उगते हुए सूर्य का देश कहा जाने वाला जापान एक समय में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, लेकिन फिर मंदी और चीन के उदय से जापान इस रेस में पीछे छूट गया था। अब फिर से यह द्वीपीय देश आर्थिक महाशक्ति के रूप में पुनः स्थापित होने की दिशा में बड़े पैमाने पर कदम उठाना शुरू कर चुका है। कई वर्षों की तक दूसरे देशों की छत्रछाया में विकास करने के बाद अब फिर से जापान में राष्ट्रवादी भावना का पुनरुत्थान हो रहा है और पिछले तीन दशकों में जो कुछ खो चुका है उसे पुनः प्राप्त करने की चाह बढ़ रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना के बाद दुनिया एक नए Japan को देखेगी, जब जापान दुनिया के लिए खुलेगा जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को एक बूस्ट मिलेगा।
दरअसल, जापान पारंपरिक रूप से एक अंतर्मुखी देश है जहां अप्रवासियों का स्वागत नहीं किया जाता, लेकिन अब जापान कुछ बड़े नीतिगत बदलावों की ओर बढ़ रहा है। 1990 के दशक तक, Japan दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था और एक समय में अमेरिका से भी आगे निकलने की राह पकड़ चुका था। लेकिन फिर मंदी का दौर आया और जापान को अपनी जगह चीन के हाथों गंवानी पड़ी। सिर्फ मंदी ही नहीं, बल्कि जापान का उम्रदराज कार्यबल ने भी उसे पीछे किया। अब जापान इस समस्या को हल करने के लिए और आप्रवासियों को लाना चाहता है जिससे उसके कार्यबल को एक नई ऊर्जा मिले।
सिर्फ वित्तीय संकट जापान के लिए एकमात्र मुद्दा नहीं है, बल्कि राजनीतिक अस्थिरता ने भी Japan की गिरती अर्थव्यवस्था में योगदान दिया था। 1989 और 2012 के बीच जापान पर 17 अलग-अलग प्रधानमंत्रियों ने शासन किया था। अब एक बार फिर से Japan को शिंजो आबे के रूप में एक बेहतरीन प्रधानमंत्री मिला है जिन्होंने राजनीतिक स्थिरता कायम की है, और चीन को चुनौती देने के लिए जापान में राष्ट्रवादी महत्वाकांक्षा का संचार किया है।
इसमें कोई शक नहीं है कि शिंजो आबे जापानी संविधान के शांतिवादी प्रावधानों को भी कम करने का इरादा रखते हैं और संशोधन के पक्ष में हैं। हालांकि, सिर्फ शांतिवादी प्रावधानों को हटा कर ही चीन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं किया जा सकता है। इसीलिए चीन को टक्कर देने के लिए Japan को अपनी खोई हुई आर्थिक प्रगति को पुनः प्राप्त करना होगा, जिसके लिए उसे श्रम की कमी के मुद्दों का समाधान ढूँढना होगा।
जापान को अब यह महसूस हो रहा है कि चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए,उसे विश्व के लिए अपने द्वार खोलने ही होंगे। Japan पृथ्वी का सबसे उम्रदराज समाज है जहां की औसत आयु 46 वर्ष है तथा लगभग एक तिहाई जनसंख्या 60 वर्ष से अधिक आयु की है।
2060 तक, जापान की जनसंख्या वर्तमान 126 मिलियन से 87 मिलियन तक घट जाएगी, जिसका अर्थ है Japan में बूढ़े लोगों की संख्या और बढ़ेगी और कार्यबल की संख्या कम ही रहेगी।
इस समस्या से निपटने के लिए शिंजों अबे ने पिछले साल पहला बड़ा कदम उठाया था। अप्रैल 2019 में, जपान ने Immigration Control and Refugee Recognition Act में संशोधन करते हुए low-skilled विदेशी श्रमिकों के लिए अपने दरवाजे खोले।
अब जापानी समाज के भीतर भी आप्रवासियों की भूमिका को अधिक से अधिक स्वीकृति मिल रही है। आज, Japan में 3 मिलियन प्रवासी हैं और यह संख्या 1990 से तीन गुना हो चुकी है। इसके अलावा, अप्रैल 2019 में उठाए गए कदम से 2019 से शुरू होने वाली पांच साल की अवधि में 3,45,000 से अधिक आप्रवासी श्रमिकों के आने की संभावना है।
अप्रवासी श्रमिकों को लाने के लिए शिंजो आबे के कदम को जापान के भीतर समर्थन मिला। Japan के लोग समझते हैं कि यह एक immigration policy है जो जनसांख्यिकी और घटते कार्यबल के मुद्दों को संबोधित करेगी।
जापान स्वयं एक अंतर्मुखी समाज है, लेकिन वहाँ के लोग आप्रवासी विरोधी नहीं है। टोक्यो में Keio University के एक समाजशास्त्री और इतिहासकार Eiji Oguma, का कहना है कि “यह समझना महत्वपूर्ण है कि आबे की सरकार ने जापानी समाज को बदलने के लिए नहीं, बल्कि जापानी समाज को बनाए रखने के लिए इन सुधारों की शुरुआत की।”
जापानी व्यवसाय भी इस तरह के सुधारों पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी मुश्किल समय का सामना करना पड़ता हैं जब नौकरियों की संख्या नौकरी चाहने वालों से अधिक होती है।
1990 के दशक से जारी लंबे समय से आर्थिक संकट ने शिंजो आबे को immigration में सुधारों के लिए मजबूर किया। अब फिर से COVID-19 के कारण जापानी अर्थव्यवस्था मंदी में गिर चुकी है। ऐसी स्थिति में जापान के पास एक ही विकल्प है और वह है कठोर और अभूतपूर्व सुधारों को लाया जाए जो जापानी अर्थव्यवस्था को उठा सके।
आबे कि सरकार जापानी निर्माताओं को चीन से उत्पादन को Japan में स्थानांतरित करने में मदद करने के लिए यूएस $ 2.2 बिलियन की योजना से इसकी शुरुआत भी कर चुकी है। इससे जापान ने वास्तव में 87 कंपनियों को चीन छोड़ने में मदद की है।
लंबे समय से जापान चीन पर अपनी निर्भरता में कमी लाना चाहता था, और अमेरिका के बाद सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त करना चाहता था। अब यह करने का अवसर है।
जापान पहले से ही श्रम की कमी से जूझ रहा है। Japan के अंदर अधिक जापानी कंपनियों का मतलब होगा अधिक विनिर्माण सुविधाएं और जापान के भीतर अधिक नौकरियां।
जापान को ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो ऐसी नौकरियां कर सके लेकिन वहाँ पर्याप्त कार्यबल नहीं है। इन अतिरिक्त नौकरियों को लेने के लिए भारत और हांगकांग सहित अन्य एशियाई देशों के प्रवासियों की जरूरत है। इन प्रवासियों के बल पर ही जापान में कंपनियाँ समृद्ध हो पाएँगी जिससे जापान की अर्थव्यवस्था एक बार फिर से चरम पर पहुंच जाएगी।
कोरोना महामारी के बाद जापान इसी समस्या से निपटने के लिए दुनिया को गले लगाएगा, तथा यह दुनिया भर से प्रतिभाओं और श्रमिकों को अपने देश मेंआमंत्रित करेगा। इस कदम से Japan के एक विशाल आर्थिक कार्यबल के रूप में पुनर्जन्म होगा।