“टीपू को दफ़ा करो”, कोरोना के चलते कर्नाटका के स्कूली सिलेबस से हो गयी टीपू की विदाई

कर्नाटका सरकार को बहुत-बहुत बधाई!

टीपू

(PC: Scroll.in)

कर्नाटक सरकार ने हाल ही में एक अहम निर्णय में वुहान वायरस की महामारी को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थियों का कोर्स लोड कम करने का प्रयास किया है। इसी दिशा में कर्नाटक सरकार ने कई अहम चैप्टर हटवाए हैं, जिनमें एक प्रमुख चैप्टर जुड़ा हुआ है कक्षा 7 के इतिहास विषय में पढ़ाये जाने वाले दो ऐतिहासिक व्यक्तित्व -टीपू सुल्तान और हैदर अली से!

जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा। कर्नाटक सरकार ने हाल ही में राजकीय बोर्ड के स्कूलों का पाठ्यक्रम कम किया है। इस पाठ्यक्रम को 120 दिनों के वर्किंग दिनों के हिसाब से तैयार किया है। ऐसे में इसे 30 फीसद तक घटाया गया है। इस पाठ्यक्रम से टीपू सुल्तान और हैदर अली का चैप्टर हटा दिया गया है। सोमवार को कर्नाटक टेक्स्ट बुक सोसायटी की वेबसाइट पर नया पाठ्यक्रम अपलोड किया जाएगा। 220दिनों का पाठ्यक्रम घटकर 120 दिनों का बनाया गया है। अब टीपू सुल्तान को पाठ्यक्रम से हटाने पर विवाद शुरू हो गया है। अधिकारियों ने बताया कि विशेषज्ञों ने विषय की महत्ता के हिसाब से पाठ्यक्रम को तैयार किया गया है।

बता दें कि कर्नाटक में जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई थी तो यह घोषणा की गई थी कि पाठ्यक्रम से टीपू सुल्तान का चैप्टर हटाया जाएगा, और अपने वादे के अनुरूप पार्टी ने ऐसा ही किया। अब यह कदम वुहान वायरस को देखते हुए लिया गया है, लेकिन भविष्य में इसे स्थायी भी किया जा सकता है। परंतु टीपू सुल्तान से ऐसी क्या समस्या है, जिसके कारण कर्नाटक सरकार को उनसे संबन्धित चैप्टर ही इतिहास के पुस्तकों से हटाने पड़े हैं?टीपू सुल्तान भले ही एक धाकड़ शासक रहे हों, जिन्होंने अंग्रेजों से कई युद्ध लड़े, परंतु वे उतने ही धर्मांध भी थे। धर्मांधता के चक्कर में उन्होने कई निर्दोष हिंदुओं की हत्या भी करवाई, और कहा जाता है कि इसी कारणवश कर्नाटक में आज भी कुछ ऐसे गाँव है, जहां न होली मनाई जाती है, और न ही दिवाली।

लेकिन कई लोग इस बात को आज भी मानने को तैयार नहीं है, और इसीलिए वे टीपू सुल्तान की जयंती मनाने से भी नहीं हिचकिचाते। जब काँग्रेस की सरकार सत्ता में थी, और जब कुमारस्वामी की खिचड़ी सरकार राज्य का शासन कर रही थी, तब दोनों ही अवसरों पर टीपू सुल्तान की जयंती को धूम धाम से मनाने के आदेश जारी किए जाये थे, जो इस बर्बर शासक के हाथों मारे गए निर्दोष गैर मुस्लिमों के वंशजों के लिए ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने के समान था।

हालांकि यह निर्णय यूं ही नहीं लिया गया है। अभी जुलाई के प्रारम्भ में केंद्र सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय सेकेन्डरी शिक्षा बोर्ड यानि सीबीएसई ने वुहान वायरस के चलते पाठ्यक्रम में कुछ अहम बदलाव किए थे, जिसमें से एक था जाति और सेक्युलरिज़्म जैसे शब्दों का सिलेबस से हटाया जाना।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एचआरडी मिनिस्टरी से परामर्श के बाद सीबीएसई ने यह निर्णय लिया था, ताकि सीबीएसई के अंतर्गत आने वाले विद्यालयों को थोड़ी राहत मिल सके। निर्णय के अनुसार कम से कम 30 प्रतिशत तक कोर्स लोड को घटाने को कहा गया था। नए सिलेबस में सेक्युलरिज़्म, जातिवाद इत्यादि से जुड़े चैप्टर कक्षा 11 के पाठ्यक्रम से हटाये गए थे।

अब इसके बाद कर्नाटक सरकार द्वारा टीपू सुल्तान जैसे आक्रांता का गुणगान बंद करना अपने आप में इस बात का संकेत है कि विदेशी आक्रांताओं के महिमामंडन को रोकने हेतु केंद्र सरकार और कर्नाटक की भाजपा सरकार कितनी प्रतिबद्ध है। हालांकि, यह कदम पर्याप्त नहीं है। भाजपा सरकार को ना सिर्फ टीपू सुल्तान का गुणगान हमेशा के लिए सिलेबस से हटा देना चाहिए बल्कि सिलेबस में टीपू के अत्याचारों को शामिल करना चाहिए। बच्चों को टीपू के बारे में अवश्य पढ़ना चाहिए, उनके तथाकथित “महान कार्यों” के संदर्भ में नहीं, उनके अत्याचारों के संदर्भ में!

 

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