नेपाल में सत्ता की जंग अभी भी जारी है। फिलहाल के लिए ये कम होने का नाम नहीं ले रही है और नेपाल के मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए चर्चा में आई चीनी राजदूत हू यांकी नेपाली सरकार को बचाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगती फिर रही हैं, और पूर्व प्रधानमंत्रियों सहित नेपाल के कई अहम नेताओं के साथ बैठक भी कर रही हैं।
जब से नेपाल में सत्ता को लेकर तनातनी प्रारम्भ हुई है, तभी से हू यांकी युद्धस्तर पर बैठकों को आयोजित करा रही हैं। बृहस्पतिवार को उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के साथ 50 मिनट तक की लंबी बैठक की। तद्पश्चात उन्होंने नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भण्डारी, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खनल के साथ मैराथन बैठक की है।
पर हू यांकी इन मैराथन बैठकों को क्यों आयोजित करवा रही हैं? उनका मानना है कि अगर किन्हीं कारणों से ओली को सत्ता से हाथ धोना पड़ा, और पार्टी में दरार आई, तो न केवल चीन की मंशाओं को धक्का लगेगा, बल्कि ये एक तरह से भारत की कूटनीतिक विजय होगी, क्योंकि केपी शर्मा ओली का चीन प्रेम भारत की आँखों में निस्संदेह शूल की भांति चुभता है। ऐसे में ओली के इस्तीफा देने से भारत को नेपाल को चीन मुक्त रखने में काफी आसानी भी हो सकती है।
काठमांडू पोस्ट के अनुसार इन मैराथन मीटिंग्स का एक ही उद्देश्य था – नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में चल रही तनातनी को निपटाना, जिसके लिए हू यांकी एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रही है। बता दें की नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में काफी तगड़ी तनातनी चल रही है, जिसके अंतर्गत पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने केपी शर्मा ओली को पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री, दोनों पदों से इस्तीफा देने को कहा है।
यूं तो पार्टी में कभी भी कोई विशेष एकता नहीं थी, पर पिछले एक हफ्ते में स्थिति बद से बदतर हो चुकी थी। स्वयं केपी शर्मा ओली ने बताया कि वे सत्ता में बने के लिए पार्टी को दो हिस्सों में बांटने को तैयार है। पर ये उतना भी आसान नहीं है, क्योंकि पार्टी के स्टैंडिंग कमेटी के 44 में से 30 सदस्य इस समय केपी शर्मा ओली के विरुद्ध खड़े हैं।
अब केपी शर्मा ओली किसी भी हालत में सत्ता का त्याग नहीं करना चाहते। इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, चाहे इसके लिए भारत जैसे पड़ोसियों से दुश्मनी ही क्यों न लेनी पड़ी। सत्ता में बने रहने के लिए ओली ने नेपाली संसद की बैठक भी स्थगित करवा दी। हद तो तब हो गई जब सत्ता में बने रहने के लिए केपी शर्मा ओली ने चीनी राजदूत हू यांकी को स्थिति संभालने के लिए कहा, जिससे ये सिद्ध हो गया कि नेपाल का वर्तमान प्रधानमंत्री आधिकारिक रूप से चीन का गुलाम है।
लेकिन सत्ता को लेकर पार्टी में तनातनी अब उस स्तर पर पहुँच चुकी है, जहां हू यांकी की बैठकें भी शायद ही कोई सकारात्मक परिणाम निकाल पाये। इस समय नेपाल सत्ता की तनातनी के साथ वुहान वायरस के प्रकोप से भी जूझ रही है। केपी शर्मा ओली ने इस महामारी से लड़ने हेतु स्वास्थ्य के आधार पर आपातकाल लगाने की बात की, जिसमें नेपाली फौज सक्रिय रूप से इस महामारी से लड़ने में नेपाल की सहायता करेगी। लेकिन न तो नेपाल की राष्ट्रपति और न ही नेपाली सेना इस काम के लिए इच्छुक है।
सच कहें तो नेपाल में सत्ता के लिए लड़ाई अब अपने परिणाम की ओर अग्रसर है, और यदि ऐसे ही तनातनी चलती रही, तो या तो पार्टी में फूट पड़ सकती है, या फिर ओली को पार्टी से बाहर निकाला जा सकता है, और दोनों मामलों में नुकसान केवल केपी शर्मा ओली का ही होना है। लेकिन उससे बड़ा नुकसान होगा चीनी राजदूत हू यांकी का, जिनके इशारों पर कुछ समय तक नेपाली प्रशासन काम भी कर रही थी, और साथ ही साथ चीन का नेपाल पर कब्जा जमाने की मंशाओं पर भी पूरी तरह पानी फिर जाएगा।