैन्य बैकग्राउंड का दुरुपयोग कर भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त था। फिलहाल के लिए जनाब ने उक्त आरोपों का खंडन किया है।
परंतु ऑस्ट्रेलियन वेबसाइट स्माल कैप्स के अनुसार, झीहोंग काफी प्रभावशाली पूर्व सैनिक हैं, जिनसे कई लोग डरते हैं। पीएलए के पूर्व सैनिकों में इनका काफी प्रभाव रहा है। वुहान और ग्वांग्झू में इन्होंने अपनी सेवाएँ दी थी, और चीन के पीएलए के लिए इन्होंने स्वर्ण खदान भी संभाले थे। किंगोल्ड वुहान में एक स्वर्ण फ़ैक्टरी के तौर पर शुरू हुई थी, जो चीन के पीपुल्स बैंक से जुड़ी थी।
पर धीरे धीरे किंगोल्ड एक निजी कंपनी बन गई थी। यह और बात है कि चीन में प्राइवेट कंपनी भी चीन के कम्युनिस्ट पार्टी की दास होती है। कहा जा रहा है कि जिआ के सीसीपी और पीएलए से संबंध होने का अर्थ था कि वे कभी भी कुछ भी कर सकते थे, और कोई चूँ भी बोल नहीं सकता था। इस किंगोल्ड घोटाले से अब चीन के स्वर्ण भंडार पर भी एक गंभीर प्रश्न चिन्ह लग चुका है, कि क्या वे वास्तव में उतने हैं, जितना कि चीन दावा ठोंकती है?
किंगोल्ड ने चीन की वैश्विक विश्वसनीयता के ताबूत में अंतिम कील ठोंक दी है। अलीबाबा और Huawei जैसी कंपनियाँ पहले ही सीसीपी के प्रति अपनी वफादारी जता चुके हैं, और जो भी वे विश्व से लूटते हैं, वह कम्युनिस्ट पार्टी की झोली में जाता है। अलीबाबा के सीईओ जैक मा स्वयं सीसीपी के सदस्य है, और वे अपनी पूरी संपत्ति पार्टी को सौंपने को तैयार है।
अब जिस तरह से पीएलए द्वारा इस प्रकार के घोटाले में हाथ होने की बात सामने आई है, उससे स्थिति और अधिक पेचीदा हो चुकी है। पीएलए स्वयं एक आर्मी नहीं है, क्योंकि उसके लिए चीन की सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों की सुरक्षा। अब परिणाम सबके सामने हैं।
चीन ने ऐसे प्राइवेट यूनिट तैयार किए हुए हैं, जिनके असली मालिक पीएलए के पूर्व सैनिक होते हैं, जिससे किसी भी प्रकार की जवाबदेही से बच सकें। किंगोल्ड इसी भ्रष्ट प्रणाली की देन है, और जिस तरह से इसने मानव इतिहास के सबसे बड़े स्वर्ण घोटाले को अंजाम दिया है, उसके लिए अब वैश्विक समुदाय को आगे आकर कड़े कदम उठाने ही पड़ेंगे और इन धूर्त चीनियों को धक्के मारकर वैश्विक वित्तीय सिस्टम से बाहर निकालना पड़ेगा।