केवल सेलिब्रिटीज ही नहीं, राजीव मसंद जैसे Bollywood के क्रिटिक्स भी नेपोटिज्म को बढ़ावा और ‘Outsiders’ का अपमान करते हैं

हमारे फिल्म उद्योग में आलोचकों को भी उतना ही महत्व दिया जाता है, जितना किसी अभिनेता, निर्देशक, पटकथा लेखक इत्यादि को। एक आलोचक केवल फिल्म को मनोरंजन के नज़रिये से ही नहीं, अपितु हर एक पहलू से जांच परख कर देखता है और दर्शकों को सही मूवी चुनने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हमारे फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने आलोचक अब हंसी का पात्र बन चुके हैं, जिन्हें आए दिन सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है।

परंतु ऐसा क्यों हुआ? आखिर ऐसा क्या कारण था कि जिन क्रिटिक्स के हर रिव्यू को सिनेमा प्रेमी बड़े चाव से देखते थे, आज उन्हीं क्रिटिक्स की बात पर विश्वास करने से पहले दस बार सोचना पड़ता है। इसके पीछे कई कारण हैं, परंतु कुछ प्रमुख कारण है इन आलोचकों का घटिया फिल्मों को बढ़ावा देना, कई फिल्मों की ऊटपटाँग पैमानों पर आलोचना करना, वंशवादी अभिनेताओं या अभिनेत्रियों को अनुचित बढ़ावा देना और अन्य अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को जानबूझकर अपमानित करना।

जी हाँ, अन्य अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को जानबूझकर अपमानित करने की यह प्रवृत्ति कई बड़े आलोचकों में देखी गई है, और कई लोगों का मानना है कि जब सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद बॉलीवुड में वंशवाद को बढ़ावा देने वाले हर व्यक्ति को आड़े हाथों लिया जा रहा हो, तो इन आलोचकों को हम कैसे छोड़ सकते हैं?

सुशांत सिंह राजपूत की असामयिक मृत्यु के पश्चात अधिकांश सिनेमा प्रेमियों ने उन्हें इस हद तक विवश करने और उन्हें अपमानित करने के लिए बॉलीवुड के कई प्रमुख हस्तियों को निशाने पर लिया है, चाहे वो करण जौहर हो, सोनम कपूर हो, आलिया भट्ट हो या फिर सलमान खान ही क्यों न हो। परंतु एक व्यक्ति ऐसा भी है, जिसने सुशांत सिंह राजपूत हो या फिर कोई और प्रतिभावान एक्टर, कभी भी उसने किसी बाहरी एक्टर्स को सम्मान नहीं दिया, और वो है राजीव मसन्द।

राजीव मसन्द अक्सर अपनी तीखी आलोचना के लिए जाने जाते हैं। लेकिन कई बार अपनी सीमाएं लांघते हुए उन्होंने प्रतिभावान अभिनेताओं को बहुत बुरी तरह अपमानित भी किया है। सुशांत सिंह राजपूत के लिए राजीव ने कुछ ऐसे विचार रखे थे, जिसे देख तो किसी भी व्यक्ति का खून खौल उठेगा।

राजीव मसन्द यदा कदा ओपेन मैगज़ीन के लिए ब्लाईंड लेख [वो लेख जिसमें बिना नाम लिए किसी को टार्गेट किया जाये] लिखते हैं। इन्ही में से एक लेख में उसने सुशांत सिंह राजपूत का नाम लिए बिना उन्होने इस अभिनेता के बारे में ऐसे ऐसे शब्द बोले, जिसे देखकर आप समझ सकते हैं कि ये व्यक्ति अपनी निकृष्टता को सिद्ध करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। एक लेख में राजीव ने लिखा, “एक ऐसा अभिनेता, जो हाल ही में अपने ‘गुरु’ के साथ दोबारा आया है, पता नहीं किस तरह इस इंडस्ट्री में है। ऐसा व्यभिचारी और वासना से परिपूर्ण व्यक्ति पर उसकी माँ भी नज़र रखी हुई है, क्योंकि उसकी रेपुटेशन के बारे में सबको पता है”।

[Insert Ruko Zara Sabr Karo]

राजीव ने ये लेख उस समय लिखा था, जब ये कन्फ़र्म हुआ था कि सुशांत सिंह राजपूत अपने प्रथम डायरेक्टर अभिषेक कपूर की आने वाली फिल्म ‘केदारनाथ’ पर फिल्म करने वाले थे। परंतु ये तो बस शुरुआत है, क्योंकि राजीव मसन्द ने इसी लेख में सुशांत के शांत और हंसमुख स्वभाव को छलावा भी कहा था, और ये भी बताया कि अंदर से ये व्यक्ति कितना असहज है। इस तरह की फब्तियाँ लिखते वक्त क्या ज़रा सी भी शर्म नहीं आई? पर हम भूल रहे हैं कि ये राजीव मसन्द है, जिनहे बाहरी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों का अपमान करना और स्टार किड्स से इतर फिल्मों की अनुचित आलोचना करने में विशेष आनंद करता है।

एक अन्य लेख में इस व्यक्ति ने सुशांत को कुछ फिल्मों के लिए अधिक फीस लेने पर एक ज़रूरत से ज़्यादा वेतन लेने वाला बाहरी भी करार किया है। इस लेख में राजीव कहते हैं, “इस अभिनेता के साथ समस्या यह है कि इसके पीछे एक बहुत बड़ा फ्लॉप है, और कई अहम प्रोजेक्ट होने के बाद भी इसकी चमक अब जा चुकी है, और इसकी वजह से दूसरा प्रोजेक्ट अब वित्तीय संकटों से जूझ रहा है”। यहाँ स्पष्ट रूप से राजीव ने सुशांत की अंतिम फिल्म ‘दिल बेचारा’ पर हमला किया है, जिसे बीच में अनेकों दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।

इतना ही नहीं, राजीव मसन्द ने ये तो सुशांत के बारे में यहाँ तक लिखा था कि मी टू में उनका नाम आने की वजह से उनकी फिल्म हमेशा के लिए बंद भी हो सकता है। नवंबर 2019 में लिखे इस लेख में एक बार फिर सुशांत का नाम लिए बिना उनके चरित्र पर सवाल किए गए थे। बता दें कि मी टू के अभियान के दौरान ये रिपोर्ट्स आई थी कि फिल्म की अभिनेत्री संजना सांघी ने सुशांत पर यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाए थे, जिसका सुशांत ने पुरजोर खंडन भी किया था। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि राजीव मसन्द जैसे कथित क्रिटिक अपने काम से ज़्यादा दूसरों को नीचा दिखाने में विश्वास रखते हैं।

पर ये बात केवल सुशांत सिंह राजपूत तक ही सीमित नहीं है। यूट्यूब चैनल ट्राइड एंड रिफ़्यूज़्ड प्रॉडक्शन्स ने पिछले वर्ष इसी समस्या पर प्रकाश डालते हुए राजीव मसन्द का कच्चा चिट्ठा खोला था। कार्तिक आर्यन और आनंद कुमार से बातचीत के जरिये इस वीडियो बताया गया कि कैसे राजीव प्रारम्भ से ही नए अभिनेताओं और अन्य हस्तियों पर दबाव बनाने लगते हैं और ऐसे सवाल पूछते हैं, जो कई मायनों में अपमानजनक कहे जा सकते हैं। जब कार्तिक आर्यन का इंटरव्यू लिया गया, तो साफ दिखाई दे रहा था कि यह व्यक्ति किस हद तक कार्तिक को उनके फिल्मों के चुनाव के लिएअपमानित करना चाहता है, और उसी तुलना में जब ये आलिया भट्ट का इंटरव्यू ले रहे थे, तब इनहोने ऐसे सुर बदल लिए, मानो आलिया भट्ट नहीं, कोई देवी इनके सामने बैठी हो।

https://twitter.com/IshitaYadav/status/1277520179979665408

ये वही राजीव मसन्द है, जो संजू को साढ़े तीन स्टार देंगे, आर्टिकल 15 जैसी कूड़ा फिल्म पर जमके प्यार लौटाएँगे, पर तान्हाजी जैसी फिल्मों का मज़ाक उड़ाएंगे और ताशकन्द फाइल्स की समीक्षा ही नहीं करेंगे। राजीव मसन्द के इसी दोगले स्वभाव को सोशल मीडिया ने जमकर ट्रोल किया था और कुछ हफ्तों पहले #RajeevMasand ट्विटर पर काफी ट्रेंड भी हुआ था।

राजीव के इसी दोगले स्वभाव पर तीखा प्रहार करते हुए पिछले वर्ष कबीर सिंह के निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा ने कहा था, “ऐसे दोगले क्रिटिक्स संजू जैसी फिल्मों को साढ़े 3 स्टार देते हैं, जिसमें नारी विरोध कूट कूट के भरा है, और मुझे एक आम कहानी दर्शाने के लिए दो स्टार”। इसी भांति पटकथा लेखक अपूर्व असरानी ने भी राजीव को इस निकृष्ट व्यवहार के लिए आड़े हाथों लेते हुए  हाल ही में ट्वीट किया था , “छोटे मोटे लोगों पर हमला करके हम असली दोषियों को नहीं बचा सकते। उदाहरण के लिए केआरके जैसा भी हो, पर कम से कम उसमें नाम लेने की तो हिम्मत है, परंतु जो राजीव मसन्द ने सुशांत सिंह राजपूत के लिए लिखा है, वो किसी भी लिहाज से क्षमा योग्य नहीं है”।

https://twitter.com/Apurvasrani/status/1280059938631376897

सुशांत सिंह राजपूत  को अपमानित करने में बॉलीवुड के एलीट वर्ग ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, परंतु जिस तरह से राजीव मसन्द ने उनके बारे में लिखा और बोला, उसके लिए जितनी भी आलोचना और अपशब्द निकाले जाएँ, वो कम पड़ेंगे।

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