UK के बाद इटली EU को लात मारने की तैयारी में, Brexit के बाद अब EU को लगेगा ITALEXIT का झटका

EU का टूटना तय है!

इटली

यूरोपीय यूनियन एक बेहद विफल संगठन साबित हुआ है। ना तो यह संगठन चीनी आक्रामकता का जवाब दे पाया, ना ही लीबिया में तुर्की की आक्रामकता का! इतना ही नहीं, कोरोना के बाद कमजोर पड़ी अर्थव्यवस्थाओं की बेहतरी के लिए भी यह संगठन कुछ नहीं कर पाया। EU की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इटली कोरोना के बाद वित्तीय सहायता के लिए Corona bonds जारी करने का अनुरोध करती रही, लेकिन EU ने इटली की एक न सुनी! जर्मनी के नेतृत्व वाला EU अब ढहने की दिशा में आगे बढ़ता जा रहा है।

इसका नतीजा यह है कि इटली के लोगों में अब EU के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इटली में लोग अब EU छोड़ने की बात कर रहे हैं। यहाँ तक कि इटली के एक सांसद Gianluigi Paragone तो  अगले महीने Brexit की तर्ज पर ITALEXIT के समर्थन के लिए अपनी अलग राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने की बात कर रहे हैं। इटली के प्रधानमंत्री अपने देश में बढ़ते EU के विरोध को दबाने में असफल साबित हो रहे हैं।

ITALEXIT की मांग कोई नयी बात नहीं है। वर्ष 2017 से ही इटली के लोग लगातार EU को छोड़ने की मांग करते रहे हैं। EU की वामपंथी नीतियों ने इटली के लोगों को परेशान कर दिया है। इटली के लोग इस विपदा के लिए भी EU की निष्क्रियता को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। इसके बाद अब इटली में दक्षिणपंथी राजनीतिकज्ञों का तेजी से उदय हो रहा है।

कोरोना की तबाही में इटली की पहले से ही कमजोर पड़ी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचा है। इटली का कुल कर्ज़ उसकी GDP का 130 प्रतिशत है। IMF के अनुमान के अनुसार इस साल इटली की अर्थव्यवस्था 9 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है। इटली की अर्थव्यवस्था में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले क्षेत्र लोम्बार्डी में कोरोना ने जमकर तबाही मचाई जिसके कारण इटली की इकॉनमी को ये हाल देखने पड़ रहा है। अब तक EU में ITALEXIT की मांगों का स्वागत नहीं किया गया है।

इटली के गुस्से का एक और बड़ा कारण EU द्वारा समय पड़ने पर सहायता प्रदान करने से मना कर देना है। इस वर्ष अप्रैल में कोरोना के बाद ईयू ने मंदी से बचने के लिए कई कदम उठाने की बात कही थी, लेकिन इटली और फ्रांस जैसे देश चाहते थे कि उन्हें ईयू से ज़्यादा समर्थन चाहिए और वे बार-बार अधिक कर्ज़ प्राप्त करने के लिए Corona-bonds जारी करने की बात कर रहे थे। हालांकि, तब जर्मनी और कई EU के देशों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था।

तब Eurozone के 19 नेताओं में से Corona Bonds की मांग कर रहे 9 नेताओं ने अपने पत्र में लिखा था “Corona bonds की मांग करने का मजबूत आधार है, हम सभी एक बाहरी झटके को सह रहे हैं जिसके लिए कोई भी देश जिम्मेदार नहीं है, लेकिन इसका नकारात्मक असर हम सब पर पड़ा है”। लेकिन उत्तरी यूरोप के कई देश इन नेताओं की मांग ना मानने पर अड़े थे। जर्मनी से लेकर फ़िनलैंड तक, सभी देश EU स्तर पर कर्ज़ बढ़ाने का विरोध कर रहे थे। नीदरलैंड्स और ऑस्ट्रीया जैसे देश इसी बात से सहमत थे कि अगर वे कोरोना बॉन्ड जारी करने के लिए राज़ी होते हैं तो EU के गरीब सदस्यों का खर्च उनके देश के taxpayers उठाएंगे। जर्मन चान्सेलर मर्कल ने हाल ही में कहा था “जर्मनी की तरफ से हम साफ कर चुके हैं, और भी कई देश यह कह चुके हैं, सबके लिए Corona bonds जारी करना कोई विकल्प ही नहीं है”।

इससे इटली में EU विरोधी मानसिकता को जोरदार बढ़ावा मिला है। अप्रैल महीने में इटली के PM ने कोरोना वायरस पर EU की प्रतिक्रिया से संबन्धित एक स्टेटमेंट को ब्लॉक करने की भी धमकी दी थी। उन्होंने कहा था “अगर हमारी corona bonds की मांग नहीं मानी जाती है, तो मैं इस बयान पर अपनी सहमति देने के लिए हस्ताक्षर ही नहीं करूंगा”। EU अभी तक Brexit से ही उबर नहीं पाया है और ऐसे में एक और सदस्य देश इटली में EU विरोधी मानसिकता का पनपना इस संघ के लिए अच्छा संदेश नहीं है। मार्च महीने में ऐसी कई videos देखने को मिली थी जिसमें इटली के लोग EU के झंडे को जलाते दिखाई दे रहे थे।

हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक इटली में करीब 42 प्रतिशत लोग EU छोड़ना चाहते हैं, जो कि नवंबर 2018 के आंकड़ों से 16 प्रतिशत ज़्यादा है। कोरोना के बाद EU विरोधी पार्टियां जमकर प्रचार कर रही हैं और EU संगठन का विरोध कर रही हैं।

Brexit के बाद अब विश्व को जल्द ही ITALEXIT देखने को मिल सकता है। EU विफल साबित हुआ है और अब उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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