कोरोना के बाद दुनियाभर के देश चीन से अपने रिश्तों को लेकर पुनर्विचार कर रहे हैं। अधिकतर देश उससे दूर होते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में चीन के पास आज सिर्फ इकलौता महत्वपूर्ण साझेदार देश बचा है और वह है रूस! हालांकि, मॉस्को में चीन को लेकर अपनी चिंताएँ हैं। नतीजा यह है कि अब जिनपिंग को खुद पुतिन के पास फोन मिलाना पड़ा है क्योंकि चीन चीन-रूस सम्बन्धों को लेकर काफी चिंतित है।
8 जुलाई को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के पास चीनी राष्ट्रपति ने फोन मिलाया था। तब जिनपिंग ने अमेरिका का नाम लिए बिना उसपर एकतरफा कार्रवाई करने का आरोप लगाया था। जिनपिंग को डर है कि अगर कहीं रूस के प्रति अमेरिका की नीति में कोई बदलाव आता है, तो चीन-रूस के संबंधों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
फोन पर बातचीत के बाद चीनी विदेश मंत्रालय का बयान आता है “चीन रूस के साथ मिलकर UN और अन्य वैश्विक संगठनों में बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन करता है। हम एकतरफा कार्रवाइयों, धौंस दिखाये जाने का विरोध करते हैं, और साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय नियमों और न्याय की रक्षा हेतु प्रतिबद्ध हैं”।
जिनपिंग को इस बात का अहसास है कि रूस-चीन के रिश्ते बेहद कमजोर बुनियाद पर टिके हैं। अमेरिका भी अब रूस के प्रति अलग नीति अपनाने पर विचार कर रहा है। अमेरिका के विदेश मंत्री यह बात समझते हैं कि चीन के उदय होने के साथ ही रूस के साथ बेहतर विकल्प तलाशे जा सकते हैं।
रूस भी अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को बेहतर करना चाहेगा। रूस अर्थव्यवस्था को अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। अमेरिका के साथ रूस के बेहतर रिश्ते रूस के हित में हैं।
“Pompeo also appears to believe that the rise of China creates an opportunity for a different relationship with Russia. ‘The Russians want a better relationship,’ he says. ‘I’ll probably spend a great deal of time w/Lavrov trying to work together.’ “ https://t.co/yAuej8Q22R
— John Harwood (@JohnJHarwood) January 7, 2020
पोम्पियो पिछले कुछ समय में रूसी विदेश मंत्री Sergei Lavrov के साथ विस्तृत चर्चा एवं बातचीत कर रहे हैं। इसका ट्रम्प प्रशासन को घरेलू विरोध झेलना पड़ रहा है, लेकिन इसके बावजूद ट्रम्प प्रशासन रूस के साथ अपने रिश्तों को लेकर पुनर्विचार करने को लेकर अड़ा हुआ है।
इसी साल जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने जी7 को बढ़ाकर जी11 करने की बात कही थी, तो भी उन्होंने रूस को इसमें शामिल होने के लिए न्यौता भेजा था। हालांकि, तब रूस ने चीन का हवाला देते हुए इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया था।
शी जिनपिंग को Indo-Pacific में पहले ही किनारे कर दिया गया है। Quad में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने मिलकर चीन को उसकी जगह बता दी है। इसके साथ ही अब ASEAN के देश भी चीन की आक्रामकता के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं। ऐसी स्थिति में चीन रूस को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता, फिर चाहे बेशक मॉस्को चीन के साथ अपने मतलब के ही रिश्ते कायम क्यों ना करता हो!
अमेरिका-रूस के रिश्तों में बदलाव चीन के लिए सबसे बुरा सपना साबित होगा। ट्रम्प प्रशासन यह जानता है और अब वह धीरे-धीरे उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। ट्रम्प अपने यहां पुतिन के लिए दरवाजे खोलकर बैठे हुए हैं, फिर चाहे इसके लिए उन्हें कितना ही घरेलू विरोध क्यों ना झेलना पड़े।
भू-राजनीति में रूचि रखने वाले लोग अक्सर रूस-चीन को एक दूसरे का दोस्त समझने की भूल कर बैठते हैं, लेकिन सच तो यह है कि दोनों देशों के बीच सहयोग कम है और मतभेद ज़्यादा। मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप में अपने प्रभाव को लेकर हो या बॉर्डर को लेकर, दोनों देशों में तनाव कोई नई बात नहीं रही है। इसके साथ ही Arctic region में प्रभुत्व को लेकर भी चीन-रूस एक दूसरे के आमने सामने आ सकते हैं। चीन लगातार Arctic मामलों में शामिल होना चाहता है, जो रूस को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं होगा।
सीमा विवाद एक और गंभीर मुद्दा है। हाल ही में चीनी मीडिया ने रूस के शहर व्लादिवोस्टोक शहर पर अपना दावा ठोका था, जिसे भी मॉस्को में पसंद नहीं किया गया होगा। शी जिनपिंग ये बात भली-भांति जानते हैं कि उनकी wolf warrior diplomacy का भयंकर खामियाजा उठाना पड़ सकता है। ऐसे में पुतिन को मिलाई गयी जिनपिंग की फोन कॉल दर्शाती है कि वे अब चीन-रूसी रिश्तों को बचाने के लिए रूस के सामने गिड़गिड़ाने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं।