‘जब जागो तब सवेरा ओली के मामले में बस अँधेरा’, नेपाल ने भारतीय मीडिया पर बैन लगाने में देर कर दी

केपी शर्मा ओली

नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने भारत से 2020 में इस तरह से संबंध बिगाड़े हैं, जैसे पहले कभी नहीं हुआ था। चीनी सरकार की जी हुज़ूरी में लगे नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली एक के बाद एक ऐसे कदम उठा रहे हैं, जो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने से कम घातक नहीं होगा। कई सूत्रों के अनुसार अब नेपाल में हर प्रकार के भारतीय न्यूज़ चैनलों पर प्रतिबंध लगाया गया है, और खाली भारतीय सरकार द्वारा प्रायोजित दूरदर्शन चैनल नेपाल में प्रसारित होगा।

अभी हाल ही में नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने कहा था कि केपी शर्मा ओली के विरुद्ध भारतीय न्यूज़ चैनल जो प्रोपगैंडा फैला रहे हैं, उसे तत्काल प्रभाव से बंद करना होगा। हिमालयन टाइम्स के अनुसार ये निर्णय इसलिए लिया गया होगा क्योंकि कुछ भारतीय न्यूज़ चैनल नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और चीनी राजदूत हू यांकी के बीच की राजनीतिक साँठ-गांठ पर टिप्पणी कर रहे थे।

जैसा कि पहले TFI ने बताया था, हू यांकी सिर्फ एक चीनी राजदूत की हैसियत से नहीं, बल्कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिनधि के रूप में नेपाल की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप के उद्देश्य से काम कर रही थीं। कहा जाता है कि हू यांकी के देख-रेख में ही नेपाल की वर्तमान भारत विरोधी नीति को केपी ओली बढ़ावा दे रहे हैं।

इंटेलिजेंस के सूत्रों के अनुसार वह नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के आधिकारिक कार्यालय का अक्सर दौरा करती दिखाई दी हैं। इससे पहले वह पाकिस्तान में बतौर राजनयिक नियुक्त की गई थी। पिछले कुछ महीनों में हू यांकी वर्तमान सरकार को कायम रखने हेतु नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के कई नेताओं से मिलकर आई है। साफ कहें तो वह नेपाल के आंतरिक मामलों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करती दिखाई दे रही हैं।

एक विदेशी राजनयिक यदि किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करे, तो सवाल उठना उचित भी है, और इसीलिए भारतीय मीडिया ने इस राजनयिक के विरुद्ध कई सवाल उठाए हैं, क्योंकि इस राजनयिक एक तरह से नेपाली सरकार को अपने वश में रखा है। यूं तो भारत के अति सक्रिय न्यूज़ चैनल कभी-कभी तड़का लगाने के नाम पर कुछ अटपटी खबरें प्रसारित करते हैं, पर इस मामले में उन्होंने नेपाली प्रशासन को आईना दिखाने के अलावा कुछ नहीं किया है। सच बहुत कड़वा होता है, और जैसे ही भारतीय मीडिया ने हू यांकी की भूमिका पर प्रश्न उठाए, नेपाली प्रशासन के मानो हाथ-पाँव ही फूल गए।

अब नेपाली जनता ने भी प्रशासन से कुछ सख्त प्रश्न पूछना शुरू कर दिया है। ऐसे में नेपाली प्रशासन ने वही किया, जो उनके नए आका करते आए हैं – कंटैंट पर ही प्रतिबंध लगा दो। यूं तो कम्युनिस्ट पार्टी ने आधिकारिक रूप से इस निर्णय को अपनी मंजूरी नहीं दी है, पर ऐसा तो बिलकुल नहीं हो सकता कि यह निर्णय अचानक से केबल ऑपरेटरों ने खुद ही ले लिया। हालांकि, निर्णय लेने में नेपाल के प्रधानमंत्री ने काफी देर कर दी क्योंकि उनके और चीनी राजदूत के सांठ-गांठ की खबरें अब नेपाल की जनता और नेपाल के राजनीतिक गलियारों में चर्चा में हैं। केपी ओली हर मंच पर हू यांकी के हस्तक्षेप को लेकर सवालों के घेरे में हैं। भले ही भारतीय मीडिया पर नेपाल प्रशासन ने बाएं लगा दिया हो पर जो नुकसान होना था वो हो चुका है।

केपी शर्मा ओली ने पिछले कुछ महीनों में चीन की खुशामद करने में भारत के विरुद्ध बहुत विष उगला है। यहाँ तक कि इस 68 वर्षीय नेता ने भारत को नेपाल में वुहान वायरस फैलाने का दोषी भी करार दिया है। लेकिन जब हू यांकी के साथ इनकी राजनीतिक सांठ-गांठ उजागर हुई, तो उन्होंने भी वही किया जो कम्युनिस्ट करते हैं – तथ्यों को ही मिटा दो।

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